पशु पालन विभाग द्वारा बकरी ईकाई योजना में वर्ष 2018-21 के दौरान अनूपपुर जिले में बांटे गए लोन में जिम्मेदारों ने आधे-अधूरे कागजी दस्तावेजों को जमाकर लोन राशि का वितरण कर दिया। जिसमें बैंक ने जहां विभाग द्वारा बिना स्वीकृत सब्सिडी की राशि वाली लोन राशि को हितग्राही के नाम कर दिया, वहीं पशु पालन चिकित्सक और बीमा कंपनी व बैंक अधिकारियों ने बिना कमेटी सदस्यों के बीच हितग्राही को बांटी गई बकरियों की तस्वीर प्रमाणिक रूप में दस्तावेज के साथ संलग्न कर कर्जदार बना दिया। जबकि प्रावधानों के अनुसार वेंडर द्वारा हितग्राहियों को दिए गए बकरियों के दौरान बैंक अधिकारी, बीमा कंपनी, पशु चिकित्सक, पंचायत सरपंच, वेंडर और हितग्राही के साथ साक्षी की उपस्थिति अनिवार्य थी। लेकिन यहां वेंडर और हितग्राही के साथ बकरियों की तस्वीर लगी पड़ी हैं। इसके अलावा हितग्राहियों से संयुक्त टीम की जांच विवेचना में लिए गए बयान में हमेशा अस्थिरता आई, जिसमें वेंडर द्वारा कम संख्या में बकरियां देकर कम पैसों में उससे खरीदी के मामले भी सामने आए हैं। वहीं दो हितग्राहियों के नाम बैंक ने लोन जारी नहीं किया, और उनके नाम लोन के कर्ज में शामिल हो गया है।
माना जाता है कि लोन प्रक्रिया में शामिल जिम्मेदारों ने सुनियोजित तरीके से लोन का वितरण किया, जिसमें अधूरी कागजी कार्रवाई के साथ लोन वितरण की प्रक्रिया के बाद हितग्राहियों को बकरियों को बांटा। जिसमें वेंडर ने बकरियों की खरीद फरोख्त में अहम भूमिका निभाई। वहीं अब उपसंचालक पशु पालन एवं डेयरी विभाग ने कलेक्टर को अनंतिम जांच प्रतिवेदन सौंपा है। कलेक्टर को सौंपे गए दस्तावेज में शिकायतकर्ताओं के दिए शिकायत व हितग्राहियों के नामों के अनुसार विभाग द्वारा गठित तीन सदस्यीय टीम की संयुक्त जांच कार्रवाई और बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेज को शामिल किया है। अधिकारी का कहना है कि जांच टीम द्वारा दर्ज किए गए बयानों और विभाग को बैंक से मिले दस्तावेजों में यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि पशु पालन विभाग की बकरी ईकाई योजना में सभी जिम्मेदारों ने सुनियोजित तरीके से बैंक के लोन और विभागीय अनुदान की राशि में गड़बड़ी की है। इसमें विभागीय पशु चिकित्सक के साथ बैंक, हितग्राही, वेंडर, गांव के प्रधान के साथ गवाहों की भूमिका संदिग्ध मानी गई है।
विभाग को बैंक से मिले दस्तावेजों में हितग्राहियों के नाम ऋण वितरण उपरांत निरीक्षण, बकरी प्रदाय आदेश, बीमा कंपनी की बीमा पॉलिसी, संतुष्टि एवं सहमति अदाएगी, कोटेशन के दस्तावेजों पर लोन वितरण कमेटी के जिम्मेदारों के हस्ताक्षर के साथ गवाहों के भी समर्थन दर्ज है। यहीं नहीं बैंक ने दस्तावेजों में हितग्राहियों के घरों पर बैंक ऋण वितरण उपरांत निरीक्षण में दर्ज बयान में बताया है कि हितग्राही द्वारा पशु एवं आहार सामग्री का क्रय कर लिया गया है, निरीक्षण में सही पाया गया। हितग्राही पूर्ण रूप से सहमत और संतुष्ट है। इस आशय के तहत बकरी सप्लायर को भुगतान किया जा सकता है। इसके अलावा बकरियों के पशु विभाग के स्वास्थ्य प्रमाण के साथ पाने और किसी प्रकार की कोई और बकरी नहीं पाने और पशु विभाग एवं बैंक के दिए निर्देशों का पालन करने और कर्ज चुकाने पर भी अपनी सहमति प्रदान की है। लेकिन अब हितग्राहियों के पास बकरियां ही नहीं हैं। जबकि योजना में उपलब्ध कराए गए बकरियों के बच्चों को पालन कर उसे बेच लोन का कर्ज चुकाने के प्रावधान थे।
