मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौ सरक्षण के लिए अनुदान का जो मॉडल अपनाया है उसे देशभर में सराहा जा रहा है। गौरतलब है कि मप्र सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती करने वाले देसी गोपालकों को प्रतिमाह 900 रुपए देने की घोषणा की गई है। अब बिहार भी मप्र के इस मॉडल को लागू करने जा रहा है। बिहार में प्रति गायपालक को 10,800 रुपए देने की योजना बनाई गई है।
गौरतलब है कि देश में खेती की लागत को कम करने एवं रासायनिक खेती से हो रहे नुकसान को कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। तो वहीं अब मप्र की तर्ज पर बिहार में भी देसी गायों को संरक्षण दिया जाएगा। अभी बिहार सरकार मप्र मॉडल का अध्ययन करा रही है। सारे तथ्यों पर विचार के बाद गायों के संरक्षण का कोई आदर्श मॉडल अपनाया जाएगा। यानी कि अगर आप भी गौपालक या फिर गौ पालने की इच्छा रखते हैं तो यह खबर आपको खुश कर देगी। बिहार में गायों के संरक्षण के लिए गोशालाओं के साथ निजी गोपालकों को भी प्रोत्साहित करने की तैयारी है। इस संबंध में उपमुख्यमंत्री व पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने प्रदेश की सभी गोशालाओं के अध्यक्षों और सचिवों की बैठक बुलाई है। बिहार में गोवंश के संरक्षण-संवर्धन के लिए आत्मनिर्भर बिहार सात निश्चय के तहत कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। पशु विज्ञान विश्वविद्यालय गोवंश विकास संस्थान की स्थापना की प्रक्रिया पूरी की जा रही है।
वहीं बात करें बिहार में सरकारी गोालाओं की तो अभी 33 जिलों में केवल 86 सरकारी गोशालाएं मौजूद हैं। इन सभी गोशालाओं का सरकार ने विस्तृत ब्यौरा मांगा है। इसके साथ ही गोशालाओं की भूमि, उसकी स्थिति और पशुओं की संख्या आदि की जानकारी मांगी गई है। आपको बता दें कैमूर, अरवल, बांका, शिवहर और पूर्णिया जिले में अभी एक भी सरकारी गोशाला नहीं है। तो वहीं तारकिशोर प्रसाद का कहना है कि ज्यादा दूध लेने की होड़ में देसी गायें उपेक्षित हो रही हैं। उनका संरक्षण-संवर्धन के लिए बंद गोशालाओं को शुरू कराने और जरूरत के अनुसार नई गोशाला बनाना जरूरी है। इसके साथ ही उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार सीमांचल इलाके में गोवंश की तस्करी हर हाल में रोकेगी। तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि प्रदेश में गोवंश को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में है। सरकार पशु चिकित्सकों के खाली पदों को भरने की भी कोशिश में लगी हुई है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही पशु चिकित्सालयों में पशु चिकित्सक तैनात कर दिए जाएंगे।
एक दौर था, जब गांवों में ज्यादातर लोग, खासकर किसान पशुपालन करते थे। तब हर गांव में चारागाह भी होते थे और खेतों में भी हरा चारा व गेहूं-धान कटने पर भूसा-पुआल जैसा सूखा चारा भी भरपूर होता था। क्योंकि पशुपालक और किसान इस चारे को सालभर के लिए संचित करके रखते हैं। समय बदला, सोच बदली और आधुनिक खेती होने से सूखे चारे की कमी होती गई। इसके बावजूद मप्र इन दिनों दुधारू प्रदेश बना हुआ है। यहां दूध की नदियां बह रहीं हैं। दूध उत्पादन में देश में तीसरे स्थान वाले मप्र में अब रिकार्ड दूध उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। बताया जा रहा है कि इस वर्ष राज्य में दूध उत्पादन 19 हजार टन का आंकड़ा पार कर चुका है हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है। राष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्ट जारी होने के बाद ही सही स्थिति सामने आएगी। स्थिति ये है कि प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 545 ग्राम प्रतिदिन पर पहुंच गई है। दूध की यह उपलब्धता राष्ट्रीय औसत 405 ग्राम से भी ज्यादा है। प्रदेश में 10 हजार 205 दुग्ध सहकारी समितियां हैं जिनसे दूध का संकलन बढ़ाया गया। हाल ही में गुजरे वित्तीय वर्ष 2021-22 में प्रदेश को यह उपलब्धि प्राप्त होने की उम्मीद है।
जानकारी के अनुसार प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2016-17 में 13 हजार 445 टन दूध उत्पादन हो रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में बढ़कर 17 हजार 999 टन हो गया। प्रदेश के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि वित्तीय वर्ष 2015-16 से पहले प्रदेश का दूध उत्पादन 12 हजार टन से भी कम था। जिसे देखते हुए सरकार ने दूध उत्पादन बढ़ाने के प्रयास शुरू किए। गाय-भैंस को खुरा (पैर और मुंह में होने वाला रोग) सहित अन्य बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। पौष्टिक पशु आहार की इकाइयां खुलवाई गईं। प्रदेश में सिंचाई रकबा और फसल उत्पादन बढ़ने से भी गाय-भैंस की सेहत सुधरी है। इसी का असर है कि प्रदेश में महज चार साल में साढ़े चार हजार टन से अधिक दूध उत्पादन बढ़ गया।
10,205 समितियां कर रही दूध संकलन
प्रदेश में वर्ष 2001 में 190 दुग्ध सहकारी समितियां थीं, जिन्हें बढ़ाकर 10 हजार 205 किया गया। जाहिर है दूध का संकलन बढ़ गया। जिससे दूध उत्पादन के सही आंकड़े आना शुरू हुए। इन समितियों ने कोरोना संक्रमणकाल में भी दूध संकलन का सिलसिला जारी रखा। भारत सरकार की देखरेख में हर साल दूध उत्पादन का सर्वे कराया जाता है। पिछले वित्तीय वर्ष में भी सर्वे हुआ है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस बार दूध उत्पादन का आंकड़ा 19 हजार टन को पार कर जाएगा। पशुपालन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि सर्वे के आंकड़े केंद्र स्तर पर घोषित किए जाते हैं। संचालक पशुपालन डॉ. आरके मेहिया का कहना है कि प्रदेश में पालतू पशुओं के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। सिंचाई का रकबा बढ़ने, कृषि उत्पादन बढ़ने से प्रदेश में दूध उत्पादन बढ़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी उत्पादन बढ़ने के संकेत हैं।
- लोकेंद्र शर्मा