मप्र में हरियाली को लेकर जंगलों से एक सुखद खबर है। खबर यह कि प्रदेश में वन क्षेत्र बढ़ गया है। ये तथ्य भारतीय वन सर्वेक्षण 2019 की रिपोर्ट में सामने आए हैं। प्रदेश में 68 वर्ग किमी जंगल बढ़ा है। 2017 में प्रदेश में वन क्षेत्र 77,414 वर्ग किमी था, जो 2019 में 77,482 वर्ग किमी हो गया। लेकिन इसके बाद भी प्रदेश के वन क्षेत्र में रहने वाले खतरनाक वन्य प्राणी आबादी की ओर रूख कर रहे हैं। खासकर बाघ का वन क्षेत्र से बाहर आना खतरे का संकेत है। ऐसे में प्रदेश में बाघों की सुरक्षा और उनकी वंशवृद्धि के लिए संरक्षित क्षेत्रों के बीच सुरक्षित कॉरिडोर की जरूरत महसूस होने लगी है।
वन विभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 11 जिलों में बाघों की आवाजाही बढ़ गई है। इनमें कुछ ऐसे जिले भी हैं, जिनमें पहले कभी बाघ नहीं देखे गए। ऐसे हालात में संरक्षित क्षेत्रों में बाघों के बीच वर्चस्व की लड़ाई की आशंका बढ़ गई है। बाघों के प्रदेश की सीमा से बाहर जाने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है। भोपाल के जंगल में 18 बाघ हैं। ये तो वन विभाग की गिनती में हैं। इनके अलावा औबेदुल्लागंज, सीहोर और रायसेन के जंगल से भी बाघों का आना-जाना लगा है। इनकी आबादी बढ़ती जा रही है। इन्हें जंगल के भीतर शिकार के लिए हिरण, चीतल जैसे वन्यप्राणी नहीं मिल रहे हैं। नीलगाय भी गिने-चुने हैं इसलिए ये शिकार की आड़ में शहर तक पहुंच रहे हैं। आने वाले सालों में ये घटनाएं बढ़ेंगी। बाघ और मानव के बीच आपसी संघर्ष की नौबत आएगी। दोनों को नुकसान पहुंचेगा।
प्रदेश के संरक्षित क्षेत्र, कान्हा, बांधवगढ़ एवं पेंच टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या पार्कों की क्षमता से ज्यादा हो गई है तो सामान्य वनमंडलों में भी बाघ दिखाई देने लगे हैं। भोपाल की ही बात करें तो यहां चार नए बाघ देखे जा रहे हैं। इन्हें मिलाकर भोपाल के आसपास 18 बाघों का मूवमेंट बताया जा रहा है। ऐसे ही बालाघाट के जंगलों में 40 बाघ बताए जा रहे हैं। इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर डैम के नजदीकी क्षेत्रों में भी बाघों का मूवमेंट देखा जा रहा है। इस क्षेत्र में दो साल पहले तक बाघ नहीं थे। क्षेत्र को बाघों से आबाद करने के लिए इन क्षेत्रों में तीन साल पहले चीतल शिफ्ट किए गए थे। पिछले तीन साल से देवास में भी बाघ देखे जा रहे हैं। जबकि इससे पहले इस क्षेत्र में बाघ नहीं देखे गए। खंडवा, पन्ना, छतरपुर, दमोह, उमरिया, चित्रकूट, मैहर, सारंगपुर, सतना, रीवा, कटनी, शहडोल, ब्यौहारी और जबलपुर के जंगलों में भी बाघों का मूवमेंट है।
