113 मिनट में 1 हुआ जर्मनी
15-Jul-2014 10:32 AM 1234844

जर्मनी के इतिहास ने एक बार फिर करवट ली। 9 नवंबर 1989 को आधी रात के समय बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई थी और उसके अगले वर्ष ही जर्मनी ने 1990 में खिताब जीता था लेकिन तब टीम का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी जर्मनी से था इसीलिए सही मायने में 24 वर्ष बाद जब रियो डी जेनिरियो में जर्मनी के मारियो गोत्जे ने खेल के 113वें मिनट में एकमात्र गोल दागकर जर्मनी को फुटबाल का विश्व चैंपियन बना दिया तो यह एकमात्र गोल जर्मनी के एकीकरण का प्रतीक भी बन गया। खेल के 90 मिनट तक  कोई भी गोल नहीं पड़ा तो लोगों ने कहा कि बर्लिन की दीवार अभी टूटी नहीं है। सचमुच 9 नवंबर 1989 को जो दीवार टूटनी शुरू हुई थी वह अगले कई माह में ही ध्वस्त हो पाई थी इसीलिए अर्जेंटीना की गोलपंक्ति बर्लिन की दीवार की तरह मजबूत लग रही थी लेकिन एक बार जब इरादे पक्के हो गए तो उसी मारियो गोत्जे ने गोल दाग दिया जिन्हें विश्वकप में सर्वाधिक 16 गोल करने वाले क्लोज की जगह 87वें मिनट में मैदान में भेजा गया था। मारियो के कमाल पर देश झूम उठा। स्टेडियम में उन्माद छा गया। जर्मनी के प्रशंसकों ने आसमान सिर पर उठा लिया। उधर जर्मनी में आतिशबाजियों से आकाश आच्छादित हो गया। अगले दिन छुट्टी की घोषणा कर दी गई और लोग खुशियां मनाने घर से निकल पड़े। झूमता-नाचता बर्लिन और नशे में मदहोश बोन सारी रात नहीं सोया। दूसरे शहरों का भी यही हाल था जहां सारी रात बच्चे, बूढ़े, नौजवानों ने जश्र मनाया।
देखा जाए तो इस विश्वकप के फाइनल में पहुंचने वाली अर्जेंटीना और जर्मनी दोनों ही बेहतरीन खेल का मुजाहिरा कर रहे थे। जर्मनी ने लीग मैचों में शानदार फुटबाल खेली। उधर अर्जेंटीना ने भी कई दिग्गज टीमों को धराशाही किया था इसलिए दोनों टीमें एक-दूसरे पर भारी थीं। लेकिन जिस तरह सेमीफाइनल में जर्मनी ने ब्राजील को 7-1 से चकनाचूर किया था उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा था कि जर्मनी इसी ताकत के साथ फाइनल भी जीत ही लेगा। उधर दूसरे सेमीफाइनल मेें अर्जेंटीना और नीदरलैंड्स की टीमें अतिरिक्त समय में भी कोई गोल नहीं कर पायीं इसी कारण पेनल्टी शूटआउट का सहारा लिया गया जिसमें अर्जेंटीना को जीत मिली। एक तरह से यह मैच बराबरी का ही था लेकिन फाइनल मेें पूरा जोर लगाने के बावजूद अर्जेंटीना का तीसरा खिताब जीतने का सपना चकनाचूर हो गया। संयोग से पिछला खिताब भी जर्मनी ने अर्जेंटीना को हराकर जीता था। इस प्रकार 1986 से खिताब का सपना देख रही अर्जेंटीना टीम को अभी और इंतजार करना पड़ेगा।
