05-Jul-2014 06:39 AM
1234820
एनडीए सरकार के 30 दिन पूर्ण हो गए। जनता अच्छे दिनों की राह देख रही थी लेकिन बुरे दिन आ गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्थ व्यवस्था को कड़वी दवाई देकर दुरूस्त करने का सूत्र दिया था

लेकिन इस कड़वी दवाई का पहला डोज उन्होंने जनता को ही दे डाला। जनता उम्मीद लगा रही थी कि नई सरकार मुनाफाखोरों पर लगाम लगाएगी और शेयर बाजार के खिलाडिय़ों की परवाह किए बगैर जनता को राहत पहुंचाने के लिए कुछ फौरी उपाय करेगी लेकिन जनता भ्रम में थी। जब मोदी सत्तासीन हुए तो शेयर बाजार ने ऊंचाई की छलांग मार ली। उद्योगपतियों और निवेशकों की जेबों में हरियाली दिखने लगी। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी 2 लाख करोड़ रुपये भारतीय बाजार में झोंक दिए। अच्छे दिन आए पर आम जनता के लिए नहीं दौलत वालों और पूंजीपतियों के लिए। आज आलम यह है कि यूपीए सरकार में जो मंहगाई तेज चलते हुए बढ़ रही थी वह भागने लगी है। मुद्रा स्फीति झलांग लगा रही है। 500 रुपये दिहाड़ी कमाने वाले मजदूर के लिए भी महंगाई के इस माहौल में जीना मुश्किल हो रहा है। यूपीए सरकार के शासनकाल में 160 प्रतिशत महंगाई बढ़ी इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिवर्ष 16 प्रतिशत महंगाई बढ़ी और प्रतिमाह या 30 दिन में 1.33 प्रतिशत की दर से महंगाई बढ़ी लेकिन इस सरकार के सत्तासीन होते ही 30 दिन के भीतर लगभग 3 प्रतिशत महंगाई बढ़ गई। इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो 5 वर्ष में ही कीमतें 180 प्रतिशत बढ़ जाएंगी जबकि लोगों की आमदनी बढऩे का दूर-दूर तक कोई संकेत नहीं दिखाई दे रहा है। सोने चांदी का भाव अवश्य गिरा है लेकिन गरीब आदमी के पेट की आग सोने चांदी सेे नहीं बुझती। पिछली सरकार की सबसे बड़ी असफलता यह थी कि वह कीमतें नियंत्रित करने में नाकामियाब रही थी। लेकिन यह सरकार तो शुरूआत से ही कीमतों पर काबू पाने में नाकाम है। इसी वर्ष हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर में चुनावी रेली मेंं 14 फरवरी को नरेन्द्र मोदी ने कीमतें बढऩे पर यूपीए सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि सरकार कीमतें रोकने में असफल रही है और इस असफलता को स्वीकार भी नहीं रही है। तब उन्होंने 60 वर्ष के दौरान बेराजगारी, गरीबी और महंगाई के लिए कांग्रेस सरकारों को जमकर कोसा था और कहा था कि उन्हें 60 माह दे दिए जाएं अगर विकास करना है तो जज्बा चाहिए। क्या यही मोदी का जज्बा है।
यह सच है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ कठोर उपाय करने होंगे। पूर्ववर्ती सरकारों ने रेल किराया इसलिए नहीं बढ़ाया क्योंकि उन्हें हर वक्त चुनाव की चिन्ता सताती थी और सरकार गिरने का भय भी था। लेकिन मोदी तो बहुमत में हैं शायद इसीलिए उन्होंने एक झटके में 14 प्रतिशत से ज्यादा रेल किराया बढ़ा दिया। माल भाड़ा ढुलाई भी बढ़ी और इसका सीधा असर कीमतों पर दिखाई दिया। तैयारी तो गैस, केरोसीन, पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ाने की भी है लेकिन महाराष्ट्र्र, झारखण्ड जैसे राज्यों में चुनाव की तारीखें देखते हुए फिलहाल इस फैसले को स्थगित रखा गया है लेकिन कब तक? जैसे ही यह जिन्न बोतल से बाहर निकलेगा आम आदमी की जेब को निगलने लगेगा इसका सीधा असर निश्चित रूप से आम जनता पर पडऩे वाला है इसलिए आने वाले दिनों मेें और बुरे दिन आ सकते हैं। इस साल अप्रेल माह में महंगाई 5.2 प्रतिशत थी, जब मोदी ने शपथ ली तो जनता को लगा कि महंगाई दर नीचे आएगी लेकिन यह ऊपर चली गई और सरकार ने नियंत्रण के लिए कोई कदम नहीं उठाए र्इंधन तथा खाद्यान्न की कीमतों को नीचा रखकर सरकार महंगाई काबू में कर सकती है पर इस तरफ मोदी का ध्यान नहीं है। 