बरैया के भरोसे
17-Apr-2020 12:00 AM 365

 

मप्र की सत्ता कांग्रेस के हाथ से भले ही निकल गई है लेकिन पार्टी इस कोशिश में लगी हुई है कि वह 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता में वापसी कर ले। इसके लिए पार्टी के रणनीतिकार विभिन्न स्तरों पर रणनीति बना रहे हैं। इसमें से एक कोशिश यह है कि राज्यसभा के चुनाव में फूलसिंह बरैया को पहली प्राथमिकता देते हुए उन्हें जिताकर सांसद बनाया जाए। ताकि उनके माध्यम से ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 विधानसभा सीटों को साधा जा सके।

गौरतलब है कि अपनी ही पार्टी के विधायकों के बागी हो जाने से महज 15 महीने के भीतर ही सूबे की कांग्रेस सरकार पलट गई। खास बात यह है कि बीते विधानसभा चुनाव में जिस ग्वालियर-चंबल संभाग से कांग्रेस को 15 साल बाद प्रदेश में सत्ता की चाबी मिली, वहीं के बदले राजनैतिक समीकरणों ने अब पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया। बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में अंचल की कुल 34 विधानसभा सीटों में से जिस भाजपा को यहां की जनता ने बंपर 20 सीटें के साथ सत्ता की हैट्रिक बनाने का मौका दिया था, वहीं के लोगों ने 2018 में भाजपा को 7 सीटों पर समेटकर सत्ता की रेस से बाहर कर दिया। वहीं 2013 में अंचल से 12 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को 2018 में 26 सीटों पर प्रचंड विजय देकर सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इस बीच बदले हालातों में प्रदेश की कमलनाथ सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले 22 मंत्री-विधायकों में सर्वाधिक 15 ग्वालियर और चंबल संभाग से ही हैं। वहीं अब नए सिरे से बने राजनैतिक समीकरणों में एक तरफ तो भाजपा में दावेदारों की भीड़ से दवाब जैसे हालात बन सकते हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस में दमदार प्रत्याशियों का टोटा पड़ने जैसे स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

गौरतलब है कि प्रदेश में जिन 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। उनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। फूलसिंह बरैया दलित राजनीति के बड़े चेहरे माने जाते हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग के दलित वर्ग में उनकी अच्छी पैठ है। लिहाजा उन्हें राज्यसभा में भेजने से कांग्रेस को बड़ा फायदा हो सकता है। इसलिए पार्टी के रणनीतिकार इस प्रयोग पर विचार कर रहे हैं। ज्ञात हो कि राज्य में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। वर्तमान विधायकों की संख्या के आधार पर एक सीट कांग्रेस और दो सीट भाजपा के खाते में जानी है। कांग्रेस ने दो उम्मीदवार दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। पहली प्राथमिकता पर दिग्विजय सिंह और दूसरी प्राथमिकता पर फूल सिंह बरैया का नाम है।

प्रदेश में सत्ता हाथ से निकलते ही कांग्रेस के सियासी गणित बदलने लगे हैं। कांग्रेस नेता राज्य में दलित वोटबैंक को मजबूत करना चाहते हैं, जिसके चलते नेताओं ने पार्टी हाईकमान से राज्यसभा चुनाव में पहली प्राथमिकता पर दलित नेता फूल सिंह बरैया का नाम लाने के लिए पार्टी हाईकमान को प्रस्ताव भेजने का निर्णय लिया है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राज्य के ज्यादातर कांग्रेस नेता हाथ से सत्ता जाने से दुखी हैं और कांग्रेस की वापसी के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं ने राज्यसभा उम्मीदवार फूलसिंह बरैया के पक्ष में एक पत्र लिखा है। इस पत्र में नेताओं ने अनुसूचित जाति और जनजाति के वोट बैंक का फायदा लेने के लिए बरैया को प्राथमिकता क्रम में पहले नंबर पर रखकर उन्हें राज्यसभा में भेजने की मांग की है। नेताओं का कहना है कि बरैया के राज्यसभा में जाने से कांग्रेस को उपचुनाव में अनुसूचित जाति और जनजाति वोट बैंक का लाभ मिलेगा। फूल सिंह बरैया को राज्यसभा भेजने के पीछे पार्टी नेताओं का तर्क है कि इससे ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 विधानसभा सीटों पर जीत का समीकरण मजबूत हो सकता है। गौरतलब है कि जिन 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है उनमें ग्वालियर संभाग की 9 विधानसभाएं, जिनमें ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, डबरा, भाण्डेर, करैरा, पोहरी, बमौरी, अशोकनगर, मुंगावली और चंबल संभाग की 7 विधानसभाएं सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद और जौरा शामिल हैं। इन सीटों पर बड़ी संख्या में दलित वोट हैं। इसलिए बरैया को राज्यसभा भेजने की तैयारी हो रही है। कांग्रेस के जिन मंत्रियों और विधायकों के बागी तेवरों के चलते प्रदेश की कमलनाथ सरकार की विदाई हुई है उनमें ग्वालियर और चंबल संभाग में कांग्रेस के कुल 26 एमएलए में से 15 की निर्णायक भूमिका रही है।

दिग्विजय को करना होगा त्याग

1977 में दिग्विजय सिंह को कांग्रेस पार्टी में लाया गया था। इसके बाद उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिया गया और फिर कांग्रेस के टिकट पर वो लोकसभा में गए। इसके बाद दिग्विजय को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। कांग्रेस उन पर महरबान रही है इसका सबूत ये कि कांग्रेस ने 10 साल तक दिग्विजय को मुख्यमंत्री बनाया और फिर राज्यसभा भी भेजा और जब 15 साल के बाद मध्यप्रदेश में सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ जरूर थे, लेकिन सुपर मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ही बने। इस दौरान यह भी अनुमान लगाए जा रहे हैं कि दिग्विजय ने अपने बेटे और दो बार के विधायक जयवर्धन सिंह को मंत्री बनाने के लिए मापदंड तय कराए और आगे भी अगर दिग्विजय सिंह को मौका मिलता रहा तो वो फिर ऐसा करेंगे। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस के नेताओं ने यह बड़ा दांव चला है क्योंकि ज्यादातर कांग्रेस नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के भीतर टूट की वजह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ही हैं। पूर्व मंत्री मुकेश नायक तो खुले तौर पर पार्टी में हुए विभाजन के लिए पूर्व मुख्यमंत्री की कार्यशैली और अपनों को उपकृत करने के लिए चली गई चालों को जिम्मेदार ठहराते आ रहे हैं।

- राजेश बोरकर

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^