अंबाह थाना क्षेत्र के ककरारी गांव के बीहड़ों में लहलहाती मिली अफीम की फसल को पुलिस ने काटकर जब्त कर लिया है। नशे की इस खेती में राजस्थान से लेकर उप्र तक के माफियाओं के नाम सामने आ रहे हैं। जिस अरोपित के खेत में अफीम की खेती पकड़ी गई है, उसने पूछताछ में बताया कि राजस्थान व उप्र के माफिया पकने के बाद इस फसल को काटकर ले जाते और इसके एवज में 5 लाख रुपए मिलते। एक महीने के भीतर अफीम की फसल पककर कट जाती।
गौरतलब है कि एसपी आशुतोष बागरी द्वारा भेजी गई स्पेशल टीम ने ककरारी गांव के सिद्ध बाबा मंदिर के पास चंबल नदी किनारे बीहड़ों में डेढ़ बीघा जमीन पर अफीम की खेती पकड़ी है। यह खेत ककरारी गांव के मनोज पुत्र पूरन परमार का है। सरसों के खेतों के बीच डेढ़ बीघा जमीन में हो रही अफीम को काटकर जब्त किया तो उसका वजन 397 किलो 200 ग्राम निकला, जिसका बाजार मूल्य एक करोड़ रुपए आंका गया है। उक्त आरोपित ने अब तक हुई पूछताछ में बताया है कि ककरारी गांव के ही धर्मेंद्र तोमर ने उसे राजस्थान के धौलपुर के अलावा उप्र के एक व्यक्ति से मिलवाया था। उप्र व राजस्थान के लोगों ने उसे अफीम का बीज दिया था, जो सरसों के साथ खेत में बोया था। आरोपित मनोज परमार के अनुसार उसने कुछ महीने पहले बेटी की शादी की थी, जिसमें उस पर कर्जा हो गया था। अफीम की खेती करवाने वालों ने कहा था कि पकने के बाद इन पौधों को काटकर ले जाएंगे और इसके बदले में उसे पांच लाख रुपए नकद मिलते। मनोज परमार ने इतनी सारी बातें बताईं, लेकिन राजस्थान व उप्र के तस्करों की सही पहचान नहीं बता पा रहा, इसके लिए धर्मेंद्र तोमर की तलाश है, क्योंकि धर्मेंद्र तोमर ने ही मनोज परमार को अफीम की खेती के लिए तैयार किया था और राजस्थान व उप्र के तस्करों से मुलाकात भी उसी ने करवाई। अब पुलिस को धर्मेंद्र तोमर की तलाश है।
चंबल के बीहड़ों में नशे की खेती लगातार बढ़ती जा रही है। करीब ढाई साल पहले माता बसैया क्षेत्र में अफीम की खेती सबसे पहली बार पकड़ी गई थी। इसके बाद बागचीनी थाने से चंद मीटर दूर गांजे के खेत पकड़े थे। एक साल पहले सबलगढ़ के बटेश्वर-चौकपुरा के बीहड़ों में चार बीघा जमीन में 10 करोड़ रुपए मूल्य की 60 क्विंटल अफीम के पौधे पकड़े गए थे। अफीम की खेती करने वाले लोग मंदसौर के अलावा राजस्थान के धौलपुर व कोटा क्षेत्र से इसके बीज लाते हैं। बीज देने वाले तस्कर ही अफीम के पौधों में डोंडा आने के बाद खरीद लेते हैं।
प्रदेश में अफीम की बढ़ती अवैध खेती ने नारकोटिक्स विभाग को पसोपेश में डाल रखा है। केंद्र सरकार की ओर से इस बारे में बनाए गए नियमों की विसंगतियों का लाभ उठा लोग आसानी से बच निकल रहे हैं। यदि अफीम की अवैध खेती के नियमों में स्पष्टता हो तो सजा के भय से इसकी खेती पर कुछ अंकुश लग पाए। प्रदेश में गत दो माह में पुलिस ने कुछ स्थान पर सामान्य फसलों के बीच अफीम के पौधे बरामद किए। इन लोगों के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए है, लेकिन ये लोग नियमों में विसंगतियों का लाभ उठा जमानत हासिल कर लेते हैं।
