18-Jan-2020 07:42 AM
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मप्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रहे शह-मात के खेल में एक बार फिर दोनों पार्टियों और उनके दिग्गज नेता नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अग्निपरीक्षा होगी। इसके लिए जौरा विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए चौसर बिछनी शुरू हो गई है।
प्रदेश में जौरा विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर प्रदेश की राजनीति में गर्माहट आने लगी है। कांग्रेस विधायक बनवारी लाल के निधन के बाद जौरा सीट खाली हुई है। इस सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। उधर टिकट के दावेदार चुनावी मैदान में सक्रिय हो गए हैं। गौरतलब है कि झाबुआ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है। वह अपनी जौरा सीट हाथ से निकलने नहीं देगी। वहीं भाजपा इस सीट को जीतकर झाबुआ का बदला लेने की कोशिश करेगी।
झाबुआ उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस के पास सदन में 115 विधायकों और एक निर्दलीय विधायक के मंत्री होने से 116 की मजबूत स्थिति आ गई थी। हालांकि, कांग्रेस के लिए अभी कोई खतरा नहीं है, क्योंकि सदन में अब 229 विधायक बचे हैं। इसमें से कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा 114 विधायक हैं। इसके अलावा कांग्रेस को 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा के विधायकों का समर्थन है। वहीं, बीजेपी के पास फिलहाल सदन में 108 विधायकों का संख्या बल है। बनवारी लाल शर्मा के निधन के बाद अब सीट खाली हो गई है, जौरा में उपचुनाव होगा।
जौरा में होने वाले उपचुनाव में सिंधिया के साथ केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। इसका कारण यह है कि तोमर मुरैना संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं जबकि सिंधिया अंचल के सर्वमान्य कांग्रेस नेता हैं। टिकट वितरण से लेकर चुनावी रणनीति बनाने में इन दोनों नेताओं की प्रमुख भूमिका रहेगी। जौरा विधानसभा में उपचुनाव अगले 6 माह के अंदर होना है। ऐसे में सिंधिया के कंधो पर भार आने वाला है। वैसे विधानसभा चुनाव के समय भी सिंधिया ने अंचल का भार अपने कंधो पर लिया था और 28 विधानसभा सीटें जीतकर कांग्रेस को दी थी जिसके कारण ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन सकी थी।
भाजपा के अंदर केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर संगठन क्षमता के हिसाब से काफी आगे है, क्योंकि युवा मोर्चा से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते उन्होने अपनी संगठन क्षमता कई बार दिखाई है। यही कारण है कि इस बार जौरा उपचुनाव की जिताने की जिम्मेदारी तोमर के ऊपर काफी रहेगी, लेकिन सामने सिंधिया के होने के कारण मामला बराबरी पर अटकता है। सिंधिया युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय होने के साथ ही अंचल की जनता के बीच सर्वमान्य नेता माने जाते हैै। अब कांग्रेस के अंदर उनके ऊपर कितना विश्वास किया जाता है यह समय के हिसाब से ही देखने को मिलेगा।
जौरा विधानसभा क्षेत्र रिक्त होने के बाद से ही कांग्रेस की तरफ से कई दावेदार सक्रिय हो गए है। अब दावेदार तो कई है, लेकिन कौन मैदान में आएगा इसका फैसला सिंधिया के हाथ में रहेगा। वैसे जिसको भी मौका मिलेगा उसके लिए उपचुनाव की राह आसान हो सकती है, क्योंकि सरकार के लिए एक-एक विधायक काफी महत्वपूर्ण है जिसके कारण जहां सरकार पूरा जोर लगाएंगी वहीं सिंधिया भी अपने दावेदार को जिताने के लिए मैदान मेें जोर लगाने से नहीं चूकेंगे।
इधर कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन के बाद एक बार फिर प्रदेश की विधानसभा पर सवाल खड़े होने लगे हंै। प्रदेश की विधानसभा पिछले 16 साल में 31 उपचुनाव देख चुकी है। 32वां उपचुनाव भी आने वाले समय में जौरा विधानसभा सीट पर होगा। ये स्थिति बहुत कम समय के लिए बनी है जब विधानसभा में पूरे 230 सदस्य मौजूद रहे हों। उपचुनाव का सिलसिला 2003 से शुरू हुआ जो अब तक जारी है। हाल ही में प्रदेश दो विधानसभा उपचुनाव से गुजर चुका है जिसमें छिंदवाड़ा और झाबुआ शामिल हैं। इन उपचुनाव के पीछे जो वजह हैं उनमें विधायकों का निधन, विधानसभा सीट छोड़कर लोकसभा चले जाना या फिर पार्टी बदलने के बाद अपनी सीट से इस्तीफा देना और फिर दूसरी पार्टी की टिकट पर दोबारा चुनाव लडऩा। 2013 में चुनाव के वक्त तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी का निधन हो गया था।
नई विधानसभा के वास्तु पर गाहे-बगाहे सवाल खड़े होते रहे हैं। वास्तुशास्त्री इसे भवन निर्माण का दोष बताते हैं लेकिन कई लोग इन बातों को अंधविश्वास मानते हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने इस भवन में कुछ बदलाव जरूर करवाए थे। इसके अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का कार्यक्रम विधानसभा भवन में कराया था। इतना ही नहीं उनको सदन में भी ले जाया गया था। इन सभी बातों को वास्तु से जोड़कर देखा गया था। अभी तक जिन विधानसभा सीट पर उपुचनाव हुए हैं उनमें नोहटा, बालाघाट, बुदनी, बड़ा मलहरा, पंधाना, उदयपुरा, शिवपुरी, लांजी, सांवेर, गोहद, तेंदूखेड़ा, सोनकच्छ, कुक्षी, जबेरा, महेश्वर, विदिशा, बहोरीबंद, विजयराधौगढ़, आगर, गरोठ, देवास, मैहर, घोड़ाडोंगरी, नेपानगर, बांधवगढ़, अटेर, चित्रकूट, मुंगावली, कोलारस, छिंदवाड़ा और झाबुआ विधानसभा सीट शामिल हैं।
अंचल में कांग्रेस का रिकॉर्ड बेहतर
ग्वालियर अंचल में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत का इतिहास रहा है। शिवपुरी विधानसभा का उप चुनाव हुआ था उस समय भाजपा की सरकार थी ओर सत्ता पक्ष के अधिकांश मंत्रियों ने वहां डेरा डाला था, लेकिन कांग्रेस की तरफ से अकेले सिंधिया ने लड़ाई लड़ी ओर कांग्रेस प्रत्याशी को फतह दिलवाई थी। इसी तरह कोलारस के साथ ही अटेर का भी उपचुनाव कांग्रेस ने सिंधिया की दम पर जीता था। जौरा विधानसभा में बसपा का भी काफी बोलबाला रहा है और वहां से उसके दो बार विधायक भी रहे है इसलिए कांग्रेस को बसपा के साथ समझौता करने में लाभ हो सकता है, लेकिन उपचुनाव के समय क्या गणित बैठता है उसके बाद ही यह तय हो सकेगा कि कांग्रेस के लिए राह कितनी आसान है।
- सुनील सिंह