डिजीटल इंडिया 1 लाख करोड़ में
20-Nov-2014 02:14 PM 1234814

भारत सूचना क्रांति के  नए दौर में छलांग लगाने वाला है। केंद्र सरकार सारे देश का डिजीटलीकरण करने के लिए जिस डिजीटल इंडिया क्रांति का सूत्रपात करने जा रही है, उस पर 1 लाख करोड़ खर्च होंगे। इससे इंटरनेट और संचार प्रोद्योगिकी में क्रांति देखने को मिलेगी तथा गांव-गांव कनेक्टिविटी की सुविधाएं प्राप्त हो सकेंगी। मोदी सरकार सन 2019 तक इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए काम कर रही है।

डिजिटल इंडिया में  जो निवेश होगा वह भारत की तस्वीर को बदल कर रख देगा, लेकिन इसके लिए भारत के निवासियों को भी तकनीकि दृष्टि से सक्षम करना होगा। मौजूदा समय में यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या ऐसा किया जाना संभव है? भारत में तकनीक को लेकर युवा वर्ग की दीवानगी से इंकार नहीं किया जा सकता। शहर से लेकर गांव तक नई उम्र की पीढ़ी ने जिस तरह मोबाइल को अपनाया है, उसे देखते हुए सूचना और प्रोद्योगिकी क्रांति के अपने फायदे सामने आ सकते हैं। इसीलिए केंद्र सरकार तीन बड़े लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रही है। पहला- देश में व्यापक स्तर पर आधारभूत डिजिटल सेवाओं का विकास, जिनका प्रयोग नागरिकों द्वारा बेरोकटोक किया जा सके। दूसरा- जनता को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सरकारी सेवाएं तथा प्रशासनिक सुविधाएं हर समय उपलब्ध रहें, जिसे तकनीकी भाषा में ऑन डिमांडÓ कहा जाता है, अर्थात जब चाहें, सेवा पाएं। तीसरा लक्ष्य है- भारतीय नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम और सबल बनाना। इसके लिए जरूरी है कि तकनीकी उपकरणों, सुविधाओं, ज्ञान और सूचनाओं को समाज के सभी स्तरों तक पहुंचाया जाए।
डिजिटल इंडिया की अवधारणा तकनीकी विश्व के ताजा रुझानों के अनुरूप है, जहां दुनिया भर की आबादी को इंटरनेट से जोडऩे की प्रक्रिया चल रही है। न सिर्फ सरकारों के स्तर पर बल्कि निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा भी। दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जकरबर्ग ने पिछले दिनों अपने भारत दौरे के समय कहा था कि भारत के 23 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं जबकि एक अरब आज भी इससे वंचित हैं। यदि भारत अपने गांवों को कनेक्ट करने में सफल रहता है, तो दुनिया उसकी ओर ध्यान देने पर मजबूर होगी। देश के विशाल समाज और उसमें निहित बाजार तक पहुंच का एक आसान तथा शक्तिशाली जरिया उपलब्ध हो जाएगा। दोतरफा संपर्क, आग्रह और डिलीवरी के माध्यम के रूप में इतनी बड़ी आबादी तक ले जाया जा सके तो ई-प्रशासन, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और ई-बैंकिंग जैसे क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद को यकीन है कि देश में डिजिटल क्रांति और मोबाइल क्रांति के घटित होने की कगार पर है। यह कनेक्टिविटी प्रशासन और जनता के बीच मौजूद अवरोधों को ध्वस्त करने में भी योगदान देंगी और हमारी प्रशासनिक मशीनरी को ज्यादा पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाएंगी।

25 लाख गांव जुडेंगे
केंद्र सरकार ने सन 2017 तक 2.5 लाख गांवों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। लगभग इतने ही विद्यालयों को सन 2019 तक वाइ-फाइ सुविधा से लैस कर दिया जाएगा। नैशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क, जिस पर करीब 35 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाने वाली है, ग्रामीण जनता को इंटरनेट सुपरहाइवे पर ले आएगा। डिजिटल सेवाओं के सार्थक प्रयोग के लिए डिजिटल शिक्षा और जागरूकता भी बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार का दिशाÓ नामक कार्यक्रम इसमें हाथ बंटाएगा और बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को डिजिटल साक्षरता की ओर भी ले जाएगा। भारत में कंप्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग आज भी बहुत सीमित है किंतु मोबाइल कनेक्शनों के प्रसार की दृष्टि से हम चीन के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर हैं। अगस्त 2014 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 80 करोड़ से भी अधिक मोबाइल कनेक्शन मौजूद हैं। जहाँ कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रयोग के लिए बिजली की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है, वहीं मोबाइल के साथ ऐसा नहीं है इसलिए भारतीय परिस्थितियों में ई-गवरनेंस की तुलना में एम-गवरनेंस अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
डिजिटल इंडिया के तहत विकास के नौ स्तंभ चिन्हित किए गए हैं, जिनमें ब्रॉडबैंड हाइवेज, सर्वत्र उपलब्ध मोबाइल कनेक्टिविटी, इंटरनेट के सार्वजनिक प्रयोग की सहज सुविधा, ई-प्रशासन, ई-क्रांति- जिसका अर्थ सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी से है-, सबके लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, रोजगार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी तथा अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम शामिल हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि वे ऐसी सेवाओं और सुविधाओं का विकास करने में जुटें जिन्हें आईसीटी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जा सके। इनमें स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, न्यायिक सेवाएं, राजस्व सेवाएं, मोबाइल बैंकिंग आदि शामिल हो सकती हैं। ज़रूरत राज्यों की परियोजनाओं को भी डिजिटल इंडिया के दायरे में लाने की है ताकि अनावश्यक दोहराव, भ्रम और अतिरिक्त खर्चों से बचा जा सके। सरकार इस संदर्भ में राज्यों की सहमति हासिल करने का प्रयास कर रही है।

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