23-Jun-2020 12:00 AM
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ज म्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों का सिलसिला थम नहीं रहा है। भारत का स्वर्ग कही जाने वाली प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह अप्रतिम घाटी इस देश की शान ही नहीं, बल्कि मस्तक भी है। लेकिन दुख होता है कि सरकारों द्वारा इस स्वर्ग में शांति बहाली के लाख दावों तथा वादों के बावजूद यहां आज भी डर, दहशत और अशांति व्याप्त है। हर साल यहां न जाने कितने ही निर्दोष भारतीय नागरिक आतंकवादियों द्वारा मौत के घाट उतार दिए जाते हैं और हमारी सुरक्षा में दिन-रात लगे हमारे वीर जवान इस भारत-भूमि और यहां रहने वाले भारतीयों की रक्षा करते-करते शहीद हो जाते हैं। सत्ताएं आती हैं। खोखले दावे करती हैं। अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछाती हैं और चली जाती हैं। मगर भारत के इस स्वर्ग में नरक की तरह दिन-रात हमलों और हत्याओं का खेल यूं ही चलता रहता है। इस दर्द को एक सच्चा भारतीय ही महसूस कर सकता है।
हिंसा का नया दौर अप्रैल के पहले सप्ताह में शुरू हुआ, जब नियंत्रण रेखा के पास केरन सेक्टर में ऑपरेशन रेंडोरी बेहाक के तहत चली कार्रवाई में एकसाथ पांच सैनिक शहीद हुए और पांच आतंकवादियों की मौत हुई। घुसपैठियों के समूह के बारे में जानकारी मिलने पर सेना ने उन्हें घेरने के लिए सैनिकों को मौके पर भेजा था। यह एक कठिन पहाड़ी इलाका था, जहां भारी बर्फबारी भी हुई थी। इससे आतंकवादियों को ट्रैक करना मुश्किल हो गया। फिर भी हमारी जांबाज सेना ने अंतत: घुसपैठियों को खत्म कर दिया। हालांकि इसमें पांच सैनिक शहीद हो गए। इन उलटफेरों के बाद 5 मई को सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर में अपने पैतृक गांव बेगपोरा में छिपे हिजबुल मुजाहिद्दीन के ऑपरेशनल चीफ रियाज नाइकू को मार गिराया। नाइकू पिछले 8 साल से यहां सक्रिय था। पिछले साल अलकायदा की कश्मीर यूनिट 'अंसार गजवत-उल-हिंद’ के कमांडर जाकिर मूसा को ढेर करने के बाद सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह सबसे बड़ी सफलता थी।
हालांकि, कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान चले जाने से कश्मीर में चल रही हिंसा से ध्यान हट गया है। लेकिन घाटी और नियंत्रण रेखा दोनों पर आतंकी गतिविधियों में नाटकीय वृद्धि को देखते हुए, जिसमें 6 साल के बच्चे सहित 4 नागरिकों की हत्या भी हुई; गर्मियों के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं। स्तंभकार नसीर अहमद कहते हैं कि ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान को कोविड-19 महामारी के मरीजों को देखने और उनकी जान बचाने की जरूरत है, तब हिंसा की आशंका बढ़ रही है। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि यह गर्मियों तक न चले।
एलओसी पर झड़पों में अचानक हुई वृद्धि को सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवादियों को भारत की तरफ भेजने की पाकिस्तान की कोशिश का नतीजा बताया है। सुरक्षाकर्मियों की हत्या इस दावे को सत्यापित भी करती है। लगभग सभी उग्रवादी जो मुठभेड़ों में मारे गए या घात लगाए बैठे थे; कश्मीरी थे। इन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में प्रशिक्षण लिया था। दक्षिण कश्मीर में उनके परिवारों ने संबंधित थानों में उनके शव लेने के दावे किए। हालांकि पुलिस ने उन्हें देने से मना कर दिया। क्योंकि इससे उनके अंतिम संस्कार की एक बड़ी कड़ी बन जाती। उनके शव उत्तरी कश्मीर में कहीं दफनाए गए थे।
