पि छले दो महीने में कोरोना महामारी संकट से निपटने के लिए की गई पूर्णबंदी से उद्योगों को भारी झटका लगा है। इसका सीधा असर देश की विकास दर पर पड़ा है। पिछले कुछ समय में सरकार की ओर से जो राहत और प्रोत्साहन पैकेज जारी किए गए हैं, उससे यह उम्मीद तो बंधी है कि कारोबार फिर से पटरी पर लौटेगा, लेकिन यह सरकार और उद्योगों दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। एक जून को सरकार ने दो लाख कुटीर, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को उबारने के लिए 20 हजार करोड़ रुपए की सहायता और रेहड़ी-पटरी वालों को भी फिर से कारोबार शुरू करने के लिए 10 हजार रुपए तक के कर्ज की मंजूरी दे दी है।
साथ ही, अच्छा प्रदर्शन कर रही एमएसएमई को और मजबूत बनाने के लिए पचास हजार करोड़ रुपए के इक्विटी निवेश को भी स्वीकृति दी गई है। इससे एमएसएमई उद्योगों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने का मौका मिलेगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि एमएसएमई को लाभ देने के लिए सरकार ने इसकी परिभाषा में बड़ा बदलाव किया है। इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। औद्योगिक इकाई की परिभाषा के तहत निवेश की सीमा बढ़ाकर सूक्ष्म उद्योग के लिए 1 करोड़ का निवेश और 5 करोड़ का कारोबार कर दिया है। वहीं लघु उद्योग के लिए निवेश की सीमा बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए और 50 करोड़ रुपए का कारोबार कर दिया गया है। मध्यम उद्योग के लिए 20 करोड़ रुपए निवेश और 250 करोड़ रुपए कारोबार की सीमा निर्धारित की गई है। ऐसे में देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि जो एमएसएमई देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, उनमें नई जान फूंककर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। एमएसएमई को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार ने पिछले महीने घोषित व्यापक आर्थिक पैकेज में एमएसएमई क्षेत्र के लिए 100 से ज्यादा राहतों की घोषणा की थी।
उल्लेखनीय है कि नए राहत पैकेज के तहत केंद्र सरकार किसी भी विदेशी आपूर्तिकर्ता से 200 करोड़ रुपए से कम मूल्य की वस्तु एवं सेवाओं की खरीद नहीं करेगी। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे छोटे और मझौले उद्योगों की वस्तुओं व सेवाओं की नई मांग पैदा की जा सकेगी। इसी तरह निर्माण परियोजना को पूरा करने और पंजीकरण की समयावधि को छह महीने आगे बढ़ाए जाने से डेवलपर्स को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि विभिन्न कारणों से एमएसएमई के कई कर्ज एनपीए हो गए थे। ऐसे में उनके पास नकदी जुटाने का कोई रास्ता नहीं बचा था। बैंक एमएसएमई को कर्ज नहीं दे रहे थे। लेकिन अब नए पैकेज के तहत एनपीए वाले एमएसएमई को भी नया कर्ज मिलने का रास्ता साफ हो गया है। नए आर्थिक पैकेज में छोटे उद्योगों के उत्पादन को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने के लिए जो संकल्पना की गई है, उससे स्थानीय एवं स्वदेशी उद्योगों को भारी प्रोत्साहन मिलेगा। इस पहल से सरकार के 'मेक इन इंडिया’ अभियान को एक नई ऊर्जा मिल सकती है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि वैश्विक संकट में जब दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ढह गई हैं, तब भी स्थानीय आपूर्ति व्यवस्था, स्थानीय विनिर्माण, स्थानीय बाजार देश के बहुत काम आए हैं।
यदि हम वर्तमान समय में वैश्विक ब्रांडों की ओर देखें तो पाएंगे कि वे भी कभी बिल्कुल स्थानीय ही थे। इसलिए कोरोना संकट में न सिर्फ हमें स्थानीय उत्पाद खरीदने हैं, बल्कि उनको हरसंभव तरीके से आगे बढ़ाना भी जरूरी है। हमें स्थानीय ब्रांडों और उत्पादों को अपनी अर्थव्यवस्था का आधार बनाने और उन्हें दुनियाभर में मशहूर करने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा।
हम मेक इन इंडिया अभियान को आगे बढ़ाकर स्थानीय उत्पादों को वैश्विक बना सकते हैं। आज दुनियाभर में विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाली भारत की कई कंपनियां अपनी जबर्दस्त पहचान बनाए हुए हैं। यदि हम पेट्रोलियम उत्पाद और गूगल, फेसबुक जैसी टेक कंपनियों को छोड़ दें तो अधिकांश क्षेत्रों में हमारे स्थानीय उत्पाद वैश्विक उत्पादों का रूप ले सकते हैं और दुनिया के बाजारों में छा सकते हैं। इस समय दुनिया में दवाओं सहित कृषि, प्रसंस्कृत खाद्य, परिधान, जेम्स व ज्वैलरी, चमड़ा और इसके उत्पाद, कालीन और मशीनी उत्पाद जैसी कई वस्तुओं की भारी मांग है। इसलिए इन क्षेत्रों में दुनिया का बाजार अनंत संभावनाएं लिए हुए है।
छोटे उद्योगों के समक्ष गंभीर चुनौतियां
पूर्णबंदी और श्रमिकों के पलायन ने छोटे उद्योगों के समक्ष गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। हालांकि सरकार ने एमएसएमई इकाइयों को बगैर किसी जमानत के आसान बैंक कर्ज सहित कई राहतों का ऐलान किया है, लेकिन अधिकांश बैंक कर्ज में डूबने की आशंका के मद्देनजर कर्ज देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। स्थिति यह है कि करीब सवा छह करोड़ इकाईयों में से आधी से अधिक इकाईयां उत्पादन शुरू भी नहीं कर पाई हैं। जिनमें काम शुरू हुआ है, वे भी काफी कम क्षमता के साथ परिचालन कर रही हैं। कच्चे माल की दिक्कतें उनके सामने खड़ी हैं और आपूर्ति श्रृंखला टूट गई है। मजदूरों की कम उपलब्धता के कारण कारखानों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है। पहले ही सुस्त चल रही अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर एमएसएमई के आधार पर बढ़ाना कोई मामूली काम नहीं है। 30 मई को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में देश की विकास दर 4.2 फीसदी के साथ ग्यारह वर्ष के निचले स्तर दर्ज की गई। इस तरह जहां कोविड-19 से पहले ही अर्थव्यवस्था की गति सुस्त रही, वहीं अब प्रमुख वैश्विक संगठनों और कई अर्थविशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच वित्त वर्ष 2020-21 में वृद्धि दर ऋणात्मक रहेगी।
- पारस कुमार