मध्यप्रदेश में निकाय व पंचायत चुनाव ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से कराने की पूरी संभावना है। मतदान का पैटर्न बदले जाने पर सरकार में सहमति बन गई है। अभी पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में निकाय और पंचायत चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाने की व्यवस्था है। हालांकि अभी सूबे में चुनाव कराए जाने की तारीखों का पेंच फंसा है। कहा जा रहा था कि चुनाव मई में कराए जा सकते हैैं। मगर अब खबर मिल रही है कि इसे अक्टूबर या नवंबर में कराया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों मुख्यमंत्री कमलनाथ और निर्वाचन आयुक्त की मुलाकात में बैलेट पेपर से चुनाव कराने के संबंध में चर्चा हुई थी। जिसमें चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि अभी ऐसा कराया जाना संभव नहीं है। इसके लिए वक्त चाहिए होगा। इसी के मद्देनजर मई में होने वाले चुनाव छह माह के लिए टाले जा सकते हैं। उनका कहना था कि तत्काल यह कराना संभव नहीं हैं। सरकार के सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के मंत्री भी इस बात पर सहमत हैं कि भले ही चुनाव में देरी हो, लेकिन इसे बैलेट पेपर से ही कराया जाना चाहिए। ईवीएम से चुनाव कराए जाने से भाजपा गड़बड़ी कर सकती है। अब यह मामला मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास जाएगा। वही इस पर फैसला लेंगे।
वर्ष 1994 के बाद यह पहला मौका है जब प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव समय पर नहीं हो पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह राज्य सरकार द्वारा निकाय चुनावों को लेकर की गई तैयारियों का अधूरा होना है। दरअसल, मामला वार्डों के परिसीमन में ही अटका हुआ है तो दूसरी ओर भाजपा के वर्चस्व वाली निकायों को कांग्रेस हथियाना चाहती है। लिहाजा निकायों में जोड़तोड़ से सत्ता हासिल करने की अघोषित रूपरेखा भी तैयार की गई है। परिसीमन को लेकर दो दर्जन से अधिक मामले हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं। राज्य निर्वाचन आयोग सरकार की हरी झंडी का इंतजार कर रहा है। गौरतलब है कि संविधान के 73 व 74 वें संशोधन के बाद मप्र राज्य निर्वाचन आयोग को निकायों के चुनावों की जिम्मेदारी मिली थी। वर्ष 2015 में परिसीमन के कारण भोपाल समेत कुछ नगरीय निकायों में चुनाव देरी से हुए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार नगरीय निकायों पर कब्जा करने के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत काम कर रही है। इसमें निकायों के कार्यकाल खत्म होने का इंतजार किया जा रहा है। इसके बाद नगरीय विकास एवं आवास विभाग संबंधित निकायों के संचालन की जिम्मेदारी प्रशासक के रूप में अधिकारियों को सौंप रहा है। इस तरह, एक प्रकार से निकायों पर पूरी तरह से नियंत्रण राज्य सरकार का ही होगा। जबकि नियमों में यह बात साफ कही गई है कि निकायों के कार्यकाल खत्म होने से पहले ही इसकी चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए।
भोपाल नगर निगम को दो भागों में विभाजित करने के मामले पर हाईकोर्ट ने स्थगन दे दिया है। हालांकि राज्य सरकार का यह गणित वोटों के बंटवारे के लिए था, इसमें भी नियमों को ताक पर रखकर काम किया गया। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इससे जुड़े एक मामले में प्रदेश सरकार को झटका दे दिया। नगरीय विकास एवं आवास विभाग की ओर से राजपत्र जारी किया गया था। इसमें नगरीय निकायों की सीमाओं में बदलाव को लेकर सूचना संबंधित अधिकार कलेक्टर को दिए गए थे। प्रावधानों के मुताबिक शहरी सीमा में किसी भी क्षेत्र को जोडऩे या घटाने को लेकर अधिकार राज्यपाल का होता है। इसी विसंगति पर हाईकोर्ट ने स्थगन दे दिया।
नगरीय निकाय के चुनावों की अधूरी तैयारी को लेकर सरकार की मंशा पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर 70 निकायों में वार्ड परिसीमन का काम पूरा हो चुका है। उधर, विभाग में अभी तक परिसीमन के प्रस्ताव आ रहे हैं। इसके अलावा नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने कलेक्टरों से संबंधित निकायों की वार्डों की संख्या संबंधित अधिसूचना का प्रतिवेदन, वर्ष 2011 की जनगणना के तहत कुल जनसंख्या, वार्डवार जनसंख्या, वार्डवार अनुसूचित जाति व जनजातियों की जनसंख्या की जानकारी मांगी है। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि जब तक परिसीमन का काम नहीं होगा तब तक आरक्षण संबंधित कार्यवाई पूरी नहीं हो सकेगी।
प्रदेश में बीते एक महीने में कुल 278 नगरीय निकायों में प्रशासक नियुक्त किए जा चुके हैं। इसमें भोपाल की बैरसिया नगर परिषद का नाम भी शामिल है। प्रदेश में कुल 378 नगरीय निकाय हैं। नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा शेष 100 नगरीय निकायों में भी प्रशासकों की नियुक्ति की तैयारी की जा रही है। प्रशासक के रूप में संभागीय कमिश्नर, कलेक्टर व अनुविभागीय अधिकारियों (राजस्व) को संबंधित निकायों की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
पहली बार देर से होंगे चुनाव
1994 के बाद यह पहला मौका है जब प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव समय पर नहीं हो पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह राज्य सरकार द्वारा निकाय चुनावों को लेकर की गई तैयारियों का अधूरा होना है। दरअसल, मामला वार्डों के परिसीमन में ही अटका हुआ है तो दूसरी ओर भाजपा के वर्चस्व वाली निकायों को कांग्रेस हथियाना चाहती है। गौरतलब है कि संविधान के 73 व 74वें संशोधन के बाद मप्र राज्य निर्वाचन आयोग को निकायों के चुनावों की जिम्मेदारी मिली थी। वर्ष 2015 में परिसीमन के कारण भोपाल समेत कुछ नगरीय निकायों में चुनाव देरी से हुए थे। उधर, निकायों पर फतह हासिल करने के लिए प्रदेश की कांग्रेस सरकार पूरा जोर लगा रही है। वहीं, नियमों में फेरबदल व अन्य बदलावों पर भाजपा नेताओं की सिर्फ बयानबाजी ही सामने आई है। स्थानीय स्तर पर नगर निगम के बंटवारे, महापौर के अप्रत्यक्ष चुनाव जैसे मामले पर विरोध हुआ लेकिन इसे प्रदेश स्तरीय मुद्दा बनाने में भाजपा नाकाम नजर आई।
- सुनील सिंह