05-Dec-2014 07:54 AM
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दिल्ली के शाही इमाम अहमद बुखारी की औकात अपने मोहल्ले में पार्षद के चुनाव जीतने की नहीं है, लेकिन वे सारे देश के मुस्लिमों के रहनुमा बनकर घूमते हैं। कतिपय कारणों से कांगे्रस और समाजवादी पार्टी जैसे राजनैतिक दलों ने बुखारी के बुखार को उतारने की हिम्मत नहीं जुटाई। लिहाजा अब यह बुखारी देश के प्रधानमंत्री को अपमानित करने की हिम्मत जुटा पाता है, लेकिन यह तो सिक्के का एक ही पहलू है।
जामा मस्जिद की प्राचीर से मौलाना अबू कलाम आजाद ने स्वतंत्रता के समय पलायन करने वाले भारतीय मुसलमानों को भारत में हिन्दूओं के साथ घुल-मिल कर रहने और यहीं बसने का रास्ता दिखाया था। उसी जामा मस्जिद के इमाम ने जब नवाज शरीफ का आव्हान कर देश में अलगाव का एक नया मोर्चा खोलने की कोशिश की, तो देश ने जाना कि दस्तारबंदी भी कोई दस्तूर है। यही कारण है कि इमाम की बेइमानी सभी की समझ में आई और सोनिया गांधी सहित तमाम बड़े नेताओं ने दस्तारबंदी से दूरी ही बनाई रखी। यह दस्तारबंदी जिसे इमाम एक भव्य समारोह में तब्दील करना चाहता था, दस्तूर बनकर रह गई।
उधर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इमाम अहमद बुखारी द्वारा अपने पुत्र को नायब इमाम नामित करने के लिए किये जा रहे दस्तारबंदी समारोह पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वे जो कुछ करने जा रहे हैं उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है और इस आयोजन का मतलब नायाब इमाम की नियुक्ति नहीं है। इस संबंध में याचिकाकर्ताओं और सरकार द्वारा दलील दी गयी थी कि चूंकि जामा मस्जिद वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है इसलिए इसका उत्तराधिकारी इमाम नहीं तय कर सकते, यह वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है। हालांकि यह अंतिम फैसला नहीं है इस मामले में आगे भी सुनवाई होनी है, जो की 28 जनवरी को होने वाली है जिसमें कोर्ट द्वारा सभी पक्षों को नोटिस भेजकर हलफनामा दायर कर अपना-अपना पक्ष रखने को कहा गया है।
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब पिछले दिनों जामा मस्जिद के विवादास्पद शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी द्वारा अपने उन्नीस वर्षीय बेटे सैयद शाबान बुखारी को अपना जांनशीन बनाने की घोषणा करते हुए कहा गया था कि 22 नवंबर 2014 को दस्तारबंदी की रस्म के साथ उन्हें नायब इमाम घोषित किया जाएगा। विवाद और गहराया जब बुखारी ने खुलासा किया कि इस दस्तारबंदी रस्म में शामिल होने वाले मेहमानों की उनकी सूची में भारत के प्रधानमंत्री का नाम शामिल नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इसमें बुलाया गया है, सैयद अहमद बुखारी का कहना था कि- चूंकि यह उनका निजी कार्यक्रम है और वे किसे दावत में न्यौता भेजेंगे और किसे नहीं यह उनका अपना निर्णय है। जैसा कि अपेक्षित था बुखारी के इस निर्णय को लेकर जबरदस्त विवाद हुआ और इस बहाने सैयद अहमद बुखारी एक बार फिर सुर्खियों में आ गये।
क्या है दस्तारबंदी का मामला?
भावी इमाम बनाने के कार्यक्रम को ही दस्तारबंदी कहते हैं. मौजूदा शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी अपने 19 साल के बेटे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी करना चाहते हैं। यह दस्तारबंदी दिल्ली के जामा मस्जिद में 22 नवंबर को होने जा रही है। 15 नवंबर को शाही इमाम की पदवी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसी याचिका में दस्तारबंदी के कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग की गई। याचिका पर सुनवाई के दौरान 19 नवंबर को केंद्र ने जामा मस्जिद को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया। वहीं ्रस्ढ्ढ ने जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बताया। केंद्र सरकार पहले ही इस दस्तारबंदी को गैरकानूनी बता चुकी है। यह विवाद मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के पोते की याचिका दायर करने के बाद शुरू हुआ है। उन्होंने अपनी याचिका दायर कर विरोध जताते हुए कहा है कि मक्का-मदीना में भी ये रिवाज नहीं है।