बगैर लाइसेंस के अफीम, कोको, भांग की खेती करना, उसे कब्जे में रखना, बेचना, आयात-निर्यात और परिवहन करना जुर्म है। ऐसा करने पर कम से कम 10 साल से 20 साल की सजा और एक लाख रुपए तक का जुर्माना है। नशीले पदार्थों से आमजन को बचाने के उद्देश्य से यह कानून करीब 36 साल पहले बनाया गया था, लेकिन 20 साल पहले यानी 2001 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर अफीम की खेती में कम मात्रा और वाणिज्यिक मात्रा की दो कैटेगरी बना दी। सरकार ने नोटिफिकेशन में यह स्पष्ट नहीं किया कि कितने पौधे तक अफीम की खेती कम मात्रा में और कितने पर वाणिज्यिक मात्रा में मानी जाएगी। ऐसे में 500 से ज्यादा पौधे उगाकर अवैध खेती करने वाले लोग पकड़े जाने पर नोटिफिकेशन का हवाला देकर चंद दिनों में ही जमानत पर भी छूट रहे हैं। एनडीपीएस एक्ट की धारा-18 में बिना लाइसेंस अफीम की खेती को प्रतिबंधित किया गया है। इसी एक्ट की धारा-16, 18 व 20 में कोको व भांग की खेती, तस्करी आदि पर सजा के प्रावधान हैं। कोको व भांग की बिना लाइसेंस खेती या परिवहन, तस्करी आदि करने पर कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि अफीम की खेती की बात आती है तो इस अपराध को उत्पादन, बेचने, खरीदने, एक राज्य से दूसरे राज्य में आयात व उपयोग के आरोप के अंतर्गत रखा गया और धारा-18 के तहत मात्रा के आधार पर सजा का प्रावधान किया। इसमें ए, बी व सी उप धारा बनाई गई। ए क्लॉज में प्रतिबंधित चीज स्मॉल कैटेगरी में है तो एक साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुर्माना, बी क्लॉज में प्रतिबंधित चीज कॉमर्शियल कैटेगरी में है तो 10 साल की सजा और 1 लाख रुपए का जुर्माना, जिसे 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है तथा जो ए व बी क्लॉज के दायरे में नहीं आते हैं, वे सी क्लॉज से कवर होंगे।
तस्करी के लिए खेती
अफीम की खेती यूं तो कई किसान करते हैं, लेकिन अफीम आने के बाद वे नारकोटिक्स विभाग को तय कीमत पर दे देते हैं, चूकि अफीम का नशे के रूप में भी उपयोग होता है, इस कारण कई काश्तकार इसे अवैध रूप से भी बेचते हैं, इसलिए इसकी अवैध तरीके से खेती की जाती है। इस प्रकार अन्य किसी काश्तकार द्वारा तो अवैध रूप से अफीम की खेती नहीं कर रखी है, इस जांच के लिए विभाग द्वारा ड्रोन मंगाए जा रहे हैं, इसके बाद ड्रोन से तलाश की जाएगी। अवैध रूप से खेती पाए जाने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। नारकोटिक्स विभाग के साथ ही मौके पर जावद टीआई सहित पुलिस बल पहुंचा है। चंबल के बीहड़ों में बीते एक साल में यह दूसरी बार अफीम की खेती पकड़ी है। बीते साल 3 मार्च को सबलगढ़ थाना क्षेत्र के बटेश्वरा-चौकपुरा के बीहड़ों में लगभग चार बीघा जमीन में अफीम की खेती को पुलिस टीम ने पकड़ा था।
- राजेश बोरकर