अर्जेंटीना के स्टार खिलाड़ी लियोनल मैसी दो बार मौका मिलने के  बाद भी गोल नहीं दाग सके उनके दोनों प्रहार दिशाहीन रहे। जर्मनी की टीम शुरू से ही बेहतरीन फार्म में थी टीम में कोई सितारा खिलाड़ी नहीं था इसलिए किसी एक पर गोल करने का अतिरिक्त  दबाव नहीं था। पहले मैच में जब जर्मनी ने पुर्तगाल को 4-0 से रौंदा था उसी वक्त तय हो चला था कि जर्मनी इस बार कोई कमाल अवश्य दिखाएगा। अपने शुरूआती 6 मैचों में से 3 मैचों में जर्मनी ने पहले 15 मिनट में ही गोल दागे थे और जर्मन खिलाड़ी सिर्फ खेल पर केन्द्रित थे उनके कोच जोकिम लो ने टीम को मीडिया तथा प्रसंशकों से दूर रखा। अभ्यास के समय भी मीडिया से दूरी बनाई रखी, रणनीति जाहिर नहीं होने दी और सेमीफाइनल तक जीत का जश्र भी नहीं मनाया।
वैसे देखा जाए तो जर्मनी फुटबाल की महाशक्ति बन चुका है। वह वर्ष 2002 में उपविजेता था, 2006 और 2010 में तीसरे स्थान पर रहा। 1982 से हर विश्वकप में कवार्टर फाइनल तक अवश्य पहुंचा। टीम में न तो अनुभव की कमी थी और न ही जोशीले खिलाडिय़ों की। 36 साल के क्लोज ने सर्वाधिक गोल दागे और अपने अनुभव का परिचय दिया। 24 साल के मुलर ने टीम की अगुआई की।
लीग मैच में अमेरिका, घाना को छोड़कर कोई और जर्मनी को परेशान नहीं कर पाया। अमेरिका से एक गोल से जीत मिली तो घाना के साथ 2-2 गोल से बराबरी रही। प्री क्वार्टर फाइनल में अल्जीरिया को 2-1 से पराजित किया और क्वार्टर फाइनल में जर्मनी ने जब फ्रांस को एकमात्र गोल से हराकर बाहर किया तो यह कहा जाने लगा कि भले ही ब्राजील के स्टार खिलाड़ी मैदान  से पीठ की चोट के चलते हट गए हैं लेकिन जर्मनी नेमार के रहते भी जीत सकती थी।
ब्राजील की बादशाहत खत्म
फुटबाल जगत पर 100 वर्ष से राज करने वाले ब्राजील की बादशाहत छिन चुकी है। ब्राजील के बर्खास्त कोच लुइस फिलिप स्कोलारी भी स्वीकार कर चुके हैं कि ब्राजील जीतने की स्थिति में नहीं था। नेमार का घायल होना एक समस्या अवश्य थी लेकिन नेमार रहते तब भी ब्राजील विश्वकप नहीं जीत सकता था क्योंकि जर्मन टीम ने पहले हाफ में ब्राजील का वो हश्र किया मानो वह किसी दूसरे नम्बर की क्लब टीम से खेल रही हो। ब्राजील के पूर्व डिफेंडर जुनिन्हो का कहना है कि ब्राजील टीम किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर थी ऐसा नहीं होना चाहिए। 5 बार विश्वचैंपियन रहे ब्राजील की यह सर्वाधिक शर्मनाक हार थी। जो कि किसी राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं थी।
लीग मुकाबले रहे रोमांचक
पहले मैच में ब्राजील ने क्रोएशिया को 3-1 से पराजित किया तो यही कहा जा रहा था कि ब्राजील को घरेलू मैदान का लाभ मिलेगा। लाभ अवश्य मिला पर सेमीफाइनल तक ही मिल पाया। यदि घरेलू मैदान नहीं होता तो पहले ही मैच से विदाई हो गई होती। मैक्सिको भी अच्छा खेल रहा था और उसने कैमरून को 1-0 से पराजित किया था। जब नीदरलैंड्स ने लीग मैच में स्पेन को 5-1 से धोया तो नीदरलैंड्स की टीम के भाव सट्टा बाजार में और भी बढ़ गए। चिली ने 3-1 से आस्ट्रेलिया को पराजित किया, कोलंबिया ने यूनान को 3-0 से धोया, कोस्टारिका ने उरूग्वे को 3-1 से पराजित किया, इटली ने इंग्लैड को 2-1 से हराया तो टूर्नामेंट में कुछ जान आई उधर फ्रांस ने भी होंडुरास को 3-0 से धो डाला तथा अर्जेंटीना बोस्निया पर 2-1 से विजयी रही। उधर आईवरी ने जापान को 2-1 से हराया तथा स्वीट्जरलैंड ने इक्वाडोर को 2-1 से पराजित किया।
