दलित और आदिवासियों के उत्थान की बात करने वाली भाजपा की केंद्र सरकार ने इस बार बजट में ऐसी बाजीगरी की है कि दलितों और आदिवासियों के हाथ निराशा लगी है। आमजन भी यह कहते सुने गए कि महंगाई और बढ़ती कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं तो बजट का कोई मतलब नहीं। नेशनल कंफेडेरशन आफ दलित एंड आदिवासी आर्गेनाईजेशंस (नैक्डोर) ने जन-जन के बजट 2020 की समीक्षा की है। बजट में अनुसूचित जातियों की 16.6 प्रतिशत आबादी के विकास के लिए केवल 2.74 प्रतिशत आवंटन किया गया है। दरअसल बजट आंकड़ों की बाजीगरी का अखाड़ा बनता जा रहा है। यह बजट दलितों और आदिवासियों के लिए हाथी के दांत की तरह है। यह दिखता बड़ा है पर असल में दलितों और आदिवासियों को देता बहुत कम है। आइए इस हकीकत को समझें।
राष्ट्रीय मानव अधिकार अभियान-दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन के अनुसार केंद्र सरकार 'सबका साथ सबका विकासÓ की बात करती है। और आश्वस्त करती है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा बाकी आबादी के बीच जो विकास की खाई है उसको पाटने के लिए विकास के फासले को समाप्त किया जाएगा। लेकिन जब हम इनके दिए गए आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो इनकी कथनी और करनी का फर्क शीशे की तरह साफ हो जाता है। इनका विश्लेषण तीन प्रकार से किया जाता है। 1. आवंटन के आधर पर 2. उन लक्षित स्कीमों के औसत के आधर पर जो अनुसूचित और अनुसूचित को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाती हैं और 3. बजट की विश्वसनीयता जो कि इस खाई को पाटने के उपाय करती है। यानी स्कीमों के लिए कितना बजट आवंटित किया जाता है और कितना बजट उपयोग किया जाता है।
इस वर्ष अनुसूचित जाति कल्याण आवंटन के तहत 323 स्कीमों के लिए 83, 257 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के कल्याण आवंटन के तहत 331 स्कीमों के लिए 53,653 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यानी सरकार अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजाति की बाकी आबादी के बीच की खाई पाटने का दावा कर रही थी लेकिन बजट 2020-21 में वह परिलक्षित नहीं रहा। क्योंकि अनुसूचित जनजाति बजट के तहत लक्षित योजनाओं के लिए सिर्फ 19.43 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 36.2 प्रतिशत आवंटित किए गए हैं। बाकी सामान्य योजनाओं को अनुसचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का मुखौटा पहना दिया गया है। यानी नाम यह कि यह बजट अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आवंटित किया गया है पर लाभ मिलेगा सामान्य आबादी को!
पिछले वर्ष की तुलना में पोस्ट मैट्रिक स्कोलरशिप में मामूली वृद्धि की गई है। अनुसूचित जाति का बजट 2987 करोड़ रुपए है वहीं अनुसूचित जनजाति का बजट 1900 करोड़़ रुपए है। यह देखा जाए कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बड़ी संख्या में छात्र अपनी उच्च शिक्षा के लिए इस स्कीम पर निर्भर होते हैं। दुखद है कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजति की कुछ महत्वपूर्ण विकास योजनाओं को उनकी आवश्यकता के अनुसार बजट आवंटित नहीं किया गया है।
शिक्षा के क्षेत्र में देखें तो सामाजिक-आर्थिक समस्याएं और भेदभाव के अनुभव मौजूद होने के बावजूद दलित और आदिवासी छात्र उच्च शिक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर आगे बढ़ रहे हैं। उच्च शिक्षा के ऑल इंडिया सर्वे बताते हैं कि पिछले पांच सालों में छात्रों के अनुक्रमांक और प्रतिशत बढ़ा है। शैक्षिक वर्ष 2014-15 अनुसूचित जाति के छात्रों की उच्च शिक्षा में प्रतिशत कुल छात्रों की तुलना में 13.47 प्रतिशत था। अकादमिक वर्ष 2018-19 में यह बढ़करर 14.89 प्रतिशत हो गया यानी उनकी संख्या 55,67,078 हो गई। इसी प्रकार आदिवासी छात्रों का प्रतिशत 4.80 प्रतिशत था, वह बढ़कर 5.53 प्रतिशत हो गया यानी उनकी संख्या 20,67,748 हो गई।
इसी प्रकार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की कुछ प्रमुख स्कीमें जो उच्च शिक्षा प्रदान करती हैं जैसे पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप कम आवंटन की चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इसके अलावा सरकार के सुस्त सिस्टम के कारण पोस्ट मैट्रिक की धनराशि तब मिलती है जब सत्र खत्म होने को होता है। इससे अजा एवं अजजा के छात्रों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस स्कॉलरशिप को प्राप्त करने के लिए सरकार की जटिल प्रक्रिया के कारण भी छात्रा-छात्राओं को बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं- यह अलग कहानी है। इस बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए राईट-टू-एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय कहते हैं कि-'बच्चों के संविधन प्रदत्त मौलिक अधिकार, शिक्षा का अधिकार कानून-2009 को लगभग 10 साल पूरे हो गए और पिछले पांच सालों से बन रही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में पेश मौजूदा बजट फिर से घोर निराशाजनक साबित हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत बजट आवंटन पर शिक्षा पर खर्च करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। पर सरकार इसमें विफल रही है।
बजट में बड़ी कटौती
नीति आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार इन 41 मंत्रालयों का कुल फंड निर्धारण अनुसूचित जाति समुदायों के लिए 1,39,172 करोड़ रुपए 323 स्कीमों के तहत होना चाहिए। पर अनुसूचित समुदायों के लिए वास्तविक आवंटन सिर्फ 83,257 करोड़ रुपए ही है। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के लिए कुल फंड आवंटन 77,034 करोड़ रुपए होना चाहिए पर वास्तविक आवंटन सिर्फ 53, 653 करोड़ रुपए है। अनुसूचित जाति की 323 कुल स्कीमों में से सिर्फ 52 लक्षित स्कीमें हैं और 271 गैर-लक्षित स्कीमें हैं। जिनके अंतर्गत आवंटित धनराशि क्रमश: 16,174 करोड़ और 67,083 करोड़ रुपए है। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति की 331 स्कीमों में से सिर्फ 42 लक्षित स्कीमें हैं और 289 गैर-लक्षित स्कीमें हैं। और इनके लिए आवंटित धनरशि क्रमश: 19, 428 करोड़ रुपए और 34, 225 करोड़ रुपए है।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया