19-Feb-2013 11:13 AM
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भारत के उत्तरी राज्यों में स्वाइन फ्लु से होने वाली मौतों के आंकड़े ने जब 106 की संख्या पार कर ली तो फिर से लोगों के जेहन में हाल ही में इस बीमारी की याद ताजा हो गई। पिछली बार स्वाइन फ्लु के फैलने से सैंकड़ों मौतें हुई थीं। लेकिन बीच में इस बीमारी का प्रकोप घट गया था। भारत जैसी घनी जनसंख्या वाले देश में किसी बीमारी का फैलना बड़ी आपदा का रूप ले सकता है। इसी कारण स्वाइन फ्लु को लेकर चिंता जताई जा रही है, लेकिन इसके बाद भी यह राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में अपने पैर पसार रहा है। राजस्थान में इसका कहर कुछ ज्यादा ही देखने को मिला है। वहां 65 से अधिक मौतें स्वाइन फ्लु के कारण ही हुई है। अकेले जोधपुर शहर में 13 मरीज दम तोड़ चुके हैं और लगभग 200 मरीज स्वाइन फ्लु से संक्रमित हैं यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। सरकार ने फौरी उपाय किए हैं, लेकिन कोई टिकाऊ समाधान सरकार की तरफ से नहीं निकल पाया है। हरियाणा जैसे छोटे राज्य में भी इस बीमारी से 18 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। दिल्ली में 4 मौतें दर्ज की गई हैं, जबकि उत्तरप्रदेश में फिलहाल आंकड़ा 1 पर ही हैं। मध्यप्रदेश में भी एक संदिग्ध मरीज मिला है। बीच में यह कहा जा रहा था कि स्वाइन फ्लु का प्रकोप अब नहीं रहा पर इस

तथ्य में कोई सच्चाई नहीं थी। स्वाइन फ्लु के मामले बीच-बीच में भी सुनाई पड़ते रहे। 100 लोगों से अधिक की मृत्यु के बाद अब सरकार फिर से जागी है और स्वाइन फ्लु के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। स्वाइन फ्लु में शरीर का तापमान बढ़ जाता है अत्यधिक थकान होती है, सिरदर्द होता है, ठंड लग के नाक निरंतर बहती रहती है, गले में खरास, कफ हो जाता है। सांस लेने में तकलीफ के बाद भूख कम लगना मांस पेशियों में बेहद दर्द उठना और पेट की गड़बड़ी इसके प्रारंभिक लक्षण है। इन लक्षणों के दिखते ही डॉक्टर को दिखाया जाना चाहिए। लेकिन आमतौर पर तुरंत जानकारी नहीं मिलने के कारण स्वाइन फ्लु फैलता जा रहा है। सबसे प्रमुख चिंता की बात तो यह है कि स्वाइन फ्लु का टीका पर्याप्त संख्या में अभी तक उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण यह बीमार दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है। टीकाकरण के माध्यम से स्वाइन फ्लू संक्रमण से बचा जा सकता है। लेकिन साधारण फ्लू वैक्सीन से स्वाइन फ्लू का बचाव संभव नहीं है। स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए नैसोवैक नाम का टीका है जो नाक से लिया जाने वाला देसी टीका है। नैसोवैक नाम के इस टीके की 0.5 मि.ली. की एक बूंद एक से दो साल तक व्यक्ति की एच1 एन1 वायरस से रक्षा करेगी। हालांकि यह टीका कुछ खास वर्ग जैसे गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों पर अधिक असर नहीं करेगा जिनमें एच1एन1 से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। फिर भी फ्लू टीके को लेना आसान है और तीन साल से ऊपर के बच्चों और बड़े-बूढ़ों के लिए खास तौर पर उपयोगी है।
नैसोवैक भारतीय वैज्ञानिकों के लंबे रिसर्च और कड़ी मेहनत का परिणाम है। यह टीका न सिर्फ कारगर है बल्कि इसके कोई अतिरिक्त प्रभाव भी नहीं पड़ेंगे। इसके अलावा स्वाइन फ्लू वैक्सीन निरोधी सूई वाला टीका भी आया लेकिन यह बहुत ज्यादा असरकारक नहीं रहा। स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए एक और स्वाइन फ्लू वैक्सीन बनाई गई है जिसका नाम है एचएनवैक ब्रांड। कई परीक्षणों के बाद इस टीके को भी सुरक्षित और उपचार के लिए उपयोगी पाया गया है। स्वाइन फ्लू वैक्सीन में एक नाम वैक्सीफ्लू-एस का भी है हालांकि इस पर अभी परीक्षण जारी है। इसे देसी इन्फ्लूएंजा टीका कहा गया है यह भी स्वाइन फ्लू नियंत्रित करने में अहम टीका है। हालांकि इस टीके का इस्तेमाल 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए है लेकिन बच्चों के लिए अभी इसका गहन निरीक्षण जारी है।