18-Feb-2015 08:52 AM
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बुंदेलखंड चिकित्सा महाविद्यालय मेें बिल्डिंग बनने से पहले ही उपकरण खरीद लिए जाते हैं। उपकरण खरीदने की इतनी जल्दबाजी रहती है कि भुगतान भी समय से पूर्व कर दिया जाता है और उपकरण भवन के अभाव मेें धूल खाते रहते हैं। विश्वास ना हो तो भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट देख लीजिए, जिसमें स्पष्ट बताया गया है कि बुंदेलखंड चिकित्सा महाविद्यालय सागर में भवन बनने से पूर्व ही 3 करोड़ 18 लाख रुपए की मशीनरी एवं उपकरण खरीद लिए गए, जो लगभग 2 वर्षों तक बिना संस्थापित हुए अप्रयुक्त पड़े रहे। कैग की रिपोर्ट में उजागर इस घोटाले पर मध्यप्रदेश विधानसभा की लोकलेखा समिति ने स्वत: संज्ञान लिया तब तक विभाग चिकित्सा शिक्षा विभाग 3 अधीक्षकों के खिलाफ विभागीय जांच चालू कर चुका था। डॉ. नीरज बेदी, डॉ. स्मिता भटनागर और डॉ. सुधा चौरसिया विभाग के प्रमुख सचिव ने अपना पीछा छुड़ाते हुए समिति के सामने अपने साक्ष्य में कहा है कि आगामी एक माह में संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई कर ली जाएगी। लेखा परीक्षा समिति ने पाया है कि इस खरीद में आंतरिक नियंत्रण प्रणाली सहित विद्यमान प्रणाली में स्पष्ट खामियां हैं, प्रणाली और प्रक्रिया का अनुसरण करने में विफलता है। विभाग ने भी मंत्रालय लेखा परीक्षा के निष्कर्षों से आंतरिक सहमति जताई है।
ये उपकरण काफी पहले खरीद लिए गए और नवंबर 2013 तक भी 1.43 करोड़ रुपए के उपकरण स्थापित नहीं किए जा सके। दरअसल खरीद का सिलसिला तो वर्ष 2011 से ही शुरू हो गया, जबकि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज को कुछ समय पहले ही हरी झंडी दिखाई थी। उस दौरान इमारत का निर्माण हो रहा था और इधर उपकरण खरीदे जा रहे थे। मेडिकल से संबंधित कुछ उपकरण ऐसे हैं जिन्हें इमारत के निर्माण के बाद ही लगाना सही रहता है, लेकिन खरीदने की जल्दबाजी में जबलपुर, सोनीपत (हरियाणा), पुणे, भोपाल, नई दिल्ली, चंडीगढ़ इत्यादि शहरों से बड़ी संख्या में खरीदी की गई। लगभग 39 उपकरण जिनकी कीमत 4 करोड़ 79 लाख 12 हजार 856 रुपए थी, वे तो वर्ष 2011 से 2012 के बीच ही खरीद लिए गए। जिनमें से 2 करोड़ 7 लाख 31 हजार 889 रुपए की कीमत के बराबर उपकरण वर्ष 2012 के अंत तक धूल खा रहे थे। लेकिन इसका भी ध्यान नहीं रखा गया और अगले वर्ष 2012-13 में 1 करोड़ 94 लाख 64 हजार 906 रुपए के उपकरण फिर से खरीद लिए गए। इस तरह फरवरी 2013 तक 6 करोड़ 73 लाख 77 हजार 762 रुपए के उपकरण खरीदे गए, जिनमें से 3 करोड़ 18 लाख 34 हजार 425 रुपए के उपकरण फरवरी 2013 तक स्थापित नहीं हुए थे। बाद में आनन-फानन में उपकरणों को स्थापित किया गया, लेकिन उसके बाद भी नवंबर 2013 तक 1 करोड़ 43 लाख रुपए के उपकरण धूल खा रहे थे। इन उपकरणों में से कुछ तो ऐसे हैं