लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे प्रदेश के साढ़े सात करोड़ लोगों पर एक और भार डालने की तैयारी चल रही है। मप्र पावर मैनेजमेंट व अन्य बिजली कंपनियों ने मप्र विद्युत नियामक आयोग को वर्ष 2020-21 के लिए विद्युत दर का निर्धारण करने के लिए जो प्रस्ताव भेजा है, उस पर आयोग विचार कर रहा है। अगर उस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई तो बिना बिजली खरीदे ही कंपनियों को 3329 करोड़ रुपए का भुगतान सरकार को करना पड़ेगा। इसका भार उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा।
कंपनियों की इस प्रक्रिया पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने आपत्ति दर्ज कराई है। आंदोलन के संयोजक आलोक अग्रवाल ने बताया कि याचिका के अध्ययन से पता चलता है कि 8 बिजली कंपनियों से एक भी यूनिट बिजली खरीदे बिना 3,329 करोड़ रुपए दे दिए जाएंगे। इसके साथ ही महंगी बिजली खरीदकर
3 कंपनियों को 2,055 करोड़ रुपए दिए जाएंगे और न खरीदी गई बिजली के लिए भी 516 करोड़ रुपए पॉवर ग्रिड कॉर्पोरेशन को फिक्स्ड चार्ज देना होगा। गैरवाजिब मांग को खारिज कर बचे 5,900 करोड़ रुपए से घरेलू उपभोक्ताओं को 3.80 रुपए यूनिट की कमी होना चाहिए।
प्रदेश में कुल 10,627 करोड़ यूनिट 2.5 रुपए यूनिट की बिजली उपलब्ध है। प्रदेश की कुल खपत 7,551 करोड़ यूनिट है। खपत के बाद भी 3,076 करोड़ यूनिट बिजली सरप्लस है। बिजली कंपनियों की 191 करोड़ यूनिट न खरीदने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए कंपनियों से बिजली खरीदी को मंजूरी नहीं देना चाहिए। बिजली कंपनियों की गैरवाजिब मांगों को न मानने से 5,900 करोड़ रुपए की बचत होगी। इससे घरेलू, व्यावसायिक एवं औद्योगिक बिजली की दरों में कमी की जा सकती है।
मप्र विद्युत नियामक आयोग में दायर याचिका में कहा गया है कि बिजली कंपनियों को राज्य सरकार बिना एक यूनिट खरीदे ही 2020-21 के दौरान बड़ी धनराशि का भुगतान करेगी। प्रदेश सरकार यदि राज्य की सरकारी बिजली कंपनियों को 2020-21 के दौरान दी जाने वाली समझौते की राशि (जिसके तहत एक भी यूनिट खरीदे बिना ही देनी पड़ती है) रद्द कर दे तो राज्य के बिजली उपभोक्ताओं को वर्तमान बिजली दर के मुकाबले उसे 3.80 रुपए प्रति यूनिट कम देने पड़ेंगे। मिली जानकारी के अनुसार मप्र विद्युत नियामक आयोग में यह याचिका लॉकडाउन शुरू होने के पूर्व लगाई गई थी लेकिन पिछले तीन माह से इस पर सुनवाई नहीं हुई है। याचिकाकर्ता के अनुसार इस याचिका पर इस माह के अंत में सुनवाई होने की उम्मीद है।
याचिका के अनुसार राज्य की आठ बिजली कंपनियों से एक भी यूनिट बिजली खरीदे बिना उन्हें 3,329 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। इसके साथ ही इन्हीं कंपनियों में से तीन कंपनियों से अत्यंत महंगी बिजली खरीदी जाएगी। इसकी राशि होगी 2,055 करोड़ रुपए और न खरीदी गई बिजली के भी 516 करोड़ रुपए पॉवर ग्रिड कॉर्पोरेशन को फिक्स चार्ज देना होगा। याचिकाकर्ता ने मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग में दायर कर अपनी आपत्ति दर्ज कर मांग की है कि इस गैरवाजिब व बिजली उपभोक्ताओं पर बोझ को अस्वीकार कर राज्य के बिजली उपभोक्ताओं को वर्तमान बिजली दर में कमी करने की स्थिति बनाई जाए। याचिका में अत्यंत महंगी बिजली खरीदी के संबंध में यह भी मांग की गई है कि एनटीपीसी मोदा दो, एनटीपीसी कवास और सिंगरौली कंपनियों से अत्यंत महंगी खरीदी जाएगी। इन तीन कंपनियों से कुल 191 करोड़ यूनिट बिजली का भुगतान 2,055 करोड़ रुपए होगा। ऐसे में जबकि वर्तमान में देश में उपलब्ध सरप्लस बिजली लगभग 2.5 रुपए प्रति यूनिट की दर से आसानी से उपलब्ध है तो इतनी महंगी बिजली खरीदकर बिजली उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार डाला जाएगा।
बिना एक यूनिट बिजली खरीदे कंपनियों की सूची
विद्युत कंपनी राशि (करोड़ में)
एनटीपीसी मोदा यूनिट 1 189
एनटीपीसी मोदा गंधार 90
एनटीपीसी सोलापुर 314
एनटीपीसी गदरवाडा 1 व दो 1,180
एनटीपीसी खरगौन 1 व दो 974
टोरेंट पॉवर 62
जेपी बिना पॉवर 505
बीएलए पॉवर 15
कुल 3,329
5,900 करोड़ की होगी बचत
याचिका में बताया गया है कि राज्य के पास वर्तमान में 10,627 करोड़ यूनिट बिजली उपलब्ध है और प्रदेश की कुल खपत 7,551 करोड़ यूनिट है। इस प्रकार प्रदेश के पास संपूर्ण खपत के बाद भी 3,076 करोड़ यूनिट बिजली सरप्लस के रूप में बच रही है। अत: ऐसे में अत्यंत महंगी 191 करोड़ यूनिट बिजली नहीं खरीदने पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। याचिका में मांग की गई है कि आयोग इन कंपनियों से खरीदी जाने वाली बिजली की मंजूरी न दे। उपरोक्त बिजली नहीं खरीदने से राज्य सरकार के राजस्व में कुल 5,900 (3845+2055) करोड़ रुपए की बचत होगी। उन्होंने कहा कि राज्य के घरेलू उपभोक्ता 2020-21 के दौरान लगभग 15600.9 करोड़ यूनिट की खपत करेगा। यदि उपरोक्त राशि यानी 5,900 करोड़ रुपए कंपनियों को न दी जाए तो इस पैसे से उपभोक्ताओं की बिजली दर में 3.80 रुपए प्रति यूनिट तक की कमी संभव है।
- श्याम सिंह सिकरवार