वर्तमान समय में करीब 2 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे मप्र पर कोरोना संकट बनकर टूटा है। कोरोना के कारण प्रदेश के औद्योगिक प्रतिष्ठान बंद हो गए हैं। इस कारण लाखों लोग बेरोजगार होकर घर बैठ गए हैं। कोरोना संकट खत्म होने के बाद इन औद्योगिक प्रतिष्ठानों को शुरू होने में महीनों लग जाएंगे, क्योंकि पलायन कर चुके मजदूर और कर्मचारी जल्दी वापस नहीं आने वाले। उधर, प्रतिष्ठानों के बंद होने के कारण सरकार को अरबों रुपए की चपत लगी है और आगे भी आर्थिक क्षति पहुंचने के आसार हैं।
मप्र में सरकार के सामने वित्तीय संकट आ खड़ा हुआ है। पहले सरकार को लेकर जारी उठापटक फिर सत्ता परिवर्तन और अब लॉकडाउन। काम धंधा, दफ्तर सब बंद हैं। ये नुकसान कितना ज्यादा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मार्च के महीने में रजिस्ट्री करने वालों की संख्या 35 से 40 फीसदी से भी कम रही। केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि भी अटकी हुई है। होटल रेस्टोरेंट की आमदनी ना के बराबर हुई है। सिनेमा हॉल-मॉल बंद हैं इसलिए सरकार को टैक्स में भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। लोगों की आवाजाही बंद होने से पेट्रोल और डीजल की खपत भी न के बराबर है।
इस साल वाणिज्य कर विभाग के पास 54 हजार 888 करोड़ रुपए की कर वसूली का टारगेट था। अब इसमें 1800 करोड़ रुपए का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। कोरोना का असर जमीन-मकान और दुकान की रजिस्ट्री पर भी दिखाई दे रहा है। मार्च में हर साल जितने लोग रजिस्ट्री कराने आते थे उनकी संख्या में 30 से 40 फीसदी की कमी आई है। रजिस्ट्री से राज्य सरकार को 6500 करोड़ के राजस्व वसूली की उम्मीद थी लेकिन कोरोना की मार ने उसकी सारी प्लानिंग फेल कर दी है।
कोरोना का असर शराब से होने वाली आमदनी पर भी पड़ा है। मुख्यमंत्री शिवराज के शराब बिक्री पर रोक लगाने के निर्देश के बाद अब शराब की दुकानें पूरी तरह बंद हैं। इस वजह से आबकारी विभाग को होने वाली आय भी घटना के पूरे आसार हैं। इस बार विभाग को 11500 करोड़ रुपए आय का अनुमान था। लेकिन अब इसमें 200 से 300 करोड़ के नुकसान की आशंका है।
निर्माण कार्य बंद होने का सीधा असर माइनिंग पर पड़ा है। इससे सरकार को होने वाली आय बुरी तरीके से प्रभावित हुई है। जीएसटी लागू होने के बाद केंद्र सरकार से जो क्षतिपूर्ति राशि मिलना है वो पैसा भी अभी राज्य को नहीं मिला है। लॉकडाउन अवधि भी बढ़ा दी गई है अब इसका असर भी सरकार के खजाने पर पड़ेगा। कुल मिलाकर कोरोना का असर सरकार के लिए भी बड़ा नुकसानदेह साबित हो रहा है। यही कारण है की तत्कालीन कमलनाथ सरकार के कर्मचारियों को पांच फीसदी डीए देने के फैसले को मौजूदा शिवराज सरकार ने रोक दिया है।
मप्र में कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव लघु एवं मझोली इकाइयों पर पड़ा है। प्रदेश में करीब 95 फीसदी लघु एवं मझोली इकाइयां बंद पड़ी हैं। जो चल रही हैं उनके पास केवल 20-25 दिन की नकदी बची है। इसके बाद उन्हें कामकाज बंद करना पड़ सकता है। इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा होने का खतरा है। यदि कोरोना का फैलाव जारी रहा तो नौकरियां जाने का आंकड़ा और विकराल हो सकता है। इससे मप्र में ही करीब एक करोड़ लोगों के सामने रोजी-रोटी का खतरा मंडरा सकता है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स, मप्र-छग के पूर्व निदेशक राजेंद्र कोठारी कहते हैं कि ब्याज और वेतन पर सब्सिडी देना होगी। उद्योगों को मंदी के दौर से निकालने के लिए राज्य सरकार को औद्योगिक नीति बदलना होगी। सरकार ने कहा, मजदूरों को वेतन दो, मार्च में तो दे दिया लेकिन अप्रैल का वेतन कैसे देंगे। सरकार को यदि इन्हें दोबारा खड़ा करना है तो ब्याज और मजदूरों के वेतन पर सब्सिडी की नीति बनाना होगी।
