05-Apr-2021 12:00 AM
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मंडला के कान्हा नेशनल पार्क में रह रहे 108 बाघों और सैकड़ों वन्यजीवों की शांति भंग करने की तैयारी हो रही है। खबर है कि राज्य सरकार कान्हा के बफर जोन से सटे रिजर्व फॉरेस्ट में 848.32 हैक्टेयर भूमि पर डोलोमाइट खनन कराना चाहती है। इसके लिए जल्द ई-टेंडर जारी होंगे। जंगल में बसे गांवों में खनन के लिए खनिज विभाग ने डेढ़ महीने पहले तैयारी शुरू कर दी थी। उसने पेसा एक्ट 1996 (पंचायत-अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम) की अनदेखी कर गौण खनिज अधिनियम बदले। 31 मेजर मिनरल को माइनर घोषित कराया।
खनन की मंजूरी का अधिकार कलेक्टर को दे दिया। डोलोमाइट अब गौण खनिज हो गया है, जो पहले केंद्र के अधीन मेजर मिनरल की सूची में था। इससे खनन के लिए अब पर्यावरण मंजूरी भी नहीं लेनी होगी। मामले में प्रदेश के खनिज विभाग के संचालक विनीत ऑस्टिन का कहना है कि नए प्रावधानों से किसी केंद्रीय कानून या फॉरेस्ट एक्ट का उल्लंघन नहीं हुआ, बल्कि खनिज मंजूरी की प्रक्रिया आसान बनी है। कान्हा के आसपास खनन की अनुमति देने का अधिकार अब तक गोंड आदिवासियों के पास था, लेकिन खनिज विभाग ने डेढ़ महीने पहले नियम बदले और यह हक कलेक्टर को दे दिया।
मप्र गौण खनिज नियम 1996 के अनुसार राज्य द्वारा गौण खनिजों के लिए तीन प्रकार के खनिज अधिकार मिलते हैं, जो खान का पट्टा, नीलामी और अस्थाई अनुज्ञा हैं। इसके दायरे में वे खनिज आते हैं, जिनका राजस्व राज्य सरकार के पास जमा होता है और केंद्र की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। 2015 में केंद्र सरकार ने डोलोमाइट सहित 31 बड़े खनिजों को गौण के रूप में नए सिरे से परिभाषित किया था। इसी आधार पर विभाग ने 22 जनवरी को गौण खनिज नियम बदले हैं।
डोलोमाइट को माइनर मिनरल की सूची में डाला, ताकि पर्यावरण की मंजूरी न लेनी पड़े। विभाग के इस खेल का खुलासा तब हुआ, जब मंडला जिला प्रशासन ने जिला पंचायत के जरिए बिछिया तहसील के भंवरताल, काताजर, कातामाल, चंद्रपुरा की ग्राम सभाओं से डोलोमाइट खनन के लिए ई-टेंडर जारी करने के लिए अभिमत मांगा। प्रशासन 11 स्थानों पर खनन करना चाहता है, जिस पर ग्राम सभाओं ने आपत्तियां लगाई हैं। ये गांव कान्हा के उत्तर-पश्चिमी छोर पर हैं और गोंड आदिवासी बहुल होने के चलते संविधान की पांचवीं अनुसूची में आते हैं। इसलिए यहां पेसा एक्ट लागू है और किसी भी तरह के खनन के लिए प्रशासन को ग्राम सभाओं से अनुमति लेना अनिवार्य है। लेकिन, खनिज विभाग ने एक्ट के प्रावधानों को अनदेखा कर खनन की मंजूरी के अधिकार कलेक्टर को दे दिए।
अब कलेक्टर ग्राम सभा को नोटिस देकर सूचित करेगा। अभिमत लेगा। अभिमत नहीं मिला तो उसे डीम्स अनुमति माना जाएगा। अधिनयम में नई धारा 18 ए (2) जोड़ी, जिसे कलेक्टर सुझाव-आपत्ति सुनेगा। इसी नियम के आधार पर मंडला कलेक्टर ने अभिमत मांगा है। मंडला के पर्यावरण कार्यकर्ता विभूति झा कहते हैं कि भंवरताल, काताजर में निस्तार जमीन बफर जोन से सटा क्षेत्र है। कान्हा में बाघों की संख्या ज्यादा है और जगह कम पड़ रही है। इसलिए यहां टेरिटोरियल फाइट और इंसानों-बाघों की भिड़ंत की स्थिति हमेशा रहती है। 2015 से 2021 के बीच बाघों और तेंदुओं ने पार्क के बाहर 131 पालतू पशु मारे। ये वे मामले हैं, जिनमें वन विभाग ने मुआवजा दिया है। यदि यहां हजारों हैक्टेयर में खनन होगा तो न केवल जंगल काटा जाएगा, बल्कि वायु-ध्वनि प्रदूषण से पार्क की जैव विविधता और पर्यावरण भी खतरे में पड़ जाएगा।
कान्हा टाइगर रिजर्व, जिसे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, भारत के बाघों के भंडार में से एक है और भारत के मध्य में स्थित मप्र का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। वर्तमान कान्हा क्षेत्र को क्रमश: 250 और 300 किमी दो अभयारण्यों, हॉलोन और बंजार में विभाजित किया गया था। कान्हा नेशनल पार्क 1 जून 1955 को बनाया गया था और 1973 में कान्हा टाइगर रिजर्व बनाया गया था। आज यह दो जिलों मंडला और बालाघाट में 940 किमी के क्षेत्र में फैला है। यह इसे मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान बनाता है। कान्हा टाइगर रिजर्व पर्यटकों के लिए शीर्ष 10 प्रसिद्ध स्थानों में से एक हैं। पार्क में टाइगर, भारतीय तेंदुओं, सुस्त भालू, बारहसिंघा और भारतीय जंगली कुत्ते की महत्वपूर्ण आबादी है। रूडयार्ड किपलिंग के प्रसिद्ध उपन्यास द जंगल बुक में दर्शाए गए जंगल को कुछ लोगों द्वारा इस रिजर्व सहित जंगलों पर आधारित माना जाता है। यह आधिकारिक रूप से शुभंकर 'भूरसिंह द बारहसिंघाÓ पेश करने वाला भारत का पहला बाघ अभयारण्य है।
बफर जोन के पास खनन
प्रदेश में खनन माफिया किस कदर हावी है इसकी बानगी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पास देखने को मिल रही है। टाइगर रिजर्व के बफर एरिया से लगे संवेदनशील क्षेत्र जाजागढ़ के पिपहि नदी का सीना चीरने में लगा रेत माफिया का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि यहां रेत खनन में खुलेआम मनमानी कर पानी के अंदर से रेत निकाली जा रही है। जानकार बताते हैं कि जाजागढ़ बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का संवदेनशील क्षेत्र है, यहां वन्यप्राणियों का मूवमेंट बना रहता है। जंगल के अंदर तक नदियों से रेत खनन से पानी का बहाव प्रभावित होगा। नदी का इकोसिस्टम तबाह हो जाएगा और इसका सीधा असर वन्यप्राणियों के विचरण और उनके जीवन पर पड़ेगा। रेत के मनमाने खनन पर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और कटनी जिले के राजस्व विभाग के अधिकारी आमने-सामने हैं। दोनों विभाग के अफसर एक-दूसरे पर जवाबदेही की बात कहकर कार्रवाई से करने से बच रहे हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर विसेंट रहीम ने बताया कि जाजागढ़ स्थित पिपहि नदी में रेत खनन बफर एरिया या संवदेनशील क्षेत्र में होगा तो कार्रवाई की जाएगी।
- श्याम सिंह सिकरवार