कोरोना पर भारी वोटों की मारामारी
03-Nov-2020 12:00 AM 381

 

कोरोना महामारी के कारण किए गए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तोड़कर रख दिया है। बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है। लेकिन चुनाव के इस दौर में कोरोना गाइडलाइन का जमकर उल्लंघन हो रहा है। आलम यह है कि मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। फिर भी स्थिति यह है कि माननीय भीड़ जुटाने में तनिक भी परहेज नहीं कर रहे हैं। 

देश में कोरोना महामारी की चपेट में अब तक लाखों लोग आ चुके हैं। आलम यह है कि कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। उसके बावजूद बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही मप्र में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है। आलम यह है कि उपचुनाव के दौरान आयोजित होने वाली रैलियों में भीड़ को देखकर ग्वालियर हाईकोर्ट ने रैली पर रोक लगाई तो माननीय सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने माननीयों की बात मानते हुए उन्हें कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए रैली और सभाएं करने की छूट दे दी है। लेकिन कहीं भी गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है। कोरोना पर वोटों की मारामारी भारी पड़ रही है।

वोटों के लिए मारामारी कोरोना की महामारी पर किस कदर भारी पड़ रही है, इसका अनुमान मप्र में 28 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को होने वाले उपचुनावों के लिए हो रही रैलियों, सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ रही धज्जियों को देखकर लगाया जा सकता है। चुनावी घमासान में व्यस्त नेताओं को न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नसीहतें सुनाई पड़ रही हैं, न अदालतों के फरमान। जनता की जान की कीमत इनके लिए महज एक वोट से ज्यादा नहीं है। चुनाव के दौरान कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस को भी इन नेताओं ने जैसे कूड़ेदान में फेंक दिया है। बार-बार की हिदायतों के बाद भी नाफरमानी देख आखिरकार मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच को कानून का डंडा चलाते हुए यह कहना पड़ा कि उम्मीदवार को चुनाव प्रचार का अधिकार है, तो लोगों को जीने के साथ-साथ स्वस्थ रहने का भी अधिकार है। उम्मीदवार के अधिकार से जनता का स्वस्थ रहने का अधिकार ज्यादा बड़ा है।

कोर्ट ने सख्त तेवर अपनाते हुए यहां तक आदेश दे दिया कि ग्वालियर-चंबल संभाग के 9 जिलों में कोई भी सभा या रैली चुनाव आयोग की अनुमति के बाद ही की जा सकेगी। कलेक्टर की भूमिका पोस्टमैन जैसी कर दी गई है, जो चुनाव आयोग से अनुमति के लिए अनुशंसा ही कर सकेगा। उधर, हाईकोर्ट के दखल से नाराज चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा। आयोग ने अपनी याचिका में कहा कि चुनाव कराना उसका डोमेन है। हाईकोर्ट का फैसला मतदान की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। पहले से ही कोरोना वायरस संकट के दौरान चुनाव कराने के दिशा-निर्देश तय हैं, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाए। वहीं इस अदालती फरमान से कांग्रेस-भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल भी बौखला गए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अदालत के इस फैसले को एक देश में दो विधान जैसी स्थिति बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही। हालांकि चुनाव आयोग की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रैली की फिर से छूट दे दी है। 

बता दें कि मप्र की 28 विधानसभा सीटों पर 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 10 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। इन 28 में से सबसे ज्यादा करीब 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग में हैं। यहां की तकरीबन सभी सीटों पर सिंधिया समर्थक वो सारे नेता उम्मीदवार हैं, जिन्होंने कमलनाथ सरकार में मंत्री-विधायक रहते हुए बगावत कर दी थी और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल होकर मार्च 2020 में शिवराज सिंह के नेतृत्व में सरकार बनवा दी थी। अब उपचुनाव में इन सीटों पर जीतना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक का सवाल है। चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा लगभग पूरे समय ही यहां डेरा डाले हैं, दूसरी ओर कमलनाथ और कांग्रेस की टीम इन्हीं सीटों पर जोर मार रही है। दोनों ही दलों ने अपने-अपने स्टार प्रचारकों के साथ चुनावी रैलियों और सभाओं के जरिए हल्ला बोल रखा है।

ये कोई पहली बार नहीं है कि ग्वालियर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की हो। इससे पहले 21 सितंबर को भी हाईकोर्ट ने नेताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि आप कितने भी बड़े हों, लेकिन याद रखिए कि कानून आपसे भी बड़ा है। हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सिंधिया, शिवराज, कमलनाथ समेत कई नेताओं के कार्यक्रमों में उमड़ी भारी भीड़ के चलते कोरोना गाइडलाइन के उल्लंघन के बाद सामने आई थी। बता दें कि मप्र के इंदौर, भोपाल के अलावा ग्वालियर समेत पूरे संभाग में कोरोना अपने चरम पर था और दो-दो सौ मरीज रोज मिल रहे थे, तब 22 से 24 अगस्त तक भाजपा ने ग्वालियर में उपचुनाव से पहले अपना शक्ति प्रदर्शन करने के मकसद सदस्यता अभियान के रूप में बड़ा राजनीतिक आयोजन किया था, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए रोज हजारों लोगों का हुजूम उमड़ा था। इन आयोजनों में खुद कोरोना के शिकार हो चुके शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा समेत कई नेता सबसे आगे थे। सदस्यता अभियान के कुल 19 आयोजन ग्वालियर-चंबल संभाग में किए गए थे।

