सिंधिया को भाजपा में मिलेगी तवज्जो?
03-Apr-2020 12:00 AM 365

सोनिया, राहुल और प्रियंका के बाद गांधी परिवार के चौथे सदस्य के रूप में जाने जाते थे सिंधिया। सिंधिया के लिए भाजपा में जाना मजबूरी हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं, दिग्विजय और कमलनाथ ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि महाराज साहब को कांग्रेस में घुटन मसहूस होने लगी थी।

कांग्रेस को 18 साल देने वाले ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के हो चुके हैं। राजमाता के बाद वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे पहले से ही भाजपा में हैं। वहीं ज्योतिरादित्य यानि महाराज भी अब भाजपा की आवाज को बुलंद करेंगे। लेकिन क्या भाजपा में सिंधिया की महत्वाकांक्षाओं को सम्मान मिलेगा? वहीं सवाल यह भी उठता है कि ऐसा भी क्या हुआ जो ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा का दामन थामने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे जुड़े दो बड़े पहलुओं को समझा जाना जरूरी है। पहला पहलू कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी से जुड़ा है तो दूसरा सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कमजोरियों से। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी गांधी परिवार में बिना रोक-टोक एंट्री थी। एक अर्थ में वो सोनिया, राहुल और प्रियंका के बाद गांधी परिवार के चौथे सदस्य के रूप में जाने जाते थे। कांग्रेस में इतनी मजबूत स्थिति में होने के बाद भी ज्योतिरादित्य घुटन महसूस कर रहे थे। उनकी घुटन का कारण मध्यप्रदेश की सियासत के दो बड़े और पुराने चेहरे दिग्विजय सिंह और कमलनाथ रहे। दोनों की जोड़ी ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि महाराज साहब को अपने ही मध्य प्रदेश और कांग्रेस में घुटन महसूस होने लग गई।

अब सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ राज्यसभा में जाने को लेकर ज्योतिरादित्य इतने अधीर हो गए थे कि उन्होंने अपनी मातृ पार्टी को नमस्ते कह दिया। यहां तक कि वो अपने प्रिय सखा राहुल गांधी से भी मिलने नहीं गए। सिंधिया ने तो इतना तक कह दिया कि उन्होंने समय मांगा था लेकिन गांधी परिवार से उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया। अगर ऐसा रहा है तो फिर वाकई सिंधिया का कांग्रेस में कोई खास महत्व नहीं बचा था, लेकिन क्या भाजपा में सिंधिया की महत्वाकांक्षाओं को सम्मान मिलेगा?

नहीं, ऐसा लगता नहीं है, सिंधिया के लिए भाजपा में जाना मजबूरी हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं है कि वो सिंधिया की शर्तों को ज्यों का त्यों माने। हां, सिधिंया को भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मौका जरूर मिल सकता है। राज्यसभा के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया जा सकता है लेकिन यह सिंधिया के लिए कोई नई बात नहीं है। वो चार बार सांसद रहने के साथ कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, इसलिए उनके जीवन के लिए यह कोई बड़ी उपलब्धि नहीं होगी। दूसरी बात भाजपा में समर्पित नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। इन नेताओं को साइड में करके कोई भी भाजपा में अपना स्थान नहीं बना सकता। यह तो जग जाहिर है कि भाजपा अपने महत्वपूर्ण दायित्व संघ पृष्ठभूमि के नेताओं को ही सौंपती है।

ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया को तत्कालिक सियासी फायदा तो भाजपा से मिल सकता है, लेकिन लंबे समय में ज्योतिरादित्य को भाजपा में बड़ा मुकाम मिलना मुश्किल है। खुद सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे मध्य प्रदेश में भाजपा की नेता हैं लेकिन बड़ी भूमिका में नहीं है। वहीं उनकी एक और बुआ वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रहने के बाद भी भाजपा में जिन पस्थितियों से गुजर रही हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है। वसुंधरा के कहने से न तो राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष तय हुआ और न ही संगठन में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का उन्हें मौका मिल पा रहा है। असल में कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक पृष्ठभूमि में बड़ा भारी अंतर है। कांग्रेस का कमजोर दौर चल रहा है इसलिए कोई भी नेतृत्व को आंखे दिखा सकता है या फिर पार्टी को नुकसान पहुंचाने की धमकी दे सकता है। वहीं भाजपा का दौर सुदृढ़ चल रहा है। इस समय भाजपा किसी भी दूसरी पार्टी के मुकाबले बहुत मजबूत स्थिति में है। यही कारण है कि वसुंधरा राजे को खामोशी के साथ केंद्रीय नेतृत्व के निर्णयों के अनुसार चलना पड़ रहा है।

