क्या लागू होगी पुलिस कमिश्नर प्रणाली...?
18-Jan-2020 07:42 AM 1234856
मप्र की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इस समय यह सवाल चर्चा में बना हुआ है कि क्या प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होगी? इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि 13 जनवरी को उत्तर प्रदेश में पहली बार लखनऊ व गौतमबुद्धनगर (नोएडा/ग्रेटर नोएडा) में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की घोषणा कर दी गई है। मप्र में पिछले साल 15 अगस्त को सीएम कमलनाथ कमिश्नर सिस्टम लागू करने वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने ऐलान नहीं किया। अब संभावना जताई जा रही है कि 26 जनवरी को सीएम ऐलान कर सकते हैं। इस बारे में आईपीएस एसोसिएशन और डीजीपी की मुख्यमंत्री से चर्चा हो चुकी है। पुलिस अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो सकती है। पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने के लिए गृहमंत्री बाला बच्चन का कहना है जो मध्यप्रदेश के हित में होगा, जनता जो चाहेगी और कानून की दृष्टि से जो बेहतर होगा, वही निर्णय सीएम कमलनाथ लेंगे। भाजपा सरकार में पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए बड़ी लंबी-चौड़ी कवायद की गई थी। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। अब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। सीएम कमलनाथ पहले ही कमिश्नर सिस्टम लागू करने के संकेत दे चुके हैं। लेकिन आईएएस लॉबी की वजह से इस पर हर बार संकट आ जाता है। ऐन वक्त पर फैसले बदल जाते हैं। प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि राजधानी सहित प्रदेशभर में बढ़ रही आपराधिक वारदातों पर अंकुश लगाने के लिए यह जरूरी है। लेकिन प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच इससे सहमत नहीं हैं। वह कहती हैं कि सिस्टम बदलने से अपराधों में कमी नहीं आएगी। पुलिस के वर्तमान ढांचे में एडीजी स्तर के अफसरों की भरमार है, जबकि मैदानी अमले की कमी है। थाने से लेकर जिला और संभाग मुख्यालय में पदस्थ अफसर व कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से निभाएं, इस पर जोर होना चाहिए। वह कहती हैं कि अपराधों पर अंकुश पुलिस की सतर्कता और सक्रियता से लगेगा, न कि पावर बढऩे से। पुलिस पर प्रयोग बंद होना चाहिए। एसएसपी, फिर डीआईजी और अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम। इसका अपराध से कोई संबंध नहीं है। यदि ऐसा होता तो बेंगलुरू और दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अपराधों में कमी आती। दोनों शहरों में महिला अपराध बढ़े हैं। उधर, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि हमारे पास पर्याप्त अधिकार नहीं हैं, इसलिए अपराधों पर अंकुश लगाने में पुलिस अक्षम साबित हो रही है। पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण गुर्टू कहते हैं कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली एक ऐसा सिस्टम है जो पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह बनाएगा। दूसरे राज्य इसे लागू कर चुके हैं, वहां अच्छे परिणाम मिले हैं। फिर मप्र में इससे क्यों परहेज हो रहा है। जब तक अच्छा सिस्टम नहीं बनेगा, अच्छे से अच्छा अधिकारी परिणाम नहीं दे पाएगा। प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की वकालत करने वाले आईपीएस अधिकारियों का कहना है कि इस प्रणाली की जरूरत इसलिए है कि जिलाबदर के प्रस्ताव महीनों तक कलेक्टर कोर्ट में पेंडिंग रहते हैं। कई आदतन अपराधियों को भी एसडीएम कोर्ट से जमानत मिल जाती है। पुलिस जिस अपराधी का प्रोफाइल जानती है, उसे सीधे जेल भेजेगी। कानून व्यवस्था से जुड़े विषयों पर पुलिस खुद निर्णय ले सकेगी। साथ ही इस प्रणाली के लागू होने से पुलिस के अधिकार भी बढ़ेंगे। प्रतिबंधात्मक धाराओं में गिरफ्तार आरोपियों की जमानत पुलिस की कोर्ट से होगी। जिलाबदर भी पुलिस अफसर ही तय करेंगे। सीमित क्षेत्र में धारा 144 लागू करने के अधिकार होंगे। लाठीचार्ज की अनुमति कलेक्टर से नहीं लेनी होगी। धरना-प्रदर्शन, रैलियों की अनुमति पुलिस देगी। वर्तमान समय में देश के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। दिल्ली, बेंगलुरू और मुंबई के अपराधों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि यह प्रणाली भी अपराध रोकने में उतनी कारगर नहीं है। अगर मप्र के संदर्भ में देखें तो यह महिला अपराधों में पूरे देश में पहले स्थान पर है। प्रदेश को अपराध मुक्त बनाने के लिए सरकार ने कई प्रयोग किए लेकिन कोई कारगर नहीं हो सका। वर्ष 2009 में एसएसपी सिस्टम इंदौर और भोपाल में लागू किया गया लेकिन इससे भी कोई बदलाव नहीं दिखा। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2012 में 28 फरवरी को विधानसभा में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की घोषणा की थी। लेकिन इस पर बात नहीं बनी। सरकार ने 18 दिसंबर 2012 को दो महानगरों में एसएसपी सिस्टम समाप्त कर डीआईजी सिस्टम लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी थी। लेकिन इसका भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। यही नहीं राजधानी पुलिस ने लॉ एंड आर्डर और इन्वेस्टिगेशन विंग अलग-अलग बनाने का प्रयोग भी किया। यह प्रयोग सबसे पहले हबीबगंज थाने में किया गया। हालांकि वक्त के साथ-साथ यह भी फाइलों में बंद होकर रह गया। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या वर्तमान सरकार अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली जैसा प्रयोग करेगी? ऐसा होगा पुलिस कमिश्नर सिस्टम एमपी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम के पिरामिड में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एडीजी स्तर के अधिकारी को पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। उसके नीचे दो ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर, जो आईजी स्तर के होंगे। पिरामिड में एडिशनल पुलिस कमिश्नर होंगे, जिसकी जिम्मेदारी डीआईजी स्तर अफसरों को मिलेगी। इसी तरह डिप्टी पुलिस कमिश्नर एसपी स्तर के होंगे। जूनियर आईपीएस या वरिष्ठ एसपीएस अधिकारियों को असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकेगा। सबसे पहले पुलिस कमिश्नर सिस्टम इंदौर और भोपाल में लागू किया जा सकता है। यानि मध्यप्रदेश की कुल आबादी में से केवल 5.6 फीसदी पर ही कमिश्नर सिस्टम लागू होगा। प्रदेश की सात करोड़ 26 लाख आबादी में से भोपाल की 18.86 लाख और इंदौर की 21.93 लाख आबादी है। भोपाल की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 2.59 प्रतिशत है और इंदौर की आबादी 3.01 प्रतिशत है। - अरविंद नारद
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