19-Jan-2015 08:25 AM
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बदलाव बहुत तेजी से हुआ है, दुनिया भारत को अत्यधिक आशाभरी नजरों से देख रही है। महात्मा गांधी को जितना अधिक दुनिया जानेगी उतना ही श्रेष्ठ होगा, उनकी शिक्षाएं सभी के लिए समान रूप
से पथ-प्रदर्शक हैं। इसीलिए सारी दुनिया में भारतीय समुदाय को पैसों के लिए नहीं बल्कि उनके मूल्यों और परंपराओं के लिए सम्मान मिलता है। विदेश में जब भी कोई अपने पड़ोसी के रूप में किसी भारतीय को पाता है तो उसे हार्दिक प्रसन्नता होती है, क्योंकि उसे लगता है कि उसके बच्चे भी पारिवारिक मूल्यों को आत्मसात करेंगे। प्रधानमंत्री ने अपनी विदेश यात्राओं का भी जिक्र किया और कहा कि वे पद संभालने के बाद विश्व के 50 नेताओं से मिले और सभी ने भारत के साथ काम करने की आकांक्षा प्रकट की। ऐसे अवसर किसी राष्ट्र के जीवन में बार-बार नहीं आते हैं। दुनिया भारत को गले लगाने के लिए तैयार है, वे हमेंं बहुत कुछ देना चाहते हैं किंतु इसके लिए हमें अपने आप में आत्मविश्वास पैदा करना होगा। जब संयुक्त राष्ट्र संघ में योग दिवस मनाने का सुझाव दिया गया तो संयुक्त राष्ट्र संघ सहित दुनिया के 177 देशों ने इसे प्रायोजित करने पर सहमति जताई।
नरेंद्र मोदी प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान हुई अव्यवस्थाओं पर भी थोड़े चिंतित दिखाई दिए, लेकिन उन्होंने अपनी वाक क्षमता से इस चिंता को अलग करने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि किस तरह कई देशों के भारतवंशियों और नागरिकों को भारत आने पर तत्काल वीजा दिया जा रहा है। प्रवासी भारतीय दिवस में 58 देशों के 4 हजार प्रवासी भारतीय अपनी जड़ों को तलाशने भारत आए हुए थे। पहली बार गुजरात में यह आयोजन हुआ और कुछ अव्यवस्थाओं को छोड़ दिया जाए तो इसे लगभग सफल ही कहा जाएगा। प्रधानमंत्री ने भारत की आतिथ्य परंपरा को दोहराते हुए कहा कि आज की दुनिया में हर बात को डॉलर और पाउंड में नहीं तोला जा सकता। भारतवंशियों से भारत का रिश्ता इससे कही ऊपर है। गुजरात में महात्मा गांधी के आगमन की 100वीं वर्षगांठ को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाकर मोदी ने एक नई शुरुआत की है। उनके इस कदम को बहुत सराहना मिली। लेकिन कुछ आलोचना भी हुई। भारी-भरकम खर्च पर भी सवाल उठाए गए। गुजरात के हालातों पर भी कुछ राजनीतिक दलों ने टिप्पणी की। जहां तक भारत को जानने का प्रश्न है, भारत के विषय में जानकारी अभी दुनिया में थोड़ी ही है। भारत को एक पिछड़ा हुआ देश समझा जाता है और जिस तरह धर्मांधता के कारण पिछले दिनों तोड़-फोड़ की घटनाएं हुई हैं, उसके चलते भारत की छवि एक उग्र दक्षिणपंथी देश की बनती जा रही है। इस छवि से लडऩा भी एक चुनौती ही है। मोदी की दुविधा यह है कि उन्हें विकास भी करना है और साथ ही हिंदुत्ववादियों को संतुष्ट भी रखना है, जिन्होंने उन्हें गद्दी पर बिठाया है। लेकिन जिस तरह हिंदुत्व के पैरोकारों ने उग्र तेवर अख्तियार किए हैं, उससे मोदी के किए कराए पर पानी फिर सकता है। मोदी को इस विषय में भी सोचना होगा। क्योंकि प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भारत के आंतरिक हालातों पर भी चिंता प्रकट की गई है।
इंद्र कुमार बिन्नानी