बीहड़ में माफिया की खेती
17-Mar-2021 12:00 AM 793

 

क भी बागियों के लिए कुख्यात रहे  बीहड़ (ग्वालियर-चंबल क्षेत्र) में इन दिनों माफिया की खेती हो रही है। रेत माफिया, पत्थर माफिया, शराब माफिया के साथ ही यहां ड्रग्स और दूध माफिया तेजी से पनप रहे हैं। अब तो यहां अवैध रूप से अफीम की खेती भी होने लगी है। गौरतलब है कि बीहड़ के दूध माफिया ने तो पूरे देशभर में जानलेवा नकली दूध, पनीर का कोरोबार ऐसा फैला दिया है कि उससे पार पाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। ग्वालियर-चंबल के कई जिलों में जानलेवा दूध और पनीर बनाया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि प्रशासन ने कास्टिक सोडा, माल्टो डेक्सट्रिन पावडर, लिक्विड डिटरजेंट व खराब क्वालिटी के पॉम ऑयल के परिवहन व बिक्री को प्रतिबंधित नहीं किया है, इसलिए मिलावट पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। दूध माफिया ने अपने कारोबार का तरीका बदल लिया है। पुलिस व खाद्य सुरक्षा विभाग की कार्रवाई से बचने के लिए आरएम केमिकल, माल्टो डेक्सट्रिन पावडर, स्किम्ड मिल्क पावडर, कास्टिक सोडा, लिक्विड डिटरजेंट, कमानी ब्रांड पॉम ऑयल सहित अन्य केमिकल को गोदाम विशेष में न रखकर अब ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग जगह छुपाकर रखा जा रहा है। केमिकल नहीं पकड़ा जाए, इसलिए कारोबारी अब केमिकल का घोल तैयार कर सीधे उसे बेच रहे हैं। दूध खरीद के काम में लिप्त लोग इस केमिकल घोल को केन में डालकर उसी में सपरेटा दूध भर लेते हैं।

परिवहन के दौरान केमिकल का घोल और सरपेटा दूध मिलकर अच्छी फैट का दूध बन जाता है। फैट चेककर इसी दूध को कंपनियां खरीद रही हैं। ऐसे ही मामले में पोरसा पुलिस ने 28 जनवरी को गंगाराम गली में रहने वाले दूध कारोबारी संतोष जैन को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से घोल व दूध से भरी केन जब्त की थी। खाद्य सुरक्षा अधिकारी अनिल प्रताप परिहार ने घोल व दूध के सैंपल लेकर उनकी जांच कराई तो दोनों सैंपल फेल पाए गए। घोल की जांच के बारे में भोपाल लैब के खाद्य विश्लेषक सिर्फ इतना बता पाए कि यह रिफाइंड ऑयल व बूरा मिश्रित घोल है। घोल में क्या-क्या केमिकल मिलाए गए, जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं है।

सबलगढ़ क्षेत्र में चंबल नदी के किनारे बीहड़ों विगत दिनों मुरैना जिले के सबलगढ़ में पुलिस ने अफीम की लहलहाती फसल पकड़ी है। ढाई से चार बीघा जमीन पर अफीम की खेती हो रही थी और इस फसल की ओट के लिए आसपास की जमीन में सरसों व गेहूं की फसल कर रखी थी। पुलिस ने अफीम के पौधों को काटकर जब्त कर लिया है। जिस हालत में फसल मिली है उसे देखकर लग रहा है कि आरोपित इससे पहले भी अफीम की खेती यहां कर चुके हैं। पुलिस के अनुसार 60 क्विंटल अफीम के पौधे मिले हैं। जिनकी कीमत 10 करोड़ बताई गई है।

एसपी एसके पांडेय को फोन पर एक ग्रामीण ने सूचना दी कि सबलगढ़ क्षेत्र के बटेश्वरा-चौकपुरा के बीहड़ों में अफीम की खेती हो रही है। यह क्षेत्र राजस्थान की सीमा व चंबल नदी किनारे दूरस्थ इलाके में है। सबलगढ़ थाने की एक टीम ग्रामीणों की वेशभूषा में भेजकर इसकी सत्यता परखी तो शिकातय को सही पाया गया। इसके बाद शाम को चार थानों की पुलिस टीम को बटेश्वरा-चौकपुरा के बीहड़ों में जगह-जगह अफीम की खेती लहलहाती मिली। अफीम के पौधे दो फीट से ज्यादा लंबे हो चुके थे और फूलों के साथ उनमें अफीम के डोंडे भी आने लगे थे। कुछ ही दिन में चीरा लगाकर अफीम निकालने का काम शुरू हो जाता, उससे पहले ही पुलिस ने इसे पकड़ लिया।

पुलिस के अनुसार इसका बाजार मूल्य 10 करोड़ रुपए से ज्यादा है। बीहड़ की जिस जमीन पर यह खेती हो रही थी, वह सरकारी थी, लेकिन इस पर चोखपुरा गांव के चार किसानों का कब्जा था। तहसील के रिकार्ड पर इनकी पहचान की गई और उसके बाद पुलिस ने कल्ला पुत्र हरीसिंह मल्लाह, मुन्ना पुत्र हरीसिंह मल्लाह, मुंशी पुत्र हरीसिंह मल्लाह और महेंद्र पुत्र छत्तू मल्लाह पर एफआईआर दर्ज की है। सबसे ज्यादा 3 बीघा में अफीम महेंद्र मल्लाह के खेतों में हो रही थी, इसलिए पुलिस नशे की इस खेती का मास्टर माइंड महेंद्र मल्लाह को मान रही है। अफीम की इस खेती में पुलिस को राजस्थान के अलावा दूसरी जगहों के कुछ तस्करों के शामिल होने का पूरा संदेह है। ऐसा इसलिए क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर खेती तभी हो सकती है जब इस खेती के कटने के बाद भारी मात्रा में होने वाली अफीम का कोई खरीदार हो। पुलिस को संदेह है कि यह लोग पहले भी इस तरह की खेती कर चुके हैं। सबलगढ़ टीआई नरेंद्र शर्मा ने कहा कि चारों आरोपी फरार हो गए हैं, इनके पकड़ में आने के बाद ही इन सवालों के सही जवाब मिलेंगे। टीआई शर्मा ने कहा कि इस अपराध में जो-जो शामिल होगा उस पर सख्त कार्रवाई होगी।

पहले तस्कर थे, फिर खेती ही शुरू कर दी

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार जिन लोगों के नाम अफीम की खेती में आए हैं, वह राजस्थान के कोटा से गांजा व अफीम की तस्करी करके क्षेत्र में बेचा करते थे। उसके बाद इन्होंने गांजा की खेती भी की, लेकिन गांजे से ज्यादा कमाई अफीम की खेती में दिखी, इसलिए रतलाम-मंदसौर क्षेत्र से अफीम बीजों की जुगाड़ की और फिर ऐसे बीहड़ों को चुना जहां कोई आता-जाता नहीं, इसलिए यहां खेती शुरू कर दी। बीहड़ के जिस इलाके में अफीम की खेती हो रही थी वह इतना दुर्गम व दूरस्थ है कि वहां पुलिस टीम को करीब डेढ़ किमी पैदल चलना पड़ा। ट्रैक्टर-ट्रॉली भी बमुश्किल अंदर पहुंच पाई। मजदूरों को बुलाकर पुलिसकर्मियों ने एक किमी तक अफीम के पौधों को ढोया और फिर ट्रॉलियों में भरा।

- बृजेश साहू

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