05-Apr-2021 12:00 AM
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पन्ना टाइगर रिजर्व और केन नदी के जिन बीहड़ों में 14 साल पहले तक डकैतों का आतंक था, वहां अब पर्यटक बगैर किसी डर के नाइट सफारी कर रहे हैं। जिन गांवों और जंगलों में डकैत ठोकिया, मोहन, बलखड़िया, कुंवर का खौफ था, वहां अब होम स्टे, होटल, रिसोर्ट बन गए हैं। जिन लोगों पर डकैतों से तार जुड़ने के आरोप थे, अब पर्यटक उनकी मेहमान नवाजी पसंद कर रहे हैं। डकैतों के एनकाउंटर से इस क्षेत्र की तकदीर बदल गई। 2007 तक यहां के झिन्ना गांव पर कुख्यात डकैत ठोकिया के गिरोह का कब्जा था। उस पर 6 लाख रुपए का इनाम था। उप्र पुलिस को भी उसकी तलाश थी। ठोकिया के खौफ से टाइगर रिजर्व के कर्मचारी भी पेट्रोलिंग नहीं कर पाते थे। यहीं वजह रही कि यहां के बाघों का शिकार हो गया। एक समय ऐसा भी आया जब इस क्षेत्र को बाघ विहीन क्षेत्र घोषित कर दिया। फिर ठोकिया का एनकाउंटर हो गया। उसका गिरोह भी खत्म कर दिया गया।
इसके बाद यह क्षेत्र भयमुक्त हो गया। 2009 में यहां फिर से बाघ लाए और अब बाघ का कुनबा इतना बढ़ा कि यहां 60 बाघ हो गए हैं। ये यहां आसानी से दिखाई दे जाते हैं। यहीं वजह कि देशभर के लोग यहां नाइट सफारी के लिए आ रहे हैं। जिसके चलते यहां का पर्यटन उद्योग बढ़ गया है। कोरोनाकाल में यहां विदेशी पर्यटक नहीं आ रहे हैं लेकिन पिछले कुछ महीने में देश के पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो गया है। पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में स्थित झिन्ना गांव के हनुमान मंदिर में डकैत डाक्टर उर्फ ठोकिया की आस्था थी। 2007 में ठोकिया ने मंदिर में भागवत कथा और भंडारा कराया। बदमाशों की दहशत का आलम यह था कि सूचना के बावजूद पुलिस मौके पर नहीं पहुंची। अब झिन्ना गांव पीटीआर में बफर जोन नाइट सफारी का इंट्री गेट है।
2006 में डकैतों को संरक्षण देने के आरोप में जेल जा चुके रामेश्वर अब मड़ला गांव के एक होटल में चौकीदारी करते हैं। रामेश्वर को डकैतों ने भापतपुरा गांव में घेर लिया था, उन्हें बाजार से टार्च के लिए बैटरी लाने को कहा। रामेश्वर ने बैटरी लाकर ठोकिया गिरोह तक पहुंचा दी। इसकी जानकारी पुलिस तक पहुंच गई। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। रामेश्वर कहते हैं अब इलाके हालात बेहतर हैं। दिन में वे घर में खेतीबाड़ी और रात को होटल में चौकीदारी करते हैं। केन नदी के बीहड़ में बसे भापतपुरा, सब्दुआ, हरसा, नहरी, बगौंहा, सलैया, बघा, झिन्ना, टपरियन, बसाटा, मड़ला गांव के कई लोगों की जिंदगी अब बदल गई है। नेशनल हाईवे पर स्थित मड़ला गांव में पन्ना टाइगर रिजर्व के पर्यटक जोन का इंट्री गेट है। यह पर्यटन का केंद्र बना है। यहां मप्र पर्यटन विकास निगम के होटल के साथ एक दर्जन होटल और रिसोर्ट हैं। मड़ला में बलबीर आदिवासी ने अपने घर में होम स्टे के लिए रूम तैयार कर लिया है। गाइड लखन अहिरवार ने भी घर में होम स्टे के लिए एक कमरा तैयार कर लिया है। इसके अलावा टोरिया, टपरियन, राजगढ़, झिन्ना और बगौंहा के जंगल में भी होटल और रिसोर्ट बन गए हैं।