मप्र में उद्योग-धंधों के बंद होने के बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति का आंकलन कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले से ही सचेत हो गए हैं। इसलिए सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के कारण प्रदेश में उत्पन्न आर्थिक संकट से निपटने में सुझाव देने के लिए 4 सदस्यीय समिति का गठन किया है। अपर मुख्य सचिव वित्त अनुराग जैन को समिति का समन्वयक बनाया गया है। समिति से सुझाव प्रस्तुत करने को कहा गया था। समिति में पूर्व वित्त सचिव भारत सरकार सुमित बोस, डायरेक्टर एनआईपीएफपी डॉ. रथिन राय, आईआईएम इंदौर के प्रोफेसर गणेश कुमार निडूगाला और महानिदेशक प्रशासन अकादमी एपी श्रीवास्तव को सदस्य मनोनीत किया गया था। समिति ने योग्य विषय विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने और प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के संबंध में स्वत: प्रक्रिया निर्धारित की।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच प्रदेशभर में करीब 30 प्रतिशत उद्योग ही चल रहे हैं। जो चालू है, उनमें में सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही प्रोडक्शन हो रहा है। इनमें से अधिकांश दवाईयों, पैकेजिंग, फूड प्रोसेसिंग के उद्योग हैं। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी के अनुसार जो उद्योग चल रहे हैं उनमें लेबर और रॉ मटेरियल की कमी के चलते पूरा उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इस कारण उद्योगों को हजारों करोड़ रुपए का फटका लगा है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के चलते प्रदेशभर के उद्योगों पर बुरा असर पड़ रहा है। पीथमपुर में लगभग 850 उद्योग और कंपनियां हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत कंपनियां लेबर और रॉ मटेरियल नहीं मिलने के कारण बंद हो चुकी है। सिर्फ 25 प्रतिशत वही कंपनियां काम कर रही है, जिनमें ऑटोमेटिक प्लांट है। अब इन उद्योगों को खड़ा करने के लिए सरकारी टेके की जरूरत पड़ेगी। कोठारी कहते हैं कि प्रदेश सहित देशभर की औद्योगिक इकाइयों को पटरी पर लाने के लिए सरकार को कम से कम 20 लाख करोड़ रुपए का टेका लगाना पड़ेगा।
औद्योगिक संगठन के अनुसार लॉकडाउन के कारण प्रदेश की समूची औद्योगिक अर्थव्यवस्था मुश्किल स्थिति में है। न निर्यात हो रहा है न उत्पादन, ऊपर से खर्च यथावत है। प्रदेश में बड़े, छोटे और मध्यम उद्योग करीब डेढ़ लाख हैं, लॉकडाउन के कारण इनकी हालत पतली होना तय है। वृहद उद्योगों को तो सिर्फ उत्पादन और निर्यात न होने से नुकसान हो रहा है। उनका लाभांश और रिजर्व आर्थिक क्षमता इतनी होती है कि वे लॉकडाउन खत्म होने के बाद दोबारा खड़े भी हो जाएंगे लेकिन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों पर ज्यादा संकट है। लगभग 10 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले इन उद्योगों को बेहद नुकसान उठाना पड़ा है। ये उद्योग ज्यादातर काम उधारी पर करते हैं, अब उधारी न मिलने से पुराना पैसा डूब सकता है और बैंक के कर्ज के कारण दोबारा खड़ा होना भी मुश्किल होगा। उद्योगपतियों को कर्मचारियों का वेतन भी देना है, बिजली का बिल है, बैंक की किश्त भी समय पर देना है और तो और प्रशासनिक दबाव में उन पर खाने के पैकेट बांटने की जिम्मेदारी भी सौंपी जा रही है। आखिर उद्योग-धंधे पटरी पर कैसे आ पाएंगे।
प्रदेश में कई ऐसे वृहद उद्योग हैं, जिनसे पचास हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। मंडीदीप स्थित एचईजी से सालाना 13 हजार करोड़, वर्धमान टेक्स्टाइल से 6500 करोड़ और ल्यूपिन फार्मा कंपनी से 18 हजार करोड़ की दवाएं निर्यात की जाती हैं। ऐसे ही कई अन्य उद्योग पीथमपुर व मालनपुर में भी हैं। इन 767 से ज्यादा उद्योगों में 13 लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स, मप्र-छग के पूर्व निदेशक राजेंद्र कोठारी कहते हैं कि प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराते हैं। लगभग 14,256 करोड़ के पूंजी निवेश वाले इस क्षेत्र पर कोरोना ने संकट खड़ा कर दिया है। इन छोटे 1,59,274 उद्योगों ने प्रदेश में 5 लाख 67 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। प्रमुख सचिव, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग मनु श्रीवास्तव का कहना है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की समस्याओं को लेकर विचार किया जा रहा है। सरकार की कोशिश है कि कोरोना संकट की वजह से प्रभावित कारोबारियों को राहत पहुंचाई जाए। जल्द ही इसका रोडमैप तैयार होगा।