22 सामग्रियां ऐसी हैं जिनकी कीमत 30 से 35 प्रतिशत कम हो जाए तो जनता को अपने आप राहत मिल जाएगी और जीवन स्तर भी सुधरने लगेगा लेकिन सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 300 रुपये प्रतिटन करने के अतिरिक्त और कोई कदम नहीं उठाए 50 लाख टन चावल राज्य सरकारों के जरिये खुले बाजार में बेचा जाएगा किन्तु गेहूं और दलहन भी खुले बाजार में आना चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धा बढ़ा कर दाम कम किए जा सकेंं। पेट्रोलियम पर टैक्स घटाना भी एक अच्छा उपाय है लेकिन सरकार ज्यादा प्रयोगधर्मी नहीं है। यदि मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से ऊपर पहुंची तो सरकार के लिए भारी परेशानी शुरू हो जाएगी। जमाखोरी पर केन्द्र ने राज्यों से जो रिपोर्ट मांगी थी वह 30 जून तक आ जानी थी लेकिन किसी भी राज्य ने रिपोर्ट देना उचित नहीं समझा। पर नेशनल सेंपल सर्वे की रिपोर्ट अवश्य आ गई है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2010 के बाद महंगाई में 40 प्रतिशत से अधिक इजाफा हो चुका है. खाद्य पदार्थों के मूल्य तो 50 फीसद से ज्यादा तक बढ़ चुके हैं. गरीबों और अमीरों के बीच की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है. खर्चे और उपभोग के आधार पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2000 और 2012 के बीच ग्रामीण इलाकों में रइसों के खर्चे में 60 फीसद इजाफा हुआ, जबकि गरीबों का खर्च केवल 30 प्रतिशत बढ़ा. इस दौरान शहरी इलाकों में धनवान और निर्धन के व्यय में क्रमश: 63 और 33 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई. जहां वर्ष 2000 में एक अमीर आदमी का खर्च गरीब के मुकाबले 12 गुना था, वहीं अब यह बढ़कर 15 गुना हो गया है. आज शहरों के मुकाबले गांवों में महंगाई की मार ज्यादा है. आंकड़ों के अनुसार दाल, सब्जी, फल, तेल, दूध, चीनी और कपड़ों की कीमत देहाती इलाकों में कहीं ज्यादा है. ग्रामीण इलाकों में गरीबी की रेखा से नीचे जीने को मजबूर लोगों की संख्या भी अधिक है. बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का मोटा सिद्धांत है कि यदि गरीबों का भला करना है तो देश की आर्थिक विकास दर ऊंची रखो. इस सिद्धांत के अनुसार जब विकास तेजी से होगा तो समृद्धि आएगी और गरीबों को भी इसका लाभ मिलेगा. लेकिन अंतरराष्ट्रीय जगत में आज केवल आर्थिक विकास के पैमाने को अपनाने का चलन खारिज किया जा चुका है. किसी देश की खुशहाली नापने के लिए अब मानव विकास सूचकांक तथा भूख सूचकांक जैसे मापदंड अपनाए जा रहे हैं और इन दोनों पैमानों पर हमारे देश की हालत दयनीय है. आर्थिक सुधार के नाम पर हमारी सरकारें सन् 1991 से खुली अर्थव्यवस्था की डगर पर चल रही हैं. उसके बाद से ही गरीब-अमीर के बीच की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है. तेज आर्थिक विकास की अंधी दौड़ में सरकार ने मुद्रास्फीति पर काबू रखने की अनदेखी की है. नतीजा सामने है. खाद्य मूल्य सूचकांक लगातार दो अंक के आसपास चल रहा है. कमजोर सप्लाई चेन और खाद्यान्न में वायदा कारोबार के कारण खाने-पीने की चीजों की कीमतें आसमान पर हैं. बढ़ती बेरोजगारी कोढ़ में खाज का काम कर रही है।
पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े
सरकार ने अब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि कर दी है। डीजल की कीमत में 50 पैसे और पेट्रोल में 1.69 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ोतरी की गई है।