जर्मनी की पुर्तगाल पर 4-0 की जीत और ईरान की नाइजीरिया पर बराबरी, घाना की अमेरिका पर 2-1 की जीत तथा बेल्जियम की अल्जीरिया पर 2-1 की जीत से ज्यादा चौकाने वाला समाचार था ब्राजील और मैक्सिको की बराबरी। उधर कोरिया ने रूस को 1-1 पर रोककर एशिया महाद्वीप के लिए अच्छी खबर सुनाई लेकिन जब चिली ने स्पेन को 2-0 और नीदरलैंड्स ने आस्ट्रेलिया को 3-2 से पराजित करके बाहर किया तो सनसनी फैल गई। क्रोएशिया ने केमरून को 4-0 से हराया तो लगा कि विश्वकप में कुछ उलटफेर करने वाली टीमें भी हैं और ऐसा हुआ भी जब उरूग्वे ने इंग्लंैड को 2-1 से पराजित कर बाहर कर दिया।
प्री क्वार्टर फाइनल में ब्राजील ने चिली को 3-2 से मात दी। यह जीत ब्राजील के लिए चिंतनीय थी नीदरलैंड भी मैक्सिको से बमुशकिल 2-1 से जीत पाई, जब कोस्टारिका ने यूनान को 5-3 से हराया तो कोस्टारिका को भी सेमीफाइनल में ठहरने लायक समझा गया। फ्रांस ने नाइजीरिया को 2-0 से और जर्मनी ने अल्जीरिया को 2-1 से पराजित कर अफ्रीका महाद्वीप की चुनौती एक तरह से समाप्त कर डाली। इस प्रकार यूरोप और दक्षिण अमेरिका के बीच फाइनल मुकाबले तय हो चुके थे। जर्मनी, फ्रांस, ब्राजील, कोलंबिया, अर्जेंटीना, बेल्जियम, नीदरलैंड तथा कोस्टारिका ने क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। जर्मनी ने फ्रांस को 1-0 से हराया, ब्राजील ने कोलंबिया पर 2-1 से जीत दर्ज की, नीदरलैंड्स ने कोस्टारिका को 4-3 से रौंदा तो सेमीफाइनल मुकाबले तय हो गए। ब्राजील की 6 गोल से पराजय और फिर तीसरे स्थान के लिए नीदरलैंड्स के साथ 3-0 की हार दर्दनाक थी, अर्जेंटीना और जर्मनी ने बेहतरीन खेला लेकिन जर्मनी की सारी टीम ही सितारा थी उन्हें जीतना था इसीलिए उन्होंने हर आंकड़ा अपने पक्ष में कर लिया। 32 टीमों के 736 खिलाडिय़ों के महाकुम्भ का रंगारंग समापन शकीरा के ठुमकों ने किया।
दर्शक बने रहे दो विशाल देश
भारत और चीन विश्वकप फुटबाल में दर्शक की भूमिका में थे। दोनों की जनसंख्या लगभग पौने तीन अरब के करीब पहुंचने वाली है लेकिन दोनों देश फुटबाल के इस महाकुंभ में मूक दर्शक ही बने रहते हैं। चीन ने तो ओलंपिक में महाशक्ति का दर्जा हासिल कर लिया है और फुटबाल, क्रिकेट, हॉकी जैसे टीम खेलों में उसे महारथ नहीं है लेकिन भारत जहां क्रिकेट और हॉकी का एक समृद्ध इतिहास रहा है, फुटबाल विश्वकप में दूर-दूर तक क्यों नहीं दिखाई देता यह बड़ा आश्चर्य का विषय है। इसी कारण जब-जब विश्वकप होता है भारत के लोगों को अपनी टीम तो दूर भारतीय मूल के किसी खिलाड़ी के भी विश्वकप में दर्शन नहीं होते। एक बार विश्वकप खेलने का मौका मिला था किंतु तब भारत के खिलाड़ी नंगे पैर खेलते थे इसलिए विश्वकप से बाहर रहे। क्या हम अगले 50 वर्षों में विश्वकप खेल सकते हैं। यह एक बड़ा सवाल है।

