रेड जोन में फंसी कांग्रेस
02-Jul-2020 12:00 AM 477

 

को रोना संक्रमण के इस दौर में कांग्रेस अपने रेड जोन की पहचान कर रही है। ये वो इलाके हैं जहां कांग्रेस कमजोर है। लक्ष्य है रेड को ग्रीन में बदलने का और फोकस है ग्वालियर-चंबल पर। यही वो इलाका है जहां 16 सीटें महाराज और राजा के बीच नाक का सवाल बनेंगीं। कांग्रेस यहां बूथ स्तर तक जाकर ग्रास रूट लेवल पर पार्टी को मजबूत करना चाहती है। प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनाव की सरगर्मी तेज हैं। कांग्रेस पार्टी ने अब उन बूथ पर फोकस तेज कर दिया है जहां पार्टी कमजोर है। पार्टी इन इलाकों को रेड जोन मानकर चल रही है। उसने कमजोर बूथ को रेड पॉइंट बनाकर उसे ग्रीन में तब्दील करने की जिम्मेदारी पूर्व मंत्री और विधायकों को दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ विधायकों के साथ मंथन भी कर चुके हैं।

कांग्रेस सबसे पहले ग्वालियर चंबल की 16 विधानसभा सीटों में कमजोर बूथ की पहचान कर रही है। विधानसभा वार नियुक्त पूर्व मंत्री और विधायकों को इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि वह विधानसभा स्तर पर कमजोर बूथ की पहचान कर उन्हें मजबूत करें। साथ ही मंडल और सेक्टर स्तर पर संगठन की इकाइयां गठित करने की भी तैयारी है। ग्वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस का चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदलने के बाद पार्टी की मुश्किल वहां नए सिरे से संगठन को खड़ा करने की है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सर्वे में इस बात की जानकारी सामने आई है कि ग्वालियर-चंबल इलाके के कई इलाकों में कांग्रेस बूथ स्तर पर बेहद कमजोर हो गई है। कई जगह तो कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ता बचे ही नहीं हैं। सर्वे के बाद कमलनाथ ने अब उन पर फोकस करना तेज कर दिया है, जहां कांग्रेस को उपचुनाव में हार का अंदेशा है। इसके लिए पार्टी के बड़े नेताओं को इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि वह खुद अपने स्तर पर बूथ में पार्टी को मजबूत करें। पार्टी के सर्वे में कमजोर बूथ की जानकारी सामने आने के बाद कांग्रेस पार्टी चौकन्ना हो गई है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कमजोर बूथ को लेकर तैयार होने वाली रणनीति की जिम्मेदारी संभाल ली है। इसके लिए वह हर एक बूथ पर विधानसभा के प्रभारी विधायक और पार्टी नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं। कमजोर बूथ को मजबूत बनाने के लिए पार्टी नेताओं को 1 हफ्ते का समय दिया है। विधानसभा प्रभारी मौके पर पहुंचकर बूथ वार बैठक कर संगठन को मजबूत करेंगे। उसके बाद अपनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपेंगे।

24 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव केवल हार-जीत का ही चुनाव नहीं है। बल्कि इस चुनाव में कई नेताओं का वजूद दांव पर होगा। खासकर ग्वालियर-चंबल अंचल में यह समय कांग्रेस में नए नेतृत्व के उदय का भी है। इसके लिए करीब आधा दर्जन से अधिक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रयासरत हैं। गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस में बचे नेता यह मान रहे हैं कि उन्हें महल की गुलामी से मुक्ति मिल गई है। बदले हुए समीकरणों में अंचल के कांग्रेस नेताओं में गॉडफादर की महत्वकांक्षा जागने लगी है। जिसके कारण कांग्रेस में गुटबाजी का पौधा फिर से पनपने लगा है। सिंधिया के कारण सीमित दायरे में रहने वाले पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत, अशोक सिंह, केपी सिंह, लाखन सिंह व विधायक प्रवीण पाठक की महत्वाकांक्षाएं बढ़ी हैं। बालेंदु शुक्ला भी अपने गुजरे कल को लौटाने के लिए जोर लगाने लगे हैं। इन क्षत्रपों के बीच गॉडफदर बनने की जंग शुरू हो गई है।

तीन माह पहले तक ज्योतिरादित्य सिंधिया गॉडफदर माने जाते थे। कांग्रेस में संगठन में नियुक्ति से लेकर टिकट वितरण तक में महल का फैसला अंतिम माना जाता था। जब तक दिल्ली से कोई सीधे फेरबदल नहीं हो। जिसके कारण गिनती के दिग्विजय सिंह समर्थकों को छोड़कर कांग्रेसी महल के सामने नतमस्तक नजर आते थे। सिंधिया के पार्टी छोड़ते ही यह नेता फ्री हैंड हो गए हैं।

क्षत्रपों के बीच मूल झगड़ा ग्वालियर को लेकर है। यहां अशोक सिंह अपना वर्चस्व बनाने में लगे हैं। ग्वालियर में डॉ. गोविंद सिंह भी अपना दखल रखना चाहते हैं। चूंकि दोनों दिग्विजय सिंह खेमे के हैं, इसलिए दोनों के बीच कैमेस्ट्री जम सकती है। लेकिन विधायक पूर्व मंत्री रामनिवास रावत भी यहां अपना दखल रखना चाहते हैं। इसलिए वह जिले की नियुक्तियों में रूचि दिखा रहे हैं। लेकिन कमलनाथ की मौजूदगी में हुई मीटिंग में रामनिवास रावत को विधायक प्रवीण पाठक व अशोक शर्मा के खुले विरोध का सामना करना पड़ा। प्रवीण पाठक ने यहां तक कह दिया कि मैं आपके श्योपुर में दखल दूं तो कैसा लगेगा। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि वह अपने क्षेत्र में किसी तीसरे की दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे। डॉ. गोविंद सिंह भिंड में रामनिवास रावत मुरैना-श्योपुर, केपी सिंह गुना-शिवपुरी देखें किसी को ऐतराज नहीं है। मुश्किल यह है कि ग्वालियर में स्वीकार्यता के बिना कोई गॉडफादर नहीं बन सकता है। इसलिए क्षत्रपों के बीच खुली जंग शुरू हो गई है।

कमलनाथ व दिग्विजय सिंह में से कौन

इसमें कोई दो मत नहीं कि दिग्विजय सिंह डेढ़ दशक तक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन उनकी महत्वकांक्षा राजनीति में सिंधिया राजघराने की तरह अपना वर्चस्व स्थापित करने की है। दूसरी तरफ कमलनाथ छिंदवाड़ा में खुश थे। लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनने के बाद उनके मन में टीस है और वह भी प्रदेश के सर्वमान्य नेता बनने की दौड़ में शामिल हो गए हैं। इसलिए दिग्विजय के साथ कमलनाथ की रूचि भी ग्वालियर-अंचल में बढ़ गई है। क्योंकि उन्हें राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी मात यहीं मिली है।

- अरविंद नारद

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^