मप्र-गुजरात के बीच नर्मदा जल संधि को लेकर पानी के बंटवारे का अनुबंध 2024 में खत्म हो रहा है। मप्र को अपने हिस्से का पानी वर्ष 2024 से पहले लेना है। जिसके लिए प्रदेश में तेजी से नहरों का जाल बिछाया जा रहा है। खंडवा, खरगोन, बड़वानी सहित इंदौर जिले में 13 नहर परियोजनाएं प्रस्तावित, निर्माणाधीन हैं। अफसरों की लापरवाही के चलते कार्य की गति कछुआ चाल है, जिससे इन परियोजनाओं का वर्ष 2024 से पहले पूरा होना संभव नहीं दिख रहा है। जबकि इन परियोजनाओं को हर हाल में दिसंबर 2022 तक पूरा किया जाना है। इस बात को लेकर मुख्यमंत्री भारी नाराजगी भी जता चुके हैं।
नर्मदा जल पर अपने अधिकार को कायम रखने के लिए नर्मदा पर बने बांधों से सिंचाई के लिए नहरों का जाल बिछाया जा रहा है। वर्तमान में कुल 17 नहर परियोजनाएं निर्माणाधीन व प्रस्तावित हैं। इन 17 नहर परियोजनाओं से प्रदेश का कुल 2.60 लाख हेक्टेयर रकबा सिंचित होगा। इन परियोजनाओं की कुल लागत 3252 करोड़ रुपए है। सभी 17 परियोजनाओं का काम दिसंबर 2022 तक पूरा किया जाना प्रस्तावित है। जिसमें 13 नहर परियोजनाएं इंदिरा सागर बांध से संबंधित है। इंदिरा सागर बांध की 5 परियोजनाओं का काम तो मार्च 2022 में ही पूरा होना था, लेकिन काम की गति धीमी होने से अब तक ये परियोजनाएं अधूरी हैं। जिसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल बैठक में नाराजगी भी जताई थी। साथ ही एनवीडीए अधिकारियों को साफ चेतावनी दी थी कि सभी नहर परियोजनाएं समय सीमा में पूरी कर ली जाएं।
नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने 1979 में नर्मदा के जल का बंटवारा किया था। जिसमें सालभर में बहने वाले नर्मदा के पानी की मात्रा 28 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) मानते हुए 9 एमएएफ गुजरात को, 0.50 एमएफ राजस्थान, 0.25 एमएएफ महाराष्ट्र और बाकी 18.25 एमएएफ मप्र को आवंटित किया है। गुजरात में एक ही बांध सरदार सरोवर नर्मदा पर बने होने के कारण वहां की जल भंडारण क्षमता 4.75 एमएएफ है। इसलिए गुजरात के हिस्से का पानी इंदिरा सागर में सुरक्षित रखा जाता है, जिसे गुजरात की मांग पर समय-समय पर छोड़ा जाता है। जल न्यायाधिकरण के समझौते के अनुसार 2024 के बाद गुजरात अपने हिस्से का पानी मप्र को नहीं लेने देगा। वर्तमान में विभिन्न नहर परियोजनाओं से मप्र 14.55 एमएएफ पानी ही ले पा रहा है।
एनवीडीए की इंदिरा सागर बांध से 6 नहर परियोजनाएं मार्च 2022 तक पूरी होनी थी। जिसमें खंडवा, खरगोन की 5 परियोजनाएं, भुरलाय, कोदवार, पुनासा विस्तार, छैगांवमाखन, बिस्टान और अलीराजपुर सिंचाई परियोजना को पूरा किया जाना है। इसमें छैगांवमाखन और पुनासा विस्तार योजना का काम अंतिम चरण में है। काम की गति इतनी धीमी है कि इसके अप्रैल तक पूरा होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
खंडवा जिले में चल रही नहर परियोजनाओं में किल्लौद, जावर उद्वहन सिंचाई योजना का काम भी कछुआ गति से चल रहा है। झिरनिया, पामाखेड़ी नहर परियोजना का काम तो अभी शुरू ही नहीं हुआ है। इसके टेंडर बुलाना बाकी है। उल्लेखनीय है कि दिवंगत सांसद नंदकुमार सिंह चौहान द्वारा ये सभी परियोजनाओं को स्वीकृत कराया गया था और अपने कार्यकाल के दौरान इनका भूमिपूजन भी किया गया था। झिरनिया सिंचाई का भूमिपूजन करने तो स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहुंचे थे। जानकारी के अनुसार अभी तक जो परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं, उनमें 10 हजार हेक्टेयर की किल्लौद परियोजना है, जिसकी लागत 140.57 करोड़ है। वहीं 1060 हेक्टेयर की पामाखेड़ी परियोजना जिसकी लागत 22.69 करोड़, 4 हजार हेक्टेयर की सिमरोल (इंदौर) जिसकी लागत 59.13 करोड़, 4 हजार हेक्टेयर कीही चौड़ी जगानिया जिसकी लागत 68.36 करोड़, 9 हजार हेक्टेयर की बलकवाड़ा परियोजना जिसकी लागत 123.69 करोड़ है। वहीं 26 हजार हेक्टेयर की जावर परियोजना की लागत 466.91 करोड़ और 47 हजार हेक्टेयर की नागलवाड़ी परियोजना की लागत 1173.03 करोड़ रुपए है।
इंदिरा सागर नहर परियोजना के चीफ इंजीनियर एमएस अजनारे का कहना है कि पुनासा विस्तार और छैगांवमाखन परियोजना का काम पूरा हो चुका है। इनकी टेस्टिंग की जा रही है। पामाखेड़ी और झिरनिया परियोजना के टेंडर बुलाए जा रहे हैं। सभी परियोजनाओं को समय सीमा में पूरा कराया जाएगा।
दरकते और रिसते बांधों ने बढ़ाई चिंता
बुंदेलखंड के छतरपुर और टीकमगढ़ जिले के बॉर्डर पर बने बान सुजारा बांध के छह गेट और गैलरी में बड़ा लीकेज हो गया है। इससे दोनों जिलों के 52 गांवों के ऊपर तबाही का खतरा पैदा हो गया है। दरअसल, प्रदेश में करीब आधा सैकड़ा बांध ऐसे हैं जो पुराने होने के कारण जर्जर स्थिति में आ गए हैं। दरकते और रिसते बांधों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। जल संसाधन विभाग ने 27 ऐसे बांघों को चिन्हित किया है, जिनकी मरम्मत जरूरी है। जल संसाधन विभाग जल्द की निविदा आमंत्रित करके काम शुरू कराएगा। जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार श्योपुर जिले में वर्ष 1908 में निर्मित वीरपुर, वर्ष 1910 में सिवनी जिले में निर्मित रुमल और 1913 में धार जिले में बने माही सहित प्रदेश के 27 बांधों की सरकार मरम्मत कराएगी। इन बांधों की दीवार में कहीं- कहीं दरार आ चुकी हैं या कहीं-कहीं मिट्टी धंस रही है। मरम्मत कार्य के लिए सरकार ने 551 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं।
धर्मेंद्र सिंह कथूरिया