उथल-पुथल से भरा रहा
इटली, स्पेन, इंग्लैड जैसे दिग्गज देश जब पहले ही दौर में बाहर हो गए थे तो कहा जा रहा था कि इस बार नतीजे अनपेक्षित रहेंगे। लेकिन जब ब्राजील, जर्मनी, नीदरलैंड्स, अर्जेंटीना आगे बढ़े तो उम्मीद जताई गई कि कोई न कोई पूर्व चैम्पियन ही जीतेगा। ब्राजील के नेमार की रीड़ की हड्डी टूटने से वह टीम इतनी मायूस हो गई कि तीसरा स्थान भी नहीं बचा सकी। उधर उरूग्वे के सुआरेज ने जब इटली के चेलिनी को दांत से काटा तो कुछ कड़वाहट भी देखने को मिली। इसके चलते उरूग्वे के खिलाड़ी को स्वदेश लौटना पड़ा जहां उनका स्वागत किसी नायक की तरह किया गया। राष्ट्रपति ने उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया। सितारा खिलाडिय़ों के लिए यह विश्वकप दुखभरा था। नेमार की रीढ़ की हड्डी टूट गई तो मैक्सिको के मोरेनो का पांव टूट गया। इस प्रकार तीनों सितारा खिलाड़ी विश्वकप से बाहर हुए और उधर मैसी फाइनल में भी कोई कमाल नहीं दिखा सके। दक्षिण अमेरिका में विश्वकप जीतने वाली जर्मनी पहली यूरोपीय टीम बन गई है। विश्वकप में अक्सर मुकाबले अतिरिक्त समय तक चलते हैं। अब तक 7 बार अतिरिक्त समय में ही खिताब का फैसला हुआ है। इस टूर्नामेंट में 171 गोल हुए जिनमें से सबसे अधिक 18 गोल जर्मनी ने ही किए हैं। चैंपियन जर्मनी ने 7 मैच खेले जिनमेें से 6 जीते और 1 ड्रा रहा।

मीना बाजार था गुलजार
ब्राजील के विश्वकप के लिए वेश्याओं ने भी भरपूर तैयारी की थी विभिन्न देशों की 10 हजार वेश्याएं टूर्नामेंट से पहले ही ब्राजील में अड्डा जमा चुकी थीं। इन्हें नाइट क्लबों और चकला घरों ने अनुबंध पर बुलाया था। ब्राजील उन देशों में से है जहां वेश्यावृत्ति वैध है इसी कारण चकला घर खुले आम चलते हैं। ब्राजील एक उन्मुक्त देश है अत: यहां का माहौल शराब, शबाब और आनन्द से भरा रहता है। फुटबाल टूर्नामेंट में इस मादकता ने कई गुना वृद्धि की। ब्राजील की तासीर को देखते हुए कई टीमों ने अपने खिलाडिय़ों पर पाबंदियां लगा रखी थीं क्योंकि उन्हें डर था कि आनन्द और मस्ती खिलाडिय़ों की एकाग्रता पर बुरा असर डालेगी।
ब्राजील की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिला
इस टूर्नामेंट ने ब्राजील को मालामाल कर दिया है। लगभग 3 लाख करोड़ की आमदनी हुई है और सरकार के मात्र 8 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। आलोचकों का कहना है कि ब्राजील सरकार ने फीफा को खुश करने के लिए विश्वकप पर मनोरंजन कर नहीं लगाया अन्यथा ब्राजील की आमदनी कई गुना अधिक होती। विश्वकप से पहले ब्राजील की राजधानी रियो में कई बस्तियों को तोड़ दिया गया और अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही में बहुत से लोग बेघर हो गए। इस कारण ब्राजील सरकार की आलोचना भी की गई।

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