अगर भाजपा में सिंधिया की हैसियत का आंकलन करें तो सबसे पहले उन्हें मप्र के दिग्गज नेताओं से पार पाना होगा। इन नेताओं में नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया प्रमुख हैं। नरेंद्र सिंह तोमर मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। तोमर ग्वालियर चंबल संभाग के दिग्गज नेता हैं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव राज्य के इसी क्षेत्र में देखने को मिलेगा। अभी तक तोमर ही इस क्षेत्र से भाजपा के बड़े नेता रहे हैं। भाजपा की ओर से कभी सीएम पद के दावेदार और अन्य मामलों में तोमर का नाम ही सबसे आगे रहता है। तोमर के वैसे सिंधिया परिवार से अच्छे और करीबी रिश्ते भी रहे हैं। लेकिन अब जब सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए हैं तब ऐसा माना जा रहा है कि यहां के समीकरण तेजी से बदलेंगे। दोनों नेता एक-दूसरे के सामने चुनौती बनकर उभरेंगे। दोनों नेताओं के बीच अपने समर्थकों को तवज्जो देने की गुटबाजी चलती रहेगी।

मध्यप्रदेश में भाजपा का फिलहाल सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान ही हैं। जिन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, लेकिन सिंधिया के पार्टी में शामिल होने के बाद उनकी लोकप्रियता में कमी आ सकती है। सिंधिया जनता के बीच सक्रिय हैं और युवाओं में उनका अच्छा के्रज है। इस कारण शिवराज और सिंधिया एक-दूसरे लिए चुनौती साबित होंगे। पिछले चुनावों में भाजपा ने यह नारा भी दिया था कि माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज। लेकिन अब मध्यप्रदेश की सियासत में कई मायने बदलते हुए नजर आएंगे। प्रभात झा भी मध्यप्रदेश भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। झा की भाजपा के साथ-साथ संघ में अच्छी खासी पकड़ है। झा जब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे तब से लेकर अब तक लगातार कांग्रेस और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला बोलते रहे हैं। झा ने कई बार सिंधिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से लेकर सियासी हमले तक किए, लेकिन सिंधिया ने कभी भी प्रभात झा को अपने कद का नेता नहीं माना। वहीं कभी उनके हमलों का जवाब देना तक उचित नहीं समझा। भाजपा नेता और पूर्व मंत्री

जयभान सिंह पवैया और ज्योतिरादित्य सिंधिया की लड़ाई मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में जगजाहिर है। पवैया की प्रदेश में राजनीति केवल सिंधिया के विरोध पर टिकी रही है। पवैया ने पहले माधवराव सिंधिया का विरोध किया, फिर उनकी मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य का खुलेआम विरोध करने लगे। राज्य की सियायत में सिंधिया को लेकर सबसे ज्यादा विरोधी बोल पवैया ने ही बोले हैं। लेकिन सिंधिया ने आज तक पवैया के आरोप का जवाब देना तक उचित नहीं समझा। पवैया ग्वालियर से ही आते हैं। वे 1998 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया और 2004 के लोकसभा चुनाव में गुना लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी चुनौती दे चुके हैं। लेकिन दोनों ही चुनावों में पवैया को हार का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन अब जब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया है तो पवैया के सामने भी उनके अस्तित्व को लेकर संकट होगा। वहीं सिंधिया को भी उनके साथ तालमेल बैठाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

नरोत्तम मिश्रा का कद भारतीय जनता पार्टी में पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ा है। ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर के बाद नरोत्तम मिश्रा का नाम दूसरे नंबर पर आता है। शिवराज सरकार में कई अहम मंत्री पदों पर रहे नरोत्तम मिश्रा सिंधिया के क्षेत्र में भी बहुत अच्छी पकड़ रखते है। इसके अलावा दिल्ली हाइकमान और प्रदेश के सभी बड़े नेताओं से उनके अच्छे संबंध जगजाहिर हैं। नरोत्तम के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ उनकी दोनों बुआ यशोधरा राजे सिंधिया और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया से भी बेहद मधुर संबंध हैं। दतिया स्थित मां पीताम्बरा शक्ति पीठ भी नरोत्तम मिश्रा के निर्वाचन क्षेत्र में ही आता है। यहां आए दिन पूजा और हवन के लिए राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और सिंधिया परिवार के लोग आते-जाते रहते हैं। सिंधिया की भाजपा में एंट्री नरोत्तम मिश्रा के बढ़ते कद को कम कर सकती है। वह सिंधिया अब ग्वालियर चंबल के भाजपा के बड़े नेता हो जाएंगे।

पूर्व मंत्री और यशोधराराजे सिंधिया ज्योतिरादित्य सिंधिया की छोटी बुआ हैं। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भाजपा में शामिल होने के लिए चला था तब यशोधरा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट भी किया था। उन्होंने कहा, 'मुझे खुशी है और मैं उन्हें बधाई देती हूं। यह घर वापसी है। माधवराव सिंधिया ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनसंघ से की थी। ज्योतिरादित्य की कांग्रेस में उपेक्षा की जा रही थी।’ सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद यशोधराराजे के कद पर भी असर पड़ेगा। ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया घराने में पहला नाम ज्योतिरादित्य का हो जाएगा। इसका सीधा असर यशोधरा के राजनीतिक रसूख से लेकर पार्टी में महत्व तक में पड़ेगा।

सिंधिया का सरकार में दिखने लगा असर

मध्यप्रदेश में इतिहास खुद को दोहरा रहा है। करीब 52 वर्ष पहले द्वारिका प्रसाद मिश्र की कांग्रेसी सरकार गिराने के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने गोविंद नारायण सिंह की सरकार में जिस तरह अपना असर कायम किया, अब शिवराज सरकार में वही असर राजामाता के पौत्र व पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का दिखने लगा है। शुरुआत सिंधिया के पसंदीदा अफसर की तैनाती से हुई है और यह संकेत हैं कि उनके इलाकों में उनकी मर्जी के ही अफसर तैनात होंगे। कमलनाथ ने सिंधिया से तकरार बढ़ने के बाद उनके चहेते अफसर ग्वालियर नगर निगम के आयुक्त संदीप माकिन को हटा दिया था। शिवराज सरकार ने संदीप को फिर ग्वालियर में ही तैनाती दे दी है। इसके अलावा सिंधिया के खिलाफ चल रही आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) जांच का नेतृत्व करने वाले प्रभारी डीजी सुशोभन बनर्जी को भी हटाकर साइड लाइन करते हुए सागर भेज दिया गया है। कमलनाथ सरकार ने सत्ता का संग्राम शुरू होते ही ग्वालियर और गुना के कलेक्टर को भी हटा दिया था।

कांग्रेस मानती है कि कभी न कभी होगा भूल का एहसास

कांग्रेस में भी लोग इस इंतजार में हैं कि सिंधिया को अपनी 'भूल’ का मलाल हो। पार्टी छोड़ भाजपा में इज्जत और पद पाने की उनकी कोशिश पर कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार ट्वीट कर तंज कस रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया को-ऑर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने कहा,’कांग्रेस पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बहुत सम्मान दिया। आज उनके भाजपा प्रवेश से ही पता चल गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ही नदारद थे। उन्होंने भाजपा में जाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। यह सभी नेता उन्हें पचा नहीं पाएंगे और सहन नहीं कर पाएंगे। ‘सिंधिया के सामने मध्यप्रदेश के दिग्गज नेताओं में असंतोष बढ़ेगा ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है। लेकिन भाजपा इसे सिरे से खारिज कर रही है। भाजपा का कहना है कि पार्टी में गुटबाजी के लिए कोई स्थान नहीं है। वे आगे कहते हैं, 'भारतीय जनता पार्टी में कद कम होने और ज्यादा होने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। जिसे जो काम मिला है वह उसका कद है। कद का मापदंड भाजपा में नहीं है। उनके साथ आने से ग्वालियर चंबल संभाग में ओर तेजी आएगी।’

-  अरूण दीक्षित

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