औद्योगिक संगठनों के अनुसार मंडीदीप, पीलूखेडी, बागरोदा, अचारपुरा, जांबर बागरी, पिपरिया, बाबई, सीहोर जिले में बड़िया खेड़ी, धार-पीथमपुर में स्मार्ट औद्योगिक क्षेत्र इंदौर में आईटी पार्क, मुरैना में जीतापुर, शिवपुरी, गुना, जबलपुर, कटनी, ग्वालियर, उज्जैन, रतलाम, देवास, सागर, सतना, नीमच, मालनपुर सहित जितने भी औद्योगिक विकास क्षेत्र हैं वहां सन्नाटा पसरा है। कोरोना वायरस के कारण लाखों की संख्या में कर्मचारी और मजदूर पलायन कर गए हैं। इस कारण मजबूरी में अधिकांश उद्योग बंद करने पड़े हैं। पीथमपुर के उद्योगों में लगभग 1 लाख लेबर और कर्मचारी काम करते हैं। जिसमें से 70 हजार राज्य कर्मचारी बीमा निगम के रिकॉर्ड में हैं, वहीं 30 हजार ठेकेदारों के जरिए काम पर लगाए जाते हैं। इसमें से 70 हजार कर्मचारी और मजदूर घर बैठ गए हैं। ऐसी ही स्थिति अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की है। मालनपुर की 120 इकाइयों में काम बंद है। फैक्टरियां बंद होने से इनमें काम करने वाले 15 हजार वर्कर घर बैठ गए हैं, जिसमें करीब 9 हजार ठेके पर काम करने वाले मजदूर भी शामिल हैं। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी का कहना है कि कोरोना वायरस में उद्योगों की कमर तोड़कर रख दी है।
गरीबों की संख्या बढ़ेगी
कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन की वजह से भारत से गरीबी खत्म करने की कोशिशों पर करारा झटका लग सकता है। पिछले तीन दशकों में चीन के अलावा भारत एकमात्र ऐसा देश रहा है जिसने कई लाखों लोगों को गरीबी से निकाला है। साल 2006 से 2016 के बीच, 27.1 करोड़ लोग भारत में गरीबी से बाहर आए हैं। लेकिन अब इस लॉकडाउन के चलते कई लोगों की जिंदगी अधर में है क्योंकि कई हजारों लाखों बेरोजगार हो गए और अपने गांव-कस्बों की ओर लौटने को मजबूर हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 संकट के चलते भारत के करीब 40 करोड़ मजदूर, जिनका अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान है, गरीबी में जा सकते हैं। जाने-माने अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन का कहना है कि भारत में गरीबी हटाने का आधार कंस्ट्रक्शन और निर्यात एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में जॉब वृद्धि थी। इन जगहों पर कम-स्किल्ड और कम पढ़े-लिखे लोगों को नौकरी मिल जाती थी। ये सब दिहाड़ी मजदूरी मॉडल पर आधारित था। वह कहते हैं कि हमने स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कुछ खास नहीं किया। अगर व्यक्ति दिहाड़ी मजदूरी नहीं कमा पाता है तो बड़ी संख्या में गरीबी बढ़ने का खतरा है।
पिछड़ जाएगा उद्योग जगत
औद्योगिक संगठनों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में कपड़ा, सीमेंट, इस्पात, खाद्य प्रसंस्करण, ऑटोमोबाइल और ऑटो कम्पोनेंट, फार्मा और ऑप्टिकल फाइबर सहित जितने भी उद्योग हैं उनमें से 75 प्रतिशत उद्योग बंद पड़े हैं। राज्य की आय में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 14 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे मेें अनुमान लगाया जा सकता है कि मप्र को कितनी बड़ी क्षति पहुंचने वाली है। औद्योगिक संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के कहर के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित इम्पोर्ट एक्सपोर्ट करने वाले उद्योग हुए हैं। सेज में चलने वाले उद्योग अपना माल स्थानीय स्तर पर नहीं बेच सकते। यहां पर होने वाला प्रोडक्शन आयात निर्यात विदेशों में ही होता है। मगर लॉकडाउन के चलते सारा सिस्टम फेल हो गया है। 14 अप्रैल के बाद अगर लॉकडाउन हटाया भी जाता है तो पलायन कर चुके कर्मचारियों और मजदूरों को आने में लंबा समय लगेगा। जानकार बताते हैं कि कम से कम तीन माह बाद ही कर्मचारी और मजदूर वापस लौट पाएंगे। वहीं जिन कंपनियों को आर्डर मिले थे, उनके पास जितना
रॉ-मटेरियल था, उन्होंने उसका उत्पादन कर लिया है, मगर वह माल ट्रांसपोर्टेशन नहीं होने के कारण गोडाउन में ही पड़ा है और जो नए आर्डर आए थे, रॉ-मटेरियल खत्म होने के कारण वह अब प्रोडक्शन ही नहीं कर पा रहे हैं।
- सुनील सिंह