मप्र में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार तरह-तरह के प्रयोग कर रही है। इसी कड़ी में अब गांवों में ही कम्युनिटी एनआरसी बनाने की तैयारी की जा रही है। कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने के लिए शासन ने प्रत्येक ब्लॉक में पोषण पुनर्वास केंद्र स्थापित किए हैं, परंतु इन केंद्रों के बहुत अच्छे रिजल्ट सामने नहीं आने के बाद अब शासन ने गांव में ही कम्युनिटी एनआरसी स्टार्ट करने की योजना तैयार की है, ताकि कुपोषण को जड़ से मिटाया जा सके। उल्लेखनीय है कि अतिकुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने के लिए शासन ने ऐसे बच्चों को एक ही छत के नीचे हेल्थी भोजन और उपचार की सुविधा उपलब्ध कराने एनआरसी (पोषण पुनर्वास केंद्र्र) शुरू किए। एनआरसी जब शुरू हुईं तब तो जिले में कुछ हद तक अच्छे रिजल्ट सामने आए, क्योंकि कुपोषित बच्चे को भोजन व उपचार के अलावा एनआरसी में उसके साथ रहने वाली उसकी मां को प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाती है। कुछ समय बाद धीरे-धीरे कुपोषित बच्चों के परिजनों का मोह खत्म हो गया और उन्होनें एनआरसी आना बंद कर दिया। जब जिम्मेदार अधिकारियों ने कुपोषित बच्चों के एनआरसी न आने के कारणों की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि कई परिवारों में तीन-तीन बच्चे हैं जिनमें से एक अतिकुपोषित है तो मां अन्य बच्चों की देखभाल के कारण एनआरसी नहीं आ पाती अथवा उसे मजदूरी पर जाना होता है इसलिए भी वह एनआरसी नहीं आती। परिणाम स्वरूप न तो कुपोषण कम हुआ और न ही कुपोषण से होने वाली मौतें।
पोषण पुनर्वास केंद्रों की असफलता के चलते शासन ने प्रदेश के नौ जिलों में कम्युनिटी एनआरसी खोलकर कुपोषण को कम करने का प्रयास किया तो इसके अच्छे रिजल्ट सामने आए। इन परिणामों से उत्साहित होकर सरकार ने अब पूरे प्रदेश में गांवों में कम्युनिटी एनआरसी खोलने का मन बनाया है। प्रदेश में कम्युनिटी एनआरसी की दिशा में जोर-शोर से काम चल रहा है। इसके तहत अतिकम वजन के बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र पर ही पांच दिन तक विशेष केयर में रखकर पोषण आहार व दवा खिलाई जाएगी। इस दौरान बच्चे की मां की भी काउंसलिंग की जाएगी, फिलहाल यह कार्यक्रम नौ जिलों में चल रहा था, अब इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा है।
कम्युनिटी एनआरसी में गांव में ही अतिकुपोषित बच्चे को पांच दिन तक दिनभर आंगनबाड़ी केंद्र पर ही रखा जाएगा। इस दौरान बच्चे को चार बार पौष्टिक भोजन कराया जाएगा। इसके अलावा बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उसे एएनएम के माध्यम से अमोक्सीसिल्लिन नामक एंटीबायोटिक दवा भी पिलाई जाएगी। शाम को बच्चा अपने घर चला जाएगा। इस दौरान कुपोषित बच्चे की मां को आंगनबाड़ी केंद्र पर या घर पर जाकर पौष्टिक आहार के संबंध में भी जानकारी दी जाएगी। अधिकारियों का मानना है कि टीएचआर (टेक होम राशन) तो हम अभी भी बच्चों को देते हैं परंतु वह बच्चा नहीं खाता है, इसी कारण कुपोषण की दिशा में सफलता नहीं मिल पा रही। कम्युनिटी एनआरसी में यह सब बच्चे को केंद्र पर ही खिलाया जाएगा, जिससे उसका वजन बढ़ेगा।
विभाग के अधिकारियों के अनुसार हर जिले में बच्चों का वजन तौला जाएगा। इस सर्वे में जब अतिकम वजन के बच्चों की संख्या सामने आएगी तो उसके आधार पर फस्र्ट फेज में ऐसी आंगनबाडिय़ों पर कम्युनिटी एनआरसी शुरू की जाएगी जहां कम से कम तीन अतिकम वजन के बच्चे होंगे। इसके अलावा अगर एक गांव में एक से अधिक एनआरसी हैं तो सभी एनआरसी में से किसी एक आंगनबाड़ी पर एनआरसी शुरू की जाएगी और वहां गांव की सभी आंगनबाडिय़ोंं के अतिकम वजन के बच्चों को लाया जाएगा।
प्रमुख सचिव अनुपम राजन ने बताया कि प्रदेश में 3 हजार से ज्यादा डे-केयर सेंटर खोले जा रहे हैं। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा पोषक आहार दिया जा रहा है। साथ ही, अभिभावकों को पोषण आहार से संबंधित जानकारी भी दी जा रही है। राजन ने बताया कि सभी जिलों, ब्लाक एवं गांव में कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर योजना का अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रदेश को मातृ वंदना योजना में तीन राष्ट्रीय पुरस्कार
मध्यप्रदेश को प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में उल्लेखनीय कार्य के लिए तीन श्रेणियों में राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। योजना में जिला स्तरीय श्रेणी में प्रदेश के इंदौर जिले को राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना सप्ताह के क्रियान्वयन के लिए प्रदेश को देश में तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है। प्रदेश में यह सप्ताह 2 से 8 दिसम्बर 2019 तक मनाया गया था। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में प्रदेश में अब तक कुल 14 लाख 55 हजार 501 हितग्राहियों को पंजीकृत किया गया है। लगभग 13 लाख 40 हजार 224 हितग्राहियों को पहली किश्त, 12 लाख 60 हजार 304 हितग्राहियों को दूसरी और 8 लाख 80 हजार 517 हितग्राहियों को तीसरी किश्त का भुगतान किया गया है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं एवं माताओं को 6 हजार रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता राशि उनके खाते में सीधे जमा कराई जाती है। योजना का मुख्य उद्देश्य गर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के दौरान महिलाओं को जागरूक करना और जच्चा-बच्चा देखभाल तथा संस्थागत सेवा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
- श्याम सिंह सिकरवार