वन्यजीव विशेषज्ञ एके खरे बताते हैं कि जंगलों में संख्या बढ़ने के कारण बाघ बाहर आ रहे हैं तो उनके रास्ते का माहौल भी जंगल जैसा ही हो। दो संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने वाले रास्ते में जंगल खड़ा करना होगा। ताकि उनके मूवमेंट के दौरान बाघ-मानव का सामना न हो। सूत्र बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के पांच बाघ इन दिनों संरक्षित क्षेत्र से बाहर हैं। इनमें से एक बाघ नवंबर-दिसंबर में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले की सीमा पर देखा गया। ऐसे ही सीधी के रास्ते बाघ छत्तीसगढ़, पेंच के रास्ते महाराष्ट्र और राजस्थान की सीमा में भी जा रहे हैं।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मप्र की राजधानी भोपाल में भी बाघों की आवाजाही रहवासी क्षेत्रों में हो रही है। वन्यप्राणी विशेषज्ञ इन घटनाओं को असामान्य मान रहे हैं। उनका कहना है कि सभी कारणों में एक कारण जंगल के भीतर शाकाहारी वन्यप्राणियों की कमी होना भी है। जिसके कारण बाघ, तेंदुए शहर के अंदर तक पहुंच रहे हैं। पूर्व पीसीसीएफ वन्यप्राणी विभाग जीतेंद्र अग्रवाल ने दो साल पहले भोपाल सीसीएफ को सलाह दी थी कि जंगल के अंदर घास के मैदान विकसित करें। उसके बाद सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से शाकाहारी वन्यप्राणी हिरण, चीतल लाकर छोड़े। अभी तक यह काम नहीं हुआ है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बाघों को आबादी तक आने से रोकने के लिए जंगल के भीतर घास के मैदान विकसित किए जाएंगे। इसके बाद चीतल, हिरण जैसे शाकाहारी वन्यप्राणियों को छोड़ा जाएगा, ताकि बाघों को भरपूर शिकार मिल सके और वे आबादी तक न पहुंच सकें। यह योजना भोपाल वन वृत्त की है। इस पर काम शुरू हो गया है।
प्रदेश में बाघों की तेजी से बढ़ी आबादी
मप्र में पिछले कुछ सालों में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसी कारण मप्र को एक बार फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया है। बाघों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन उनका रहवासी क्षेत्र सिमटता जा रहा है। भोपाल से लगे जंगल में 18 बाघ हैं। इनके अलावा औबेदुल्लागंज, सीहोर और रायसेन के जंगल से भी बाघ भोपाल के जंगल में पहुंच रहे हैं। बीते सालों में शावकों का जन्म हुआ है, ये धीरे-धीरे वयस्क हो रहे हैं। इस तरह इनकी आबादी और बढ़ जाएगी। बढ़ती आबादी के हिसाब से भोपाल सामान्य वन मंडल के जंगल में शाकाहारी वन्यजीव हिरण, चीतल, नीलगाय की संख्या कम है। इसके कारण बाघ शिकार के लिए आबादी तक पहुंच रहे हैं। आने वाले सालों में ये घटनाएं बढ़ेंगी। बाघ और मानव के बीच आपसी संघर्ष की नौबत बनेगी। राजधानी के जंगल में शुरू से बाघ रहे हैं। पूर्व में ये आबादी के आसपास नहीं दिखते थे। 25-26 जनवरी की रात एक बाघ भोज विवि के कैंपस में घुस गया था। साल 2015 में भी एक बाघ नवीबाग तक आया था। उसे खदेड़ने के लिए वन विभाग को 15 दिन तक मशक्कत करनी पड़ी थी। वन्यप्राणी विशेषज्ञ इन घटनाओं को असामान्य बता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल के भीतर शाकाहारी वन्यप्राणियों की कमी को पूरा करना होगा। आबादी से लगे जंगल से कुछ किलोमीटर अंदर ही घास के मैदान विकसित किए जाएं। ऐसा करने से शाकाहारी वन्यजीवों का मूवमेंट घास के मैदान के आसपास रहेगा। बाघ भी उन्हें क्षेत्रों में शिकार करेंगे, स्वत: ही उनके आबादी तक आने की घटनाएं कम होंगी।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया