05-Apr-2021 12:00 AM
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कोरोनावायरस के संक्रमण के कारण करीब एक साल बाद मप्र विधानसभा का सत्र सुचारू रूप से चला। हालांकि यह बजट सत्र भी कोरोना के कारण 13 दिन ही चल सका, लेकिन इन चंद दिनों में सरकार ने नए प्रतिमान गढ़ दिए। सत्र के दौरान विपक्ष के विरोध के बावजूद सत्तापक्ष ने सभी आवश्यक कार्य समयसीमा में पूरी कर लिए। वहीं सभी विधेयक भी पारित करवाए गए।
वैसे तो कोरोनावायरस के आगमन के साथ ही संसद एवं देश के विभिन्न राज्यों में विधानसभाओं के सुचारू संचालन पर एक तरह का ग्रहण लगा हुआ है, लेकिन मप्र की 15वीं विधानसभा ने चंद दिनों के सत्र में कई नए प्रतिमान गढ़ दिए। हालांकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए 13 दिन में ही विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। लेकिन 2021-22 का बजट और सभी विधेयकों को पारित कर दिया गया। बजट पारित करने से पहले विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा हुई। इसके साथ ही मप्र विनियोग विधयेक 2021 और वित्त विधेयक 2021 को मंजूरी दी गई। सरकार ने 2 मार्च को 2.41 लाख करोड़ का बजट विधानसभा में पेश किया था। बता दें कि बजट सत्र 26 मार्च तक होने की अधिसूचना जारी हुई थी। लेकिन कोरोना के कारण उसे पहले ही स्थगित करना पड़ा।
विधानसभा का बजट सत्र जितने दिन भी चला उतने दिन सदन में सारे काम निपटाए गए। विपक्ष के तानों के बीच सरकार ने नवाचार के अभिनव कदम उठाकर न केवल कोरोना संकट से लड़ने का साहस दिखाया, बल्कि स्पष्ट कर दिया कि चुनौतियों से जूझने के लिए उसके पास इच्छाशक्ति के साथ नीति और योजनाएं भी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह वर्ष 2021-22 के बजट में इसका खाका खींचा वह उनकी दूरदृष्टि का ही परिचायक है। पहली बार राज्य में लव जिहाद रोकने के लिए धाॢमक स्वतंत्रता विधेयक को इसी सत्र में मंजूरी दी गई। इसी तरह दवा और खाद्य वस्तुओं में मिलावट रोकने के लिए दंड विधि संशोधन विधेयक को भी कानून का रूप दिया गया।
गौर करें तो 22 फरवरी से 16 मार्च के बीच कुल 13 दिन तक चला विधानसभा का यह सत्र छाप छोड़ने में कामयाब रहा। यह सरकार की उपलब्धि ही है कि कम दिनों के बजट सत्र में कई नवाचार हुए तो गंभीर चर्चाएं भी हुईं। प्रतिपक्ष ने जहां जनहित के मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की तो सरकार ने भी वस्तुस्थिति सामने रखकर उसे निरुत्तर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कमलनाथ सरकार के पतन के बाद से ही विधानसभा को नियमित अध्यक्ष की दरकार थी। कोरोना के गहराते संकट के बीच अनेक कोशिशों के बावजूद जब अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया तो सरकार ने काम चलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाने का निश्चय किया। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा प्रोटेम स्पीकर बनाए गए। विधानसभा की परंपरा के अनुसार प्रोटेम स्पीकर केवल प्रथम सत्र में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने एवं नियमित विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव संपन्न कराने के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन कोरोनाकाल की परिस्थितियों ने लंबे समय अर्थात् 10 माह तक रामेश्वर शर्मा को इस पद पर बनाए रखा। उन्होंने नियमित अध्यक्ष की तरह ही अपने दायित्व का निर्वहन किया। ऐसे दुर्लभ उदाहरण कम ही मिलेंगे। जैसे ही स्थिति थोड़ी सामान्य दिखने लगी तो शिवराज सरकार ने चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराकर विधानसभा को गिरीश गौतम के रूप में नियमित अध्यक्ष दे दिया।
