10 हजार करोड़ की जालसाजी
31-Jul-2014 10:36 AM 1234772

महाराष्ट्र में 10 हजार करोड़ रुपए की जालसाजी ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। बंगाल में जिस तरह शारदा चिट फंड घोटाला हुआ था लगभग उसी तरह महाराष्ट्र में भी हजारों निवेशकों की रकम लेकर एक कंपनी चंपत हो गई। इस खबर से निवेशकों के पैरों तले जमीन खिसक गई है। तीन निवेशक जीवन की गाढ़ी कमाई डूबने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और मौत को गले लगा लिया। आश्चर्य यह है कि तीन लोगों की मौत के बाद भी महाराष्ट्र सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था। हजारों करोड़ रुपये की इस धोखाधड़ी का सूत्रधार है भाऊसाहब चव्हाण, जो हर व्यक्ति को दौलतमंद बनाने के सपने दिखाता था। इस जालसाज ने चार साल में रकम चार गुना करने का लालच देकर शिक्षित और अशिक्षित सभी को चूना लगाया। आरोपी अब सिंगापुर रवाना हो गया है। बी. कॉम डिग्रीधारी भाऊसाहेब चव्हाण शुरुआत में नासिक की एक कंपनी में स्टोरकीपर था। एक मल्टीलेवल कंपनी में उसने पहले 5 हजार रुपये गंवाए, लेकिन इससे उसे कमाई का नया साधन मिल गया।
सबसे पहले नवंबर 2009 में चव्हाण ने डीबीसी मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी प्रा. लि. लांच की, जिससे तीन महीने में ही काफी पैसा कमाया। उसके बाद शुरू हो गया, केबीसी मल्टीट्रेड प्रा. लि. का गोरखधंधा। कुछ ही महीनों में केबीसी का नेटवर्क चार राज्यों (महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश) में फैल गया। पैसा आया तो चव्हाण ने कंपनी का विस्तार भी किया। डोंबीवली एफएक्स रिच बुलियन फाइनेंसियल सर्विसेस प्रा. लि., केबीसी क्लब रिसोर्ट्स प्रा.लि. और फिर केबीसी प्लाटर्स प्रा.लि. कंपनी की श्रृंखला बनाकर होटल व्यवसाय, रियल इस्टेट के धंधे में प्रवेश किया। चव्हाण ने तीसरी कक्षा पास अपनी पत्नी और बेटे को भी कंपनी का निदेशक बनाया।
बीते फरवरी महीने में सीआईडी और नासिक पुलिस ने केबीसी घोटाले के संदर्भ में 975 पन्ने की रिपोर्ट तैयार की थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तीन लोगों की मृत्यु के बाद पुलिस हरकत में आई। 14 जुलाई को कंपनी के निदेशक बापू छाबू चव्हाण, प्रबंधक पंकज शिंदे और कार चालक नितिन पोपटराव शिंदे को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जबकि मुख्य सूत्रधार भाऊसाहेब चव्हाण दंपति इस समय सिंगापुर में है परंतु अब  पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाएगी। लोगों को पुलिस पर संदेह इसलिए है क्योंकि स्पीक एशिया मामले के आरोपी भी सिंगापुर में ही हैं और इतने साल बीत जाने के बावजूद पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाई।
शिवसेना ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है। जबकि पुलिस कंपनी के निदेशक नानासाहेब छाबू चव्हाण, मुख्य संदिग्ध के भाई भाउसाहेब चव्हाण, बापूसाहेब चव्हाण की पत्नी साधना बापू चव्हाण और नासिक पुलिस में एक कर्मचारी व भाउसाहेब चव्हाण के रिश्तेदार संजय वामन जगताप को गिरफ्तार कर चुकी है। ्यक्चष्ट रूरुञ्जढ्ढ ञ्जक्र्रष्ठश्व क्कङ्कञ्ज रुञ्जष्ठ में काम करने वाली एक महिला ऐंजेंट एवं उसके 22 वर्षीय बेटे ने आत्महत्या कर ली। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने आत्महत्या के लिए ्यक्चष्ट रूरुञ्जढ्ढ ञ्जक्र्रष्ठश्व क्कङ्कञ्ज रुञ्जष्ठ के मालिक भाउसाहेब चव्हाण और उनकी पत्नी आरती चव्हाण को जिम्मेदार बताते हुए लिखा है कि उनके द्वारा कंपनी बंद कर देने के बाद निवेशकों का दबाव बढ़ता गया और वो निजी तौर पर निवेशकों का पैसा लौटाने की स्थिति में नहीं थी। ्यक्चष्ट रूरुञ्जढ्ढ ञ्जक्र्रष्ठश्व के खुलासे, महिला द्वारा बेटे समेत आत्महत्या और उसके बाद हुईं गिरफ्तारियों के चलते केबीसी मल्टीट्रेड से जुड़े महाराष्ट्र के लीडर्स भूमिगत हो गए हैं। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र पुलिस ्यक्चष्ट रूरुञ्जढ्ढ ञ्जक्र्रष्ठश्व से जुड़े सभी बिन्दुओं और व्यक्तियों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। महाराष्ट्र के नासिक एवं औरंगाबाद इलाकों में ्यक्चष्ट रूरुञ्जढ्ढ ञ्जक्र्रष्ठश्व द्वारा करोड़ों रुपए का चूना लगाए जाने की खबरें मिल रहीं हैं। ऐजेन्सियां इस मामले में अपने स्तर पर जांच कर रहीं हैं एवं अभी तक कोई अंतिम आंकड़ा जारी नहीं किया गया है।
425 करोड़ रुपए के क्यूनेट घोटाले का मामला अभी तक अनसुलझा है और इस नए घोटाले ने महाराष्ट्र में सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं। महाराष्ट्र में ऐसी कई चिटफंड कंपनियां हैं जिनमें निवेशकों का करोड़ों रुपए फंसा हुआ है और पैसा खर्च करने वाले लोग अब आत्महत्या करने लगे हैं। जल्द ही कठोर कदम नहीं उठाए गए तो इसका असर चुनाव पर भी पड़ सकता है। वर्ष  2013 में सारे देश में फर्जी कंपनियों ने 40 हजार करोड़ का चूना लगाया था। इस वर्ष पश्चिम बंगाल के सारधा घोटाले के पीडि़त अपने लिए न्याय की गुहार लगाते दिखे। इसके अलावा आलू बांड, बकरी पालन, घी में निवेश जैसी फर्जी योजनाओं के जरिये घोटालेबाजों ने खूब चांदी काटी। जिग्नेश शाह के नेतृत्व वाले नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) में हुए 5,600 करोड़ रुपये के भुगतान घोटाले ने तो निवेशकों का मनोबल ही तोड़ दिया था। यह घोटाला एक्सचेंज की गड़बडिय़ों और नियामकीय कमियों का नतीजा था। इतने सारे मामलों का भंडाफोड़ होने के बावजूद सरकार अभी तक इन पर लगाम लगाने के सटीक उपाय करने में नाकाम रही है।
सारधा चिटफंड के घोटाले का पता अप्रैल में चला। इसमें निवेशकों का करीब 30 हजार करोड़ रुपये फंसा हुआ था। मामला सामने आने के बाद केंद्र और बंगाल सरकार जागी। करीब आठ महीने बीतने के बावजूद निवेशकों को अभी तक पूरी राशि मिलने की उम्मीद नहीं है। राज्य सरकार ने कुछ निवेशकों को रकम लौटाने की व्यवस्था की है मगर यह भी कागजी खानापूर्ति ही लगती दिख रही है।
इसी तरह एनएसईएल घोटाले में भी निवेशकों को डूबी राशि में से बहुत कम रकम मिल पाई है। आलू बांड, घी में निवेश और बकरी पालन के नाम पर धन जुटाने वाली कंपनियों पर बाजार नियामक सेबी ने पाबंदी तो लगा दी मगर इन कंपनियों का अता-पता ही नहीं चल पा रहा है। ऐसे में निवेशकों के बकाये की वापसी की सूरत ही नहीं बनती। इन्होंने इंटरनेट के जरिये यह फर्जीवाड़ा किया था।
अवैध स्कीमों के जरिये धन जुटाने वाली 76 कंपनियों के खिलाफ सरकार ने गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) को जांच करने का आदेश दिया है। सेबी, रिजर्व बैंक सहित कंपनी मामलों के मंत्रालय का इरादा भले ही पोंजी स्कीमों का अस्तित्व खत्म करने की हो मगर इन मामलों की बढ़ती संख्या इसी ओर इशारा करती हैं कि अभी भी निवेशकों के हित सुरक्षित नहीं हैं।

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