जो बहुत संवेदनशील माने जाते हैं। लंबे समय से उचित रखरखाव ना होने के कारण ये खराब हो सकते हैं, जैसे हेम्योडायलिसिस मशीन या वेंटिलेटर। मेडिकल उपकरण बहुत नाजुक होते हैं जिन्हें विशेषज्ञों द्वारा स्थापित किया जाता है। आमतौर पर मेडिकल कॉलेजों में यह उपकरण बिल्डिंग का काम पूर्ण होने के बाद ही खरीदे और लगाए जाते हैं। उपकरण के इंस्टॉलेशन के अनुरूप भवन में कई तब्दीलियां भी होती हैं। लेकिन लगता है बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में खरीद-फरोख्त के समय एमसीआई के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि खरीदी के लिए जिम्मेदार अधिकारी चिकित्सा महाविद्यालय के भवन निर्माण की स्थिति से अवगत थे। इसलिए उन्हें मशीनरी एवं उपकरणों की खरीद इस तरह से करनी चाहिए थी कि उपकरण 12 से 24 माह तक अनुपयुक्त ना पड़े रहें। यही नहीं इस खरीद में क्रय आदेशों की शर्तों एवं उपबंधों का भी उल्लंघन किया गया। वर्ष 2011-12 के लिए क्रय आदेशों (4.79 करोड़ रुपए) की शर्तों एवं उपबन्धों के अनुसार 90 प्रतिशत भुगतान मशीनरी एवं उपकरण की प्राप्ति पर तथा 10 प्रतिशत भुगतान उक्त मशीनों के सफलतापूर्वक संस्थापन एवं उनके प्रचालन संबंधी दिए जाने के पश्चात किया जाना था। तथापि उपकरणों की संस्थापना सुनिश्चित किए बिना जुलाई 2011 से जुलाई 2012 के मध्य पूर्ण भुगतान कर दिया गया। अभिलेखों के सत्यापन (जून 2013) में पाया गया कि 191 उपकरण संस्थापित किए गए थे तथा जून 2013 की स्थिति में 2.07 करोड़ रुपए कीमत के 42 उपकरण असंस्थापित पड़े थे। इसी प्रकार वर्ष 2012-13 में 1.95 करोड़ में खरीदे गए 56 मशीनरी एवं उपकरणों में से 1.11 करोड़ कीमत के 30 मशीनरी एवं उपकरण भवन निर्माण न होने के कारण जून 2013 की स्थिति में असंस्थापित पड़े थे जबकि संचालक चिकित्सा शिक्षा द्वारा अधिष्ठाता चिकित्सा महाविद्यालय भवन के निर्माण को युद्ध स्तर पर करने हेतु निर्देशित किया गया था (फरवरी 2011) जिससे निर्माण मार्च 2011 तक पूर्ण हो सके। संचालक चिकित्सा शिक्षा को प्रस्तुत प्रस्तावों में क्रय की जाने वाली मशीनरी एवं उपकरणों की संस्थापना हेतु आवश्यक जगह/परिसर की अनुपलब्धता का उल्लेख अधिष्ठाता चिकित्सा महाविद्यालय द्वारा नहीं किया गया। संचालक चिकित्सा शिक्षा द्वारा भी अधिष्ठाता का आंकलन नहीं किया गया। इस ओर इंगित किए जाने पर अधिष्ठाता ने बताया (मई एवं जून 2013) की मशीनरी चिकित्सा महाविद्यालय भवन के पूर्ण होने के पश्चात संस्थापित की जाएगी।
कैग ने यह प्रकरण शासन को भेजा था, जिस पर शासन ने बताया था कि हाउसिंग बोर्ड द्वारा समय सीमा में चिकित्सा महाविद्यालय भवन पूर्ण किए जाने के कारण यह स्थिति निर्मित हुई। सवाल यह है कि जो जिम्मेदार लोग थे, क्या उन्हें निर्माण की स्थिति नहीं दिख रही थी? या फिर वे जानबूझकर आंख मूंदे हुए थे?
द्यभोपाल से अजयधीर