बढ़ते वन्यजीव, घटते जंगल
17-Mar-2021 12:00 AM 943

 

मप्र में मानव और वन्यप्राणियों के बीच संघर्ष का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण सीधी के संजय डुबरी पार्क के पास हैंकी गांव में पिछले माह हुई वो घटना है, जिसमें उत्पात पर उतारू 7 हाथियों के हिंसक झुंड ने दादा और उसके दो पोतों को कुचल डाला। घटना के बाद आक्रोशित लोगों की भीड़ ने रात में ही हाथियों को खदेड़े जाने की मांग को लेकर सड़क पर जाम कर दिया। यह कोई पहली घटना नहीं है। पहले भी अनूपपुर के मझौली गांव में खेत में काम करते हुए तीन मजदूरों को हाथी रौंद चुके हैं और सुई डांड गांव में खेत में सो रहे किसान को सूंड से उठाकर चट्टान पर फेंक चुके हैं। अभी तक शहडोल, अनूपपुर, उमरिया में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की जान यह हाथियों के हिंसक झुंड ले चुके हैं और पिछले 3 साल से वे फसलें तबाह कर रहे हैं, घरों को रौंद रहे हैं।

समस्या ये है कि मप्र सरकार के पास छत्तीसगढ़, झारखंड से आए इन हिंसक हाथियों को वापस भेजने की कोई योजना नहीं है। वन विभाग की बेबसी यह है कि हाथियों के लिए उसके पास कोई फंड नहीं है। एलिफेंट प्रोजेक्ट फाइलों में अटका है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इन हाथियों को यहां रहते लंबा अरसा हो चुका है, इसलिए इनकी वापसी बेहद मुश्किल है। इन हालातों में संकट से जूझ रहे लोगों और हाथियों के बीच संघर्ष छिड़ने का खतरा पैदा हो गया है।

बता दें कि मप्र में वन्यजीवों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, उन्हें यहां की जैव विविधता रास आ रही है। यह बात हमें खुश कर सकती है, लेकिन विरोधाभास यह है कि जंगलों की अंधाधुंध कटाई के चलते उनके रहने की जगह कम होती जा रही है। कहीं अलग-अलग परियोजनाओं के काम की वजह से, तो कहीं इमारतों की शक्ल में सीमेंट का जंगल खड़ा करने के स्वार्थ में ये जंगल काटे जा रहे हैं। नतीजा बाघों के बीच टेरेटरी को लेकर संघर्ष, तेंदुओं, हाथियों के रहवासी इलाकों मे घुसने और हिंसक होने के रूप में सामने आ रहा है। जब उनके सामने भूख होगी और सामने कोई विकल्प नहीं होगा, तो ये वन्यप्राणी रहवासी इलाकों में ही घुसेंगे और कहां जाएंगे।

कहने को देश में बाघ के बाद सर्वाधिक तेंदुए मप्र में हैं, राज्य में इनकी संख्या 3421 है, लेकिन तेंदुओं की सालभर में 48 से ज्यादा मौतें हो चुकी है। इसी प्रकार करीब 3 दर्जन बाघ मारे जा चुके हैं। यह मौतें राज्य में बढ़ते वन्यजीवों के शिकार और मानव-तेंदुए के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण हो रही हैं। आजकल शायद ही कोई ऐसा दिन जाता है, जब मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की खबर सुनने को नहीं मिलती। कहीं कोई वन्यप्राणी हिंसक होकर बस्ती में घुस जाता है, तो कहीं लोग ऐसे जानवर को मार देते हैं। यह संघर्ष हालिया वर्षों में काफी बढ़ गया है।

जहां तक हाथियों का सवाल है, तो शहडोल जिले के ब्यौहारी ब्लॉक को ही लें। यहां के दर्जनभर से ज्यादा गांवों में हाथियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। यह इलाका जंगल और नेशनल पार्क से घिरा हुआ है। हालत यह है कि 30 से ज्यादा हाथियों का झुंड कहीं फसलें, उजाड़ देता है, तो कहीं घरों में तोड़फोड़ करता है। इन दर्जनभर गांवों के लोग हाथियों के तांडव के डर से रात को चैन की नींद नहीं सो सकते। कोई खेत की रखवाली कर रहा है तो कोई आग जलाकर घरों के नजदीक हैं। इसके बाद भी हाथियों का झुंड नुकसान पहुंचा रहा है। बता दें कि झारखंड, छत्तीसगढ़ से पहुंचे 30-40 हाथियों के इस झुंड ने लंबे समय से बांधवगढ़ में डेरा डाल रखा है और वापस लौटने का नाम नहीं ले रहा।

बांधवगढ़ में पहली बार ऐसा हो रहा है कि बाघों के बीच जंगली हाथी हैं। ये हाथी अब गांवों में भी पहुंच रहे हैं। इससे जहां एक ओर इंसानों को खतरा है, वहीं दूसरी ओर हाथियों को भी खतरा है, क्योंकि लोगों में आक्रोश है, वह हाथियों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, उनके साथ संघर्ष छिड़ सकता है। ह्यूमन डाइमेंशन्स ऑफ वाइल्ड लाइफ शोध पत्रिका के मुताबिक देशभर में 32 वन्यजीवों की प्रजातियां ऐसी हैं, जो अभयारण्यों के आसपास रहने वाले लोगों के जान-माल को गंभीर नुकसान पहुंचा रही हैं। मप्र में हम देखें तो हाथी, नीलगाय, जंगली सूअर, बाघ, तेंदुए समेत वन्यजीवों के आतंक से लोग परेशान रहते हैं। वन्यजीवों के मुद्दे पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक हाथियों सहित अन्य वन्यप्राणियों के मानव संघर्ष से निजात पाने के लिए मप्र सरकार और वन विभाग के पास कोई ठोस योजना है ही नहीं। मप्र में हाथियों के विचरण के लिए जगह नहीं है, इसलिए वह गांवों में घुस रहे हैं, फसलें नष्ट कर रहे हैं, लोगों को कुचल रहे हैं। ब्यौहारी और संजय डुबरी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के आसपास वाले गांवों में दर्जनों हाथियों का घुसकर आतंक मचाना, जान-माल को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं तो एकदम ताजा है, जो इंगित करती हैं कि मानव-वन्यजीवों के बीच किस कदर संघर्ष बढ़ता ही जा रहा है।

विभाग के पास कोई ठोस योजना नहीं

3 साल से छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगली हाथियों ने मप्र में डेरा डाल रखा है। 30 हाथियों का झुंड अब 54 से ज्यादा का हो चुका है। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान और संजय डुबरी टाइगर रिजर्व को जंगली हाथियों ने कॉरिडोर बना लिया है। इन हाथियों को हटाने के लिए प्रोजेक्ट ऐलिफेंट फाइलों में अटका है, प्रोजेक्ट को अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक करना भी बेहद जरूरी है। इसके लिए इको डेवलपमेंट कमेटी बनाकर लोगों को वन्यजीवों के हमले से बचने के लिए जरूरी सावधानी बरतने के बारे में समझाया जा सकता है, लेकिन अधिकांश कमेटियां कागजों पर चल रही हैं या फंड और संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं।

- श्याम सिंह सिकरवार

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