दरों में परिवर्तन
य दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 71.56 से बढ़कर 73.25 रुपए प्रति लीटर होगी।
य मुंबई में पेट्रोल 80.16 से बढ़कर 81.85 रुपए प्रति लीटर की दर से मिलेगा।
य लखनऊ में पेट्रोल की कीमत 79.03 से बढ़कर 80.72 रुपए प्रति लीटर हो जाएगी।
इराक संकट को ठहराया जिम्मेदार
तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड ने तेल कीमतों में की गई इस बढ़ोतरी के लिए इराक की स्थिति और और रुपए की कमजोरी को जिम्मेदार ठहाराया है। कंपनी का कहना है कि मध्य एशिया में अस्थिरता के माहौल के कारण अंतराराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें पिछले दोफ्तों में बढ़ी हैं। इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपया भी कमजोर हुआ है। इन स्थितियों में तेल कंपनियों का घाटा बढ़ गया था। लिहाजा कीमतों में वृद्धि का फैसला करना पड़ा
महंगाई और बढ़ेगी
मानसून की बेरूखी के कारण देश में सूखे जैसे हालात बन रहे हैं। साथ ही खाद्यान्न और सब्जियों के और भी महंगा होने की आशंका गहरा रही है। इस साल जून की बारिश पिछले 100 साल में सबसे कम रही है। अनाज की पैदावार के लिहाज से महत्वपूर्ण माने जाने वाले मध्य, पूर्वी और पश्चिमी भारत में अलनीनों के सक्रिय होने के कारण पहले ही सूखे जैसे हालात बन गए हैं। यहां खेत सूखे पड़े हैं।देश के बड़े जलाशयों में तेजी से पानी कम हो रहा है। इससे सरकार की फिक्र बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक मानसून तेजी से नहीं बढ़ता, देश को खाद्यान्न की महंगाई भी परेशान करती रहेगी।
तो घट जाएगी महंगाई
सरकार अगर चार चीजों-आलू, प्याज, दूध और गेहूं या चावल के बढ़ते भाव को काबू में रख ले तो महंगाई नीचे आ जाएगी। केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय का अनुमान है कि इन चार चीजों के भाव बढऩे की रफ्तार में अगर पांच प्रतिशत की कमी आती है तो खुदरा महंगाई दर में एक प्रतिशत की गिरावट आ जाएगी। यही मंत्रालय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी करता है। मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक आशीष कुमार और निदेशक दिलीप कुमार ने खुदरा महंगाई के राष्ट्रीय और राज्यवार आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद एक शोधपत्र में यह अनुमान लगाया है। उन्होंने शोधपत्र में कहा है कि दूध, आलू, प्याज और चावल या गेहूं की कीमतें थामने से महंगाई में कमी आ जाएगी। दोनों अधिकारियों का कहना है कि एक औसत परिवार के उपभोग व्यय में 20.57 प्रतिशत खर्च आलू, प्याज, दूध, गेहूं या चावल पर ही होता है। लिहाजा, इन चीजों के दाम बढऩे की रफ्तार अगर पांच प्रतिशत कम कर दी जाए तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई दर में एक प्रतिशत की कमी आ जाएगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आठ राज्यों-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान और कर्नाटक में यदि महंगाई को रोकने के प्रयास किए जाते हैं तो देशभर में महंगाई दर में कमी आएगी। दलील है कि इन आठ राज्यों में ही देश के कुल उपभोग व्यय का 64.29 प्रतिशत खर्च होता है। यदि इन राज्यों में मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत कम हो जाती है तो पूरे देश में खुदरा महंगाई दर में 3.21 प्रतिशत की गिरावट आ जाएगी।
जब यूपीए पर गरजते थे मोदी
य नरेन्द्र मोदी ने यूपीए सरकार की चुनावी रेलियों के दौरान खूब खिंचाई की थी और महंगाई बढऩे के लिए उसे जमकर कोसा भी था।