पूरी जांच प्रक्रिया और बैंक द्वारा सौंपे गए खुद के दस्तावेजों में गड़बड़ी पाई गई है। जिसमें पुष्पराजगढ़ के 19 केस में 10 हितग्राहियों की शिकायत में 3 हितग्राही के बिना सब्सिडी के लोन जारी किए गए हैं। 2 हितग्राहियों को सब्सिडी जारी होने बाद भी लोन बंैक से वितरित ही नहीं हुआ। 5 हितग्राहियों को जारी सब्सिडी में 1 ने राशि निकाल ली। 2 हितग्राहियों की सब्सिडी बैंक ने एफडी कर दी, और 2 हितग्राही संतुष्ट है। अनूपपुर कलेक्टर सोनिया मीणा कहती हैं कि जांच प्रतिवेदन मिला है, इसका अवलोकन करते हुए आगे की कार्रवाई की जाएगी। जो भी दोषी होंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। वहीं उपसंचालक पशु व डेयरी विभाग अनूपपुर डॉ. वीपीएस चौहान कहते हैं कि बैंक के दस्तोवज के साथ हितग्राहियों के कथन व जांच टीम की रिपोर्ट को अनंतिम जांच प्रतिवेदन के रूप में कलेक्टर को सौंपा गया है। एलडीएम के दस्तावेजों की जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट सौंपी जाएगी। प्रथम दृष्टया में लोन प्रकरण में सभी जिम्मेदार दोषी नजर आ रहे हैं।
कई स्तरों पर की गई है गड़बड़ी
अनूपपुर के पुष्पराजगढ़ का बकरी घोटाला मामला तूल पकड़ रहा है। इस पूरे मामले की जांच 3 सदस्यीय टीम कर रही है। जांच के पहले पड़ाव में पशु विभाग, बैंक, बीमा एजेंट, पशु चिकित्सक और वेंडर की मिलीभगत सामने आई थी। जांच पड़ताल में पता चला कि बैंक ने लोन की प्रक्रिया पूरी किए बिना ही लोन स्वीकृत कर दिया जबकि बैंक को पहले पशुपालन विभाग को जानकारी और हितग्राहियों से स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और विभागीय पत्र लेना चाहिए था। सिर्फ बैंक ही नहीं वेंडर ने भी बीमा एजेंट, बैंककर्मियों और पशु पालन विभाग के साथ मिलकर विभागीय प्रमाण पत्र के बिना ही हितग्राहियों को कम बकरियां बांट दी गई और फोटो खिंचवाने के बाद हितग्राहियों को मांग के चेक देकर दूसरे हितग्राहियों को बकरियां बांट दी गईं। ऐसा ही कई हितग्राहियों के साथ किया जा रहा है। जांच में सबसे बड़ी बात यह सामने आई कि बैंक ने हितग्राहियों के खाते की राशि वेंडर के खाते में डाल दी वहीं 2 साल बाद बैंक ने लोन की राशि चुकाने के लिए आनन-फानन में नोटिस जारी कर दिया। जिसके बाद हितग्राहियों ने अनूपपुर कलेक्टर से शिकायत की और इस विषय में जांच पड़ताल शुरू की गई। उपसंचालक पशुपालन और डेयरी विभाग का कहना है कि बैंक से पूरे दस्तावेजों को मिलाने के बाद ही पूरी सच्चाई सामने आएगी कि हितग्राहियों को कितनी राशि दी गई है और कितने का लोन किया गया था।
- बृजेश साहू