घाटी में जैसे सुरक्षा स्थिति बन रही है, उसमें हालिया हिंसक घटनाओं से परे देखने की भी जरूरत है। एक, इस पैमाने पर हिंसा पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद पहली बार हुई है। इसने एक बार फिर आतंकवाद को केंद्र में ला दिया है, जो आगे गर्मियों के लिए अच्छी खबर नहीं है। दूसरा, हमलों का दावा एक नए आतंकवादी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने किया है। इसके अलावा एक और उग्रवादी संगठन तहरीक-ए-मिल्लत-ए-इस्लामी (टीएमआई) ने अपने जन्म की घोषणा की है और दोनों का दावा है कि उनकी उत्पत्ति स्वदेशी है। अब लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद का कोई उल्लेख नहीं है। यह एक दूरगामी रणनीति है, जिसमें यह जाहिर करने की कोशिश हो रही है कि कश्मीर का आतंकवाद स्थानीय रूप से पैदा हुआ है। यदि ऐसा है, तो यह पिछले 30 साल में पहली बार होगा कि कश्मीर-आतंकवाद को स्वदेशी बनाने के लिए जानबूझकर एक प्रयास किया गया है। यह लश्कर और जैश जैसे पाकिस्तान स्थित उग्रवादी संगठनों के कश्मीर में कार्रवाई के कमजोर होने का नतीजा हो सकता है। पिछले साल के पुलवामा हमले, जिसका दावा जैश ने किया था और जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे; ने भारत और पाकिस्तान को लगभग युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था। एक पुलिस अधिकारी ने कहा- 'द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) लश्कर का ही एक छद्म रूप है।
घुसपैठ और प्रशिक्षण का खेल
आतंकी हिंसा में ऐसे समय में फिर से तेजी आई है, जब आतंकवाद कमजोर होने के संकेत दे रहा था। पुलिस के अनुमान के अनुसार, कश्मीर में लगभग 250 सक्रिय आतंकवादी हैं, जिनमें से लगभग 50 इस साल जनवरी के बाद मारे गए हैं। इसके अलावा धारा-370 के निरस्त होने के कुछ महीनों बाद कश्मीरी युवाओं के हथियार उठाने के मामलों में गिरावट दिखाई दी थी। इससे आतंकवादियों की संख्या में कमी आने की संभावना थी। लेकिन सुरक्षा बलों की हाल की हत्याओं ने इन गणनाओं को गलत साबित किया है। इसने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद खत्म नहीं हो रहा है। घुसपैठ एक निरंतर प्रक्रिया बनी हुई है, वह भी तब जब हाईटेक सीमा बाड़ लगाने की बातें की गई हैं। जो आतंकी सीमा पार कर रहे हैं, वे अत्यधिक प्रशिक्षित और युद्ध में निपुण हैं। यह इस तथ्य से जाहिर हो जाता है कि उन्होंने पांच पैराटू्रपर्स को भी मार दिया, जिन्होंने सितंबर, 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक में हिस्सा लिया था। यह चीजें यह दर्शाती हैं कि कश्मीरी युवा एक बार फिर पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में हथियारों के प्रशिक्षण के लिए सीमा पार कर रहे हैं। कुछ मामलों में युवाओं को वाघा सीमा से वैध वीजा पर पाकिस्तान का दौरा करने के लिए कहा जाता है। पिछले डेढ़ दशक में ऐसा नहीं था। युवा आतंकवाद से जुड़ेंगे और स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण देंगे। लेकिन इन सशस्त्र युवाओं के पास यह ट्रेनिंग प्रतीकात्मक ही जाहिर होती है, क्योंकि अल्पकालिक प्रशिक्षण अक्सर एक के बाद एक होने वाली मुठभेड़ में उन्हें जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
- प्रवीण कुमार