पर्यटकों के लिए यह सुविधा बांधवगढ़ नेशनल पार्क में पहले से है। अब पन्ना नेशनल पार्क के खूबसूरत जंगल तथा यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणियों विशेषकर बाघों का दीदार पर्यटक रात के सन्नाटे में भी कर सकते हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से महज 16 किमी दूर स्थित पन्ना-अमानगंज मुख्य मार्ग के किनारे पन्ना बफर का अकोला गेट है, जिसे नाइट सफारी के लिए खोला गया है। पर्यटक शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक यहां जा सकते हैं। वन परिक्षेत्राधिकारी अकोला बफर लालबाबू तिवारी ने बताया, पर्यटकों को जंगल में नाइट सफारी कराने के लिए जंगल से लगे ग्रामों के युवकों को प्रशिक्षण दिलाकर गाइड बनाया गया है। इस बफर क्षेत्र में जिन लोगों ने भी नाइट सफारी का लुत्फ लिया है उनके अनुभव बेहद उत्साहजनक हैं। टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अकोला बफर का जंगल मौजूदा समय कई बाघों का जहां घर बन चुका है, वहीं एक बाघिन ने तो यहां शावकों को भी जन्म दिया है। यह बाघिन शावकों के साथ जंगल में विचरण करते अक्सर नजर आती है। यही वजह है कि कोर क्षेत्र की ही तरह अकोला बफर भी अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
पन्ना जिले को प्रकृति ने अनगिनत सौगातों से नवाजा है, लेकिन ये खूबियां इस जिले के लिए वरदान साबित होने के बजाय अभिशाप बनी हुई हैं। आजादी के तकरीबन 73 साल गुजर जाने के बाद भी पन्ना जिला जहां अभी भी रेल सुविधा से वंचित है, वही यहां पर औद्योगिक विकास न के बराबर है। इस पिछड़ेपन व गरीबी के लिए यहां के खूबसूरत जंगलों व राष्ट्रीय उद्यान को जिम्मेदार ठहराया जाता है। जिले के लोगों को यह तर्क समझ में भी आता है कि वनों के कारण ही जिले का विकास बाधित है। यही वजह है कि ज्यादातर लोगों के जेहन में जंगल के प्रति बैर भाव है। जबकि हकीकत यह है कि यहां की हरी-भरी वादियां व खूबसूरत जंगल यदि उजड़ गया तो पन्ना की सारी खूबी भी तिरोहित हो जाएगी।
न तो जंगल बचेगा और न ही जंगल में विचरण करने वाले वन्यप्राणी
पन्ना जिले ने देश को यदि इतना बड़ा वन क्षेत्र व बेहतर पर्यावरण दिया है तो इसके बदले में पन्ना को भी प्रतिफल मिलना चाहिए। अन्यथा लाख प्रयासों के बावजूद न तो जंगल बचेगा और ना ही जंगल में विचरण करने वाले वन्य प्राणी। यदि सरकार पन्ना जिले में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग नहीं लगा सकती तो कम से कम इसे एजुकेशन हब के रूप में तो विकसित किया ही जा सकता है। यहां की प्राकृतिक आबोहवा और शांतिपूर्ण वातावरण शैक्षणिक गतिविधियों के लिए अनुकूल है। इसके अलावा पर्यटन के विकास को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान किए जा सकते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली ऐतिहासिक कामयाबी को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि यहां पर बाघ पुनर्स्थापना का रिसर्च सेंटर खुले ताकि यहां के अनुभवों का लाभ पूरे देश के टाइगर रिजर्वों को मिल सके।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया