झाबुआ-आलीराजपुर जैसे आदिवासी बहुल जिलों में कई दशकों से चली आ रही कुप्रथाओं के खिलाफ अब समाज ही खड़ा होने लगा है। अब समाजजन ही आगे आकर शादी में शराब परोसने की बुरी प्रथा को बंद करवा रहे हैं। झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के 12 गांवों में यह निर्णय लिया गया है कि कोई भी आदिवासी परिवार अपने यहां होने वाली शादी में शराब और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग नहीं करेगा। ऐसा करने वालों पर 50 हजार रुपए के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। आदिवासी शादियों में भोज के साथ शराब भी अनिवार्य रूप से परोसी जाती है।
मालवा-निमाड़ के कुछ जिलों के साथ मप्र की सीमा से सटे गुजरात के इलाकों में यह कुप्रथा प्रचलित है। मेहनत-मजदूरी करने वाला आदिवासी समुदाय शराब से आवभगत करने के लिए या तो कर्ज लेता है या फिर चांदी के आभूषण और जमीन आदि गिरवी रखता है। कर्ज चुकाने के लिए पूरा परिवार कई वर्षों तक मजदूरी करता रहता है। बीते सालों में कई संगठनों ने आदिवासी समाज को इस कुप्रथा से मुक्त करने के लिए प्रयास किए लेकिन सफलता कम मिली। समाज के कुछ जागरूक युवा जिले के अन्य क्षेत्र के आदिवासियों को भी इसके लिए एकजुट कर रहे हैं।
आदिवासी बहुल क्षेत्र पेटलावद के 12 गांवों में बीते दिनों सामाजिक बुराइयों पर रोक लगाने के लिए रखी गई ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर शादी में डीजे, शराब आदि पर पाबंदी लगा दी गई है। कोदली गांव के तड़वी (ग्राम प्रधान) काना मेड़ा ने बताया कि शादी समारोह, अन्य कार्यक्रमों में ध्वनि विस्तारक यंत्र (डीजे) बजाने के दौरान हालात बिगड़ते हुए देखे गए हैं। इससे सबक लेते हुए ग्रामसभा आयोजित कर सभी से विचार-विमर्श कर पाबंदी लगाने की सहमति बन गई। मोईवागेली के तड़वी सकरिया निनामा ने बताया कि यह फैसला इसलिए किया गया क्योंकि गांव में कुछ लोग सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीते हैं और गलियों में घूमते रहते हैं। इसकी वजह से जहां आर्थिक नुकसान होता है, वहीं आपसी भाईचारे में भी दरार आती है।
कुरीतियों को दूर करने के लिए पिछले दिनों पेटलावद की कृषि उपज मंडी में ग्राम प्रमुखों (तड़वी-पटेल) की बैठक जनजाति विकास मंच ने रखी थी। सभी ने अपनी तरफ से इन कुरीतियों को जड़ से खत्म करने के लिए विचार रखे। इसके बाद गांवों में ग्रामसभा का आयोजन कर इन कुरीतियों पर रोक लगाने की पैरवी सभी ने की थी और अब इसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं। पेटलावद में गत दिनों विकासखंड स्तरीय तड़वी-पटेल महासम्मेलन हुआ। इसमें तहसील के 215 गांवों की 78 पंचायतों के सैकड़ों तड़वी-पटेल, गांव के वरिष्ठ नागरिक शाामिल हुए। जनजाति विकास मंच के पदाधिकारी राजेश डावर ने कहा कि सभी पंचायतें जल्द निर्णय लें कि शादी-विवाह, जन्मदिन, अन्य कार्यक्रमों में आतिशबाजी व ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएंगे और बाल विवाह, दहेज, शराब, मतांतरण आदि कुरीतियों पर भी रोक लगाई जाए।
प्रदेश के ज्यादातर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में कच्ची शराब (लाहन) बनाने और बेचने का गोरखधंधा चल रहा है। शराब को ज्यादा नशीला बनाने के लिए उसमें यूरिया, धूतरा, बेसरमबेल की पत्ती और ऑक्सीटॉसिन जैसे घातक पदार्थ तक मिलाए जा रहे हैं। इनकी मात्रा ज्यादा होने से शराब जहरीली बनकर लोगों की जान ले सकती है। उज्जैन और मुरैना में जहरीली शराब के सेवन से मौतों के बाद आदिवासी समाज जागृत हो रहा है। आदिवासी कच्ची शराब में मुख्य रूप से महुआ का उपयोग होता है। यह एक तरह का जंगली फल है जो नौरादेही अभयारण्य से लगे गावों में बहुत ज्यादा पाया जाता है। महुआ को गुड़ में मिलाकर पहले उसे सड़ने के लिए रखा जाता है। इसके बाद खाली बर्तन या पीका में इसे भट्टी पर पकने के लिए रखा जाता है। एक नली के जरिए भाप को बॉटल उतारा जाता है। भाप ठंडी होने पर लिक्विड फॉर्म में आ जाती है। यही कच्ची शराब है। जिसे लाहन भी कहते हैं। यहां तक शराब जहरीली नहीं होती। जब लगता है कि शराब में नशा कम है तो फिर शुरू होता है खतरे का खेल। इसमें यूरिया, ऑक्सीटॉसिन, बेसरमबेल का उपयोग किया जाता है। इन पदार्थों को मिलाने का कोई मापदंड नहीं रहता। जिससे शराब जहरीली होने का खतरा बना रहता है।
अब कोई नहीं पीता शराब
आदिवासियों के उत्थान के लिए सरकार की तमाम योजनाएं संचालित हैं जिसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है, परंतु कुछ ऐसे गांव भी हैं जो स्वयं स्वावलंबी बनना चाहते हैं इसके लिए वह लगातार प्रयास कर रहे हैं। जबलपुर से 40 किलोमीटर दूर शहपुरा जनपद के अंतर्गत आने वाली आदिवासी ग्राम पंचायत देवरी नवीन में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहां के आदिवासी महिला-पुरुषों द्वारा ऐसा काम करके दिखाया गया, जिसकी प्रशंसा प्रदेश के मुखिया तक कर चुके हैं। इस पंचायत में सालों पहले तक घर-घर में शराब बनती थी और बड़े-बूढ़ों से लेकर सभी इसका सेवन करते थे। शराब की वजह से घर-गांव में रोजाना झगड़े होने लगे जिसे देखकर कुछ महिला और पुरुषों ने तय किया कि गांव में शराब को पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाएगा। गांव में न कभी शराब बनेगी और न कोई सेवन करेगा। ग्राम पंचायत देवरी नवीन पर यदि किसी के शराब पीने की शिकायत मिलती है तो उस पर 10 हजार रुपए जुर्माना और गाली-गलौच करने पर 5 हजार रुपए जुर्माना लगाया जाता है। पंचायत में इस तरह का फॉर्मूला लागू होने पर घरों के साथ आपसी विवाद कभी नहीं होते हैं। गांव के पूर्व सरपंच रामकुमार सैय्याम बताते हैं कि ग्राम पंचायत देवरी नवीन के साथ तिन्हेटा और बाड़ीबारा गांव में शराब पीने वाले व्यक्ति पर जुर्माना लगाने का नियम है। यह सब वहां की महिलाओं के संकल्प से हुआ है। महिलाएं आगे आकर खुद शराब पीने वाले व्यक्ति का नाम बताती हैं।
- रजनीकांत पारे