राज्य में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव आम सहमति से कराने की परंपरा रही है, जो कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के समय टूट गई थी। तब कांग्रेस ने विपक्ष की असहमतियों को दरकिनार कर नर्मदा प्रसाद प्रजापति को उम्मीदवार बना दिया था। विरोध में भाजपा ने जगदीश देवड़ा को उतार दिया था। तब सत्तापक्ष और विपक्ष के आमने-सामने आने का बड़ा कारण शक्ति परीक्षण भी था, जिसमें अंतत: नर्मदा की जीत हुई थी।
इस बार बजट सत्र के दौरान विधानसभा उपाध्यक्ष को लेकर भी मामला गर्माया रहा। कांग्रेस लगातार मांग करती रही कि विधानसभा उपाध्यक्ष किसी कांग्रेसी विधायक को बनाया जाए। लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित पूरी भाजपा का एक ही जवाब था कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में भाजपा को उपाध्यक्ष का पद न देकर परंपरा को तोड़ा है। इसलिए किसी भी कीमत पर कांग्रेस का विधानसभा उपाध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा, इसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा उपाध्यक्ष का मनोनयन नहीं हो पाया।
इस सत्र में प्रश्नकाल की नई व्यवस्था भी चर्चा में रही। अध्यक्ष ने व्यवस्था दी कि कई नवनिर्वाचित विधायक अब तक सदन में बोल नहीं सके हैं, इसलिए प्रश्नकाल में सिर्फ उन्हें ही सरकार से सवाल पूछने का मौका मिलेगा। यह भी व्यवस्था बनाई गई कि नए सदस्यों के सवाल पूछते समय यदि त्रुटि होती है तो भी कोई वरिष्ठ विधायक हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि पीठ की ओर से संबंधित विधायक को ही त्रुटि सुधारने का मौका दिया जाएगा। इस सत्र में पक्ष-विपक्ष के बीच संवाद का स्तर भी सुधरा हुआ था। कांग्रेस सरकार गिरने के बाद माना जा रहा था कि सामान्य रूप से होने वाले इस सत्र में दोनों पक्षों के बीच की तल्खी दिखेगी। कांग्रेस सत्ता जाने की वजह से आक्रामक रहेगी और स्पष्ट बहुमत होने के कारण सत्तारूढ़ दल भी पलटवार करेगा, पर दोनों के बीच समझदारी ऐसी बनी कि सदन की कार्यवाही सामान्य तरह से चली। सत्तारूढ़ दल ने नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ को पूरा मान-सम्मान दिया तो उन्होंने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति सम्मान दिखाने में कमी नहीं छोड़ी। ऐसा दोनों नेताओं के लंबे संसदीय अनुभव के कारण ही संभव हो सका।
सद्भाव की शुरुआत सत्र के प्रथम दिन ही हो गई, जब राज्यपाल आनंदी बेन पटेल अभिभाषण के लिए विधानसभा पहुंचने वाली थीं। उनकी अगवानी के लिए पहुंचे नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ उस स्थान पर खड़े हो गए, जहां सदन के नेता मुख्यमंत्री को होना चाहिए था। यह देख मुख्यमंत्री उनके सामने रेड कार्पेट से नीचे खड़े हो गए और बातचीत करने लगे। कुछ समय में ही कमलनाथ का ध्यान उस तरफ गया तो वह मुख्यमंत्री का हाथ पकड़कर उनके स्थान पर ले गए। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर निशाने साधे, पर गरिमा का ध्यान रखा।
विधानसभा सत्र स्थगित किए जाने से पहले बजट सत्र में पेश किए जाने वाले सभी विधेयक एक साथ पटल पर रखे गए और सभी विधेयक पारित हो गए। इसके अलावा वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने सदन में घोषणा करते हुए कहा कि 2020-21 और 2021-22 में कोरोना के चलते सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना में इस बार कोई धनराशि नहीं दी जाएगी। दरअसल, बजट सत्र खत्म होने की बड़ी वजह कोरोना का बढ़ता संक्रमण माना जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में 4 विधायक और विधानसभा के 5 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इन चार विधायकों में विजय लक्ष्मी साधौ, अमर सिंह, निलय डागा और देवेंद्र वर्मा पॉजिटिव पाए गए थे। ये चारों विधायक सत्र के दौरान सदन में मौजूद थे। ऐसे में विधानसभा का सत्र स्थगित करने के संकेत मिलने लगे। ऐसे में बढ़ते कोरोना के चलते कार्य मंत्रणा समिति की बैठक बुलाई गई, इस बैठक में फैसला लिया गया कि कोरोना बढ़ते प्रकोप के चलते विधानसभा का बजट सत्र समय से पहले ही स्थगित कर दिया जाए।
विधानसभा में ऐसा पहली बार हुआ जब प्रश्नकाल निर्धारित समय से 2 मिनट पहले समाप्त कर दिया गया। इसको लेकर कांग्रेस विधायकों ने आपत्ति दर्ज कराई। दरअसल आसंदी पर सभापति लक्ष्मण सिंह थे और सवाल बंडा विधायक सरवर लोधी ने किया था। लेकिन उससे पहले ही गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा सदन से उठकर बाहर चले गए, जबकि प्रश्नकाल के लिए 2 मिनट का समय बाकी था। सभापति ने प्रश्नकाल समाप्त करने की घोषणा कर दी। इसको लेकर कांग्रेसी विधायकों ने कहा कि यह विधानसभा के नियम के विरूद्ध है। विधायक सवाल करने के लिए खड़े हुए, लेकिन जवाब देने से पहले मंत्री सदन से बाहर चले गए। ऐसे कुछ मंजर भी विधानसभा में देखने को मिले। लेकिन विपक्ष सरकार को घेरने में सफल नहीं हो पाया। कुछ मिलाकर इस बार का विधानसभा सत्र कई मामलों में अलग रहा।
ऐसा पहली बार हुआ
मप्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर सदन पहुंचे विधायकों को सवाल पूछने का मौका दिया गया। इस दौरान 14 विधायकों ने अपने सवाल पूछे। संबंधित विभाग के मंत्रियों ने जवाब दिए। खास बात यह है कि लॉटरी में 14 में से 13 विधायक कांग्रेस के थे। वहीं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के प्रति सम्मान के प्रतीक के रूप में मप्र विधानसभा में प्रश्नकाल की कार्रवाई एक महिला स्पीकर द्वारा संचालित की गई। सदन की बैठक शुरू होते ही महिला मार्शल के साथ विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम आसंदी तक पहुंचे। इसके बाद अध्यक्ष ने घोषणा की कि भीकनगांव से कांग्रेस की विधायक झूमा सोलंकी प्रश्नकाल के दौरान सदन संचालित करेंगी। इसके बाद सोलंकी ने स्पीकर की कुर्सी पर बैठकर प्रश्नकाल के दौरान सदन की कार्रवाई संचालित की। संसदीय कार्य और गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने समाज में महिलाओं के योगदान को याद करते हुए बताया कि उन्होंने एक महिला आरक्षक को सम्मानित करते हुए आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान के रूप में उसे गृहमंत्री की कुर्सी पर बिठाया।
पूरे विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष कमजोर नजर आया
देश और दल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुदुचेरी जैसे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं। इन लगभग सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक प्रमुख दलों व उनके नेताओं ने अपनी ताकत झौंक रखी है। लेकिन अजब-गजब मप्र की भांति यहां की प्रदेश कांग्रेस को समझना भी एक पहेली की भांति है। कांग्रेस सदन से लेकर सड़क तक कमजोर नजर आ रही है। सदन में वह किसी भी मुद्दे को लेकर सरकार को घेर नहीं पाई। चाहे पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की महंगी होती कीमतों का मामला हो या दिल्ली में लेकर मप्र में चल रहे किसान आंदोलन का मामला, कमलनाथ की कांग्रेस भाजपा सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा पा रही है। दिग्विजय सिंह अलबत्ता गाहेबगाहे भाजपा सरकार से लड़ने का ऐलान करते दिखते हैं लेकिन कमलनाथ जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए सड़क से सदन तक संघर्ष की मुद्रा में नजर नहीं आते। कांग्रेस की इस कमजोरी का फायदा सत्तारूढ़ भाजपा ने सदन में और सदन के बाहर भी खूब उठाया। दरअसल, कांग्रेस में विश्वास की कमी है। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ में नेतृत्व की कमी कई अवसरों पर सामने आ चुकी है।
- कुमार राजेन्द्र