04-Apr-2013 07:07 AM
1234796
लाड़ली लक्ष्मी से लेकर महिलाओं के लिए तमाम योजना चलाने वाले मध्यप्रदेश में पिछले पांच वर्ष में सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में से केवल 99 प्रकरणों में सजा मिल सकी है। 49 प्रकरण ऐसे हैं जहां
अपराधियों का अता-पता नहीं है और न ही उनकी गिरफ्तारी हुई है। काजल बलात्कार और हत्या कांड के बाद जिस तेजी से अपराधी को सजा-ए-मौत सुनाई गई थी उसके बाद उम्मीद बंधी थी कि मध्यप्रदेश में बलात्कारियों तथा अपराधियों के हौसले पस्त होंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। स्विस महिला से जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर बलात्कार और लूटपाट की गई तो भिंड में जैन साध्वी से दिन-दहाड़े मारपीट के बाद उसकी नग्न परेड कराई गई। केंद्र सरकार ने हाल ही में जो नया विधेयक बलात्कार संबंधी कानून में संशोधन करते हुए प्रस्तुत किया है उसके अनुसार नग्न परेड भी उतना ही गंभीर अपराध है लेकिन मध्यप्रदेश में अपराधियों के हौंसले बुलंद है। हाल ही में बजट सत्र के दौरान विधायक आरिफ अकील के एक प्रश्न के उत्तर में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि जनवरी 2008 से लेकर फरवरी 2013 तक मध्यप्रदेश में सामूहिक बलात्कार के 1570 प्रकरण दर्ज हुए हैं, जिनमें से कुल 99 प्रकरणों में अपराधियों को सजा हुई है तथा 39 प्रकरणों में तो अपराधी ही गिरफ्तार नहीं हुए हैं। अर्थात् कुल 6.31 प्रतिशत मामलों में अभी तक सजा हो पाई है। इससे पता चलता है कि महिला अपराधों के प्रति कार्रवाई में किस कदर ढील बरती जा रही है।
प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर पहले भी सवाल खड़े हो चुके हैं। स्विस महिला के साथ ज्यादती के बाद सरकार ने कहा कि विदेशी सैलानियों की सुरक्षा के लिए अलग से बल गठित किया जाएगा। लेकिन विशेष सुरक्षा की आवश्यकता तो उन समस्त महिलाओं को है जो किसी न किसी प्रकार की प्रताडऩा झेल रही हैं। इतनी बड़ी संख्या में अपराध दर्ज होने के बावजूद इतने कम मामलों में सजा होना इस बात का प्रतीक है कि कहीं न कहीं पुलिस और प्रशासन की पकड़ ढीली है। जिसका लाभ अपराधियों को मिल रहा है। लगभग हर जिले में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं उत्तरोत्तर बढ़ी हैं, ग्वालियर में जहां वर्ष 2008 में सामूहिक बलात्कार के 18 प्रकरण दर्ज किए गए। वहीं यह संख्या बढ़कर 30 हो गई। शिवपुरी में 2008 में 11 प्रकरण दर्ज किए गए। 2012 में संख्या बढ़कर 17 हो गई। भिंड में 2008 में 4 प्रकरण थे, 2012 में बढ़कर इन प्रकरणों की संख्या बढ़कर 9 हो गई। झाबुआ में 2008 में तीन प्रकरण दर्ज किए गए थे, जिनकी संख्या 2012 में बढ़कर पांच हो गई। खरगौन में तो तीन गुनी वृद्धि हुई यहां 2008 में सामूहिक बलात्कार के कुल 2 प्रकरण दर्ज हुए थे जो 2012 में बढ़कर छह हो गए। इसी प्रकार रतलाम में 2010 में 11 सामूहिक बलात्कार के प्रकरण दर्ज किए गए। 2008 में यह संख्या 5 थी। देवास में 2008 में 12 प्रकरण दर्ज किए गए थे जो कि बढ़कर 2012 में 22 हो गए। सागर मेें 2008 में 11 प्रकरण थे और 2012 में 15 प्रकरण देखने में आए। पन्ना में 2008 में एकमात्र सामूहिक बलात्कार कांड हुआ था। 2012 आते-आते यह संख्या बढ़कर चौगुनी हो गई। छतरपुर, सिंगरौली, अनूपपुर, रायसेन, बैतूल, हरदा, भोपाल, सीहोर, बालाघाट, मंडला जैसे जिलों में सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में 2 से लेकर छह गुनी तक की वृद्धि हुई है। हालांकि गुना, मुरैना, दतिया, इंदौर, धार, खण्डवा, बुरहानपुर, बड़वानी, उज्जैन, रतलाम, देवास, शाजापुर, जबलपुर, दमोह, टीकमगढ़, रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, राजगढ़ जैसे जिलों में वर्ष 2008 के मुकाबले सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में कमी दर्ज की गई है। इस दृष्टि से सबसे खराब स्थिति ग्वालियर जिले में हैं जहां पिछले पांच वर्ष में सामूहिक बलात्कार के 115 प्रकरण दर्ज किए गए जिसमें से एक प्रकरण में गिरफ्तारी ही नहीं हुई और अभी तक केवल एक ही प्रकरण में न्यायालय से सजा मिल पाई है। सामूहिक बलात्कार के मामले में विदिशा का रिकार्ड भी बेहद खराब है, जिले में पिछले पांच वर्ष के दौरान सामूहिक दुष्कर्म के 83 प्रकरण दर्ज हुए जिनमें से केवल एक प्रकरण में अभी तक अपराधियों को सजा मिल पाई है बाकी 82 प्रकरण अभी भी अनसुलझे हैं। इससे साफ पता चलता हे कि प्रदेश में महिला अपराधों को लेकर गंभीरता से काम नहीं होता। अशोकनगर, मुरैना, भिंड, दतियां, श्योपुर, झाबुआ, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, कटनी, पन्ना, टीकमगढ़, रीवा, सीधी, अनूपपुर उमरिया,राजगढ़, भोपाल रेल, जबलपुर रेल और इंदौर रेल ऐसे जिले हैं जहां पिछले पांच वर्ष में बलात्कार प्रकरण में एक भी आरोपी को सजा नहीं सुनाई गई है। इस मामले में छिंदवाड़ा का रिकार्ड थोड़ा बेहतर है वहां सामूूहिक बलात्कार के 42 प्रकरणों में से 11 में सजा सुनाई गई है। इससे साफ पता चलता है कि ऐसे जघन्य अपराधों के प्रति न तो पुलिस की कार्यप्रणाली में तत्परता है और न ही सरकार के प्रशासनिक तंत्र में कोई संवेदनशीलता है। पिछले पांच वर्षों में मात्र छह प्रतिशत अपराधियों को सजा मिलना इस बात का प्रतीक है कि सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में जानबूझकर देरी की जाती है और इस दौरान सबूत मिटाने से लेकर पीडि़ता को धमकाने तक के हथकंडे अपनाए जाते है। प्रदेश में कहने को तो बलात्कार प्रकरणों पर फास्ट ट्रेक अदालत की बात की जा रही है लेकिन लंबित मामलों को देखते हुए यह बात अब मजाक लगने लगी है।