पूरी दुनिया में वन्य जीवों का शिकार एक बड़ी समस्या है। ये एक जघन्य अपराध तो है ही, साथ ही हमारे ईको सिस्टम के लिए काफी खतरनाक है। भारत वन्य जीवों के शिकार और तस्करी का हॉट स्पॉट बनता जा रहा है। वहीं टाइगर स्टेट का खिताब पाने वाला मप्र टाइगर पोचिंग में अव्वल बनता जा रहा है। इसके पीछे अंधविश्वास बड़ी वजह माना जा रहा है। इसको देखते हुए हाईकोर्ट ने 29 जनवरी को अंधविश्वास से लड़ने के लिए टास्क फोर्स बनाने के निर्देश दिए थे, लेकिन ढाई महीने बाद उसका गठन नहीं किया जा सका।
प्रदेश में अब तक बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों के जितने भी शिकारी पकड़े गए हैं उनमें से अधिकांश ने बताया कि प्रदेश में अंधविश्वास की वजह से उनका शिकार किया जा रहा है। कभी रुपयों की बारिश के भ्रम में पड़कर तो कभी तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए निरीह वन्य प्राणियों की जान ली जा रही है। इन सबसे लड़ने के लिए टास्क फोर्स बनाई जानी थी जिसका काम अंधविश्वास से निपटना था, लेकिन ढाई महीने बाद भी यह फोर्स जमीन पर नहीं उतरी है। फोर्स का गठन वन विभाग व वन्यप्राणी विभाग को करना था। मप्र वन्यप्राणी विभाग के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक शुभरंजन सेन का कहना है कि हाईकोर्ट की मंशा के अनुरूप वन्यप्राणियों को अंधविश्वास से बचाने के लिए काम किया जा रहा है। जल्द ही और मजबूत व्यवस्था बनाई जाएगी। अभी टास्क फोर्स का गठन नहीं किया है। पूर्व से स्थानीय स्तर पर जन जागरूकता संबंधी कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। टास्क फोर्स का गठन भी जल्द से जल्द करने के प्रयास किए जाएंगे।
वर्तमान में वन विभाग के पास अंधविश्वास से लड़ने की कोई सशक्त व्यवस्था नहीं है। केवल टाइगर रिजर्व और सामान्य वन मंडलों में स्थानीय वनकर्मियों द्वारा वन्यप्राणी सप्ताह के अंतर्गत कार्यशाला की जाती है। अलग से कोई विशेष अभियान नहीं चलाया जा रहा है। जबकि हाईकोर्ट ने 29 जनवरी को अंधविश्वास से लड़ने के लिए टास्क फोर्स बनाने के निर्देश दिए थे। दरअसल, प्रदेश में अलीराजपुर कट्ठीवाड़ा के जंगल में दो शिक्षकों समेत आधा दर्जन लोगों ने मिलकर तेंदुए का शिकार किया था। यह घटना वर्ष 2020 में हुई थी। तेंदुए की खाल धार जिले में बेची गई थी। इस मामले की छानबीन स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स इंदौर ने करते हुए सभी शिकारियों को पकड़ा था। जब इन्हें स्थानीय कोर्ट से जमानत नहीं मिली तो जबलपुर हाईकोर्ट में अर्जी दी थी। उस समय मामले की सुनवाई न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर ने की थी और जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। टास्क फोर्स के गठन के सुझाव भी दिए थे। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मंशा जताई है कि एसटीएसएफ ने जिस तरह बाघ, तेंदुए के शिकार के जुड़े गंभीर मामलों को सुलझाकर वन्यप्राणियों के अवशेषों से जुड़े व्यापार पर रोक लगाई है ठीक उसी तरह अंधविश्वास से लड़ने के लिए टास्क फोर्स बनाई जाए।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में 6 वर्ष में 182 बाघों के शिकार के मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 35 प्रतिशत शिकार की वजह अंधविश्वास ही सामने आई है। अभी तक प्रदेश में अंधविश्वास में शिकार के जो गंभीर मामले सामने आए हैं उनमें मार्च 2022 में एक मामला सामने आया था। बालाघाट सामान्य वन मंडल की टीम ने लालबर्रा वन परिक्षेत्र से एक सेवानिवृत्त पुलिस कर्मचारी और अन्य आरोपितों को पकड़ा था। इनके पास से बाघ के अवशेष बरामद किए गए थे। इन्होंने अवशेष जबलपुर से खरीदे थे। इन्होंने बताया था कि इन अवशेषों के जरिए तांत्रिक अनुष्ठान कर रुपयों की बरसात करने की योजना थी। इन्होंने बाघ का शिकार कर उसके अवशेष तांत्रिक विद्या के लिए उपयोग किए थे। तब मुखबिर की सूचना पर बालाघाट सामान्य वन मंडल की टीम ने कार्रवाई की थी। वहीं अप्रैल 2019 में रायसेन जिले की बिनेका रेंज की बगासपुर बीट में शिकारियों ने बाघ का शिकार किया था। चारों पंजे, दांत और मूंछ के बाल काटकर ले गए थे। वन विभाग की टीम ने तीन शिकारियों को गिरफ्तार किया था। बिनेका रेंज में बाघों का मूवमेंट रहता है। शिकारी इसी का लाभ उठाते हुए इनका शिकार करने की जुगत में रहते हैं। इससे पहले दिसंबर 2018 में रातापानी अभयारण्य में बगासपुर गांव के पास बाघ का शिकार किया गया था। शिकारियों ने उसके पंजे काटकर घर में रख लिए थे। इस मामले में वन विभाग की टीम ने एक चरवाहे को गिरफ्तार किया था। शिकारी का कहना था कि घर में बरकत आने के लिए उसने पंजे काटकर रखे थे।
बाघों की सुरक्षा के लिए करोड़ों का बजट
मप्र सरकार हर साल बाघों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन उसके बावजूद प्रदेश में बाघ दम तोड़ रहे हैं। राज्य सरकार ने 2018-19 में बाघों के संरक्षण, सुरक्षा और निगरानी में 283 करोड़ रुपए, 2019-20 में 220 करोड़ और 2020-21 और 2021-22 में क्रमश: 264 करोड़ और 128 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। राष्ट्रीय पशु की सुरक्षा में करोड़ों का बजट व्यय करने के बाद भी 2017 के बाद प्रदेश में बाघों की आईडी नहीं बनी है। आईडी के जरिए ही वन विभाग बाघों की निगरानी करता है, लेकिन 2017 के बाद प्रदेश के कई टाइगर रिजर्व में बाघों की आईडी बनाने का काम बंद हैं। हाल ही में जारी विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले बांधवगढ़ में 50 से ज्यादा बाघ बिना आईडी के विचरण कर रहे हैं।
- धर्मेंद्र सिंह कथूरिया