य 9 मई 2009 को जब लाल कृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए थे उस वक्त शक्कर की कीमतों पर दहाड़ते हुए मोदी ने कहा था कि दिसम्बर 2008 में भारत शक्कर निर्यात करने की स्थिति में था लेकिन फरवरी-मार्च 2009 में सरकार को पता चला कि शक्कर उपलब्ध ही नहीं है।
य अक्टूबर 2013 में उदयपुर के गांधी मैदान स्टेडियम में नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन यूपीए सरकार को कोसते हुए कहा कि सरकार कोल घोटाले और टूजी में रुचि रखति है लेकिन 100 दिन में महंगाई रोकने के वादे को भूल चुकी है।
य अक्टूबर 2013 में वीडियोकान्फ्रेन्सिंग के जरिए इंटरनेशनल समिट में बोलते हुए मोदी ने यूपीए सरकार की स्वर्ण नीति की आलोचना की थी। संभवत: इसीलिए मोदी के सत्तासीन होते ही सोने के दाम गिरे हैं लेकिन भोजन के दाम बढ़ गए हैं।
य 21 अप्रैल 2014 को मुंबई में रेली के दौरान नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि वह गरीबों के यहां गरीबी पर्यटन (श्चश1द्गह्म्ह्ल4 ह्लशह्वह्म्द्बह्यद्व) पर जाते हैं।
य 16 फरवरी 2014 को हिमाचल प्रदेश के सुजानपुर में मोदी ने कहा यूपीए सरकार महंगाई को रोकने में असफल है और अपनी असफलता स्वीकारती भी नहीं है। प्रधानमंत्री जी अगर विकास करना है तो जज्बा चाहिए।
30 दिनों में क्या किया?
नरेन्द्र मोदी सरकार ने 30 दिन अर्थात चार सप्ताहों में जो कुछ किया उससे कहीं यह नहीं लगा कि महंगाई पर सरकार गंभीर है।
पहला हफ्ता - 27 मई से 1 जून
पहली कैबिनेट मीटिंग, ब्लैकमनी पर एसआईटी बनाने का फैसला। मंत्रियों को आदेश - अपने रिश्तेदारों को बतौर पर्सनल स्टाफ भर्ती न करें। 10 अहम नीतियों का एलान। अहम नीतिगत मामलों को लेकर बने ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) और इम्पावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (ईजीओएम) खत्म।
दूसरा हफ्ता - 2 से 8 जून
मोदी द्वारा द्विपक्षीय वार्ता के लिए अमेरिका जाने का ओबामा का न्योता कबूल। मोदी ने विदेश यात्रा पर सबसे पहले भूटान जाने का फैसला किया। सरकार ने टॉप ब्यूरोक्रेट्स को 11 सूत्री निर्देश भेजे, मकसद अधिकारियों और जनता के बीच रिश्तों को सुधारना। मोदी द्वारा चीन से आगे निकलने के लिए 3 एस यानी स्किल, स्पीड और स्केल का फॉर्मूला।
तीसरा हफ्ता - 9 से 15 जून
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अभिभाषण में सरकार का एजेंडा पेश। महंगाई से निपटने से लेकर नई नौकरियां पैदा करने की बात। संसद में मोदी द्वारा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों के अलावा राजनीति को साफ सुथरा बनाने तक की बात। इंटेलिजेंस ब्यूरो की चेतावनी के बाद पीएमओ ने मंत्रालयों से उनके साथ काम कर रहे एनजीओ की जानकारी मांगी। एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रमादित्य की सवारी करने पहुंचे मोदी। कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ कड़े फैसले लिए जाएंगे। मोदी भूटान पहुंचे।
चौथा हफ्ता - 16 से 22 जून
यूपी के गवर्नर बीएल जोशी का इस्तीफा, बीजेपी ने यूपीए की ओर से अपॉइंट किए गए 7 अन्य गवर्नरों को इस्तीफा देने को कहा। भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय वार्ता, मुक्त व्यापार समझौते के मुद्दे पर स्टडी ग्रुप बनाने का फैसला।
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सदस्यों को इस्तीफा देने कहा गया। मंत्रियों को उन अधिकारियों को बतौर सचिव नियुक्त करने से रोका गया, जो यूपीए शासन में सेवाएं दे चुके हैं। यात्री रेल किराए में 14.2 प्रतिशत वृद्धि। मंत्रालयों के सचिवों को निर्देश, 15 दिन के अंदर कैबिनेट प्रपोजल के लिए सुझाव दें।