उस समय एक जनहित याचिका के बाद हाईकोर्ट ने तीन वकीलों को न्यायमित्र भी बनाया था, जो किसी राजनीतिक गतिविधि या अन्य आयोजन में गाडडलाइन की अवहेलना होने पर प्रिंसिपल रजिस्ट्रार के माध्यम से हाईकोर्ट को अवगत कराने का काम कर रहे हैं। याचिका में फोटोग्राफ्स के साथ तात्कालिक राजनीतिक गतिविधियों के उल्लेख को देखने को बाद कोर्ट ने कहा था कि जो राजनेता और प्रशासनिक अफसर जो भी हैं, वह गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम कर रहे हैं। आमआदमी, राजनेता और राज्य के मुखिया को भी कानून का सम्मान करना आवश्यक है। ऐसा नहीं है कि भाजपा के ही कार्यक्रमों में कोरोना गाइडलाइंस भुलाई गई हों, कांग्रेस नेता कमलनाथ, अजय सिंह, जीतू पटवारी, विजय लक्ष्मी साधौ व अन्य नेताओं के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही भीड़ उमड़ी और सोशल डिस्टेंसिंग गायब दिखी।

ये सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या कोरोना के लिए लागू नियम आम जनता और राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए अलग-अलग हैं? क्या कोरोना जनता और नेता दोनों को देखकर अलग-अलग व्यवहार करता है? क्या जनता पर गाइडलाइंस का डंडा घुमाने वाले कलेक्टरों और दीगर अफसरों को यह बात समझ में नहीं आती। खंडवा जैसी जगह में जहां हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक सभा के दौरान पंडाल में बैठे एक बुजुर्ग की मौत होने और खबर फैलने के बाद भी किसी को शर्म नहीं आती और संवेदनाओं को ताक पर रख सभा चलती रहती है। पूरे उपचुनाव वाले इलाकों में नेताओं की जानलेवा लापरवाही को देखते हुए ग्वालियर हाईकोर्ट में बहुत ही व्यथित होकर यह टिप्पणी स्वाभाविक लगती है, जिसमें उसने कहा कि सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है। नेता लोगों के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील, सजग और उदार नहीं दिख रहे। उन्हें चुनाव की चिंता है, लेकिन जनता के स्वास्थ्य की नहीं। लेकिन हाईकोर्ट की व्यथा को न तो चुनाव आयोग और न ही नेताओं ने समझा। अब एक बार फिर से चुनावी सभाओं में भीड़ जुटने लगी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि उपचुनाव में जिस तरह कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन देखने को मिल रहा है उससे चुनावी क्षेत्रों में बड़े स्तर पर कोरोना विस्फोट सामने आ सकता है।

मोदी की नसीहतें भी अनसुनी कर रहे नेता

बता दें कि देश में कोरोना महामारी की दस्तक के बाद 19 मार्च को अपने राष्ट्र के नाम पहले संबोधन से लेकर आज तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधनों में बार-बार दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, जैसे वाक्य बोलकर पूरे देश को कोरोना महामारी से बचने के लिए सतर्कता बरतने की नसीहतें दे रहे हैं, जिन्हें उनकी अपनी पार्टी के नेता ही नहीं मान रहे। मास्क न लगाने पर बुल्गारिया के प्रधानमंत्री पर 13 हजार रुपए के जुर्माने का जिक्र करते हुए मास्क की अहमियत समझाई थी और प्रशासनिक अमले से ऐसी ही चुस्ती की उम्मीद जताई थी। अभी 20 अक्टूबर को उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने एक और संबोधन में कहा 'अगर आप लापरवाही बरत रहे हैं, तो आप अपने आपको, अपने परिवार को, अपने परिवार के बच्चों, बुजुर्गों को उतने ही बड़े संकट में डाल रहे हैं। हमें ये नहीं भूलना है कि लॉकडाउन भले ही चला गया हो, लेकिन वायरस नहीं गया है।Ó लेकिन उनके इन निर्देशों का राजनीतिक स्तर पर पालन नहीं हो रहा है।

सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमों पर पहरा क्यों?

यहां बता दें कि शादी, मौत, मुंडन, सामाजिक कार्यक्रमों में 10, 20 या 50 लोगों को शामिल होने की छूट है, लेकिन राजनीतिक आयोजनों में लोगों की भीड़ उमड़ रही है, मास्क तो छोड़िए, सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन नहीं हो रहा है। राज्य में चुनाव हैं तो क्या राजनीतिक दलों को लोगों की जान से खिलवाड़ करने की छूट दे दी जानी चाहिए, यह एक बड़ा सवाल है। प्रदेश में चुनावी सभाओं में राजनीतिक दलों द्वारा कोविड गाइडलाइन के उल्लंघन को लेकर मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ द्वारा जारी किए गए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मप्र हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ चुनाव आयोग और भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर ने अपील दायर की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। अब राजनीतिक दल पहले की तरह चुनावी सभाएं कर रहे हैं। यानी सभा के लिए उन्हें चुनाव आयोग से अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ रही है। हालांकि सभाएं कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए की जाएंगी, लेकिन ऐसा कहीं भी देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिरकार सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों पर ही पहरा क्यों लगाया गया है।

- अरविंद नारद

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^