05-Sep-2014 07:42 AM
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बिहार सहित तमाम प्रदेशों के उपचुनावी परिणामों ने कांगे्रस समेत समूचे विपक्ष को संजीवनी प्रदान की है। यूं तो उपचुनाव में बहुधा सत्तासीन दल ही जीता करते हैं और इस कसौटी पर कसा जाए
तो विभिन्न राज्यों में जो परिणाम आए वे न तो विपक्ष के लिए सुखद हैं और न ही सत्ता पक्ष के लिए सुखद। किंतु बिहार में 10 विधानसभाओं के उपचुनावी परिणामों ने नीतिश, लालू और कांगे्रस को मुस्कुराने का अवसर दिया है। इनमें से 6 सीटें भाजपा के पास थीं इसलिए भाजपा को 2 सीटों का नुकसान हुआ है। यह नुकसान एक तरह से भाजपा के लिए कोई बड़ा नुकसान नहीं है क्योंकि इससे पहले विधानसभा चुनाव के समय भाजपा और जनता दल यूनाइटेड ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस दृष्टि से दोनों दलों की संयुक्त ताकत में से जनता दल यूनाइटेड को अलग किया जाए तो भाजपा को मात्र 2 सीटों का ही नुकसान हुआ है। पासवान की पार्टी भाजपा के साथ अवश्य थी लेकिन लालू यादव के मुकाबले पासवान उतने प्रभावी सहयोगी नहीं हैं। इसीलिए लालू और नीतिश के साथ कांग्रेस के तालमेल ने गठबंधन को फायदा पहुंचाया पर प्रश्र वही है कि यह फायदा कितने दिनों तक जारी रहेगा?
इस गठबंधन के नेपथ्य में लालू और नीतिश की 20 वर्ष तक चली दुश्मनी और भाजपा तथा नीतिश का 17 वर्ष तक चला याराना भी है। इसलिए इस जीत के आधार पर समूचे परिदृश्य का अंदाज लगाना नादानी ही होगी। फिर भी जीत का अंतर कहीं न कहीं यह कह रहा है कि भाजपा के खिलाफ लालू, नीतिश और कांग्रेस की लामबन्दी असरकारी रही है और इसका असर तब तक कायम रहेगा जब तक यह एकता बरकरार रहेगी। किंतु उपचुनाव में मात्र 10 सीटें दांव पर लगी थीं। कांग्रेस के पास इनमें से एक भी सीट नहीं थी, भाजपा के पास 6 सीटें थीं, जनता दल यूनाइटेड के पास मात्र 1 सीट थी और राजद के पास 3 सीटें थीं। कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली है और यह जीत गठबंधन की देन है। लेकिन विधानसभा चुनाव में परिदृश्य भिन्न होगा। विधानसभा चुनाव के समय 10 वर्ष की एंटी इंकम्बैंसी भी कहीं न कहीं असर दिखाएगी और जो भी दल सत्तासीन दल से जुड़ेगा उसे भी इस असर का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि भाजपा उपचुनाव में यादवी वोटों का बंटवारा करने में कामयाब रही है। हाजीपुर मेें 1969 के बाद पहली बार गैर यादव उम्मीदवार जीता है। यहां भाजपा के अवधेश सिंह को जीत मिली है। विधानसभा चुनाव तक भाजपा राज्य में एक ऐसा यादव नेता तैयार करना चाहेगी जो लालू यादव के प्रभाव को कम कर सके। भाजपा की रणनीति विधानसभा चुनाव में यादव, पिछड़ों और मुस्लिमों को विभाजित रखने तथा सवर्णों और महादलितों को अपने पक्ष में रखने की रहेगी। इसका असर तभी दिख सकता है जब भाजपा अपनी रणनीति में सफल रहे। फिलहाल भाजपा जनता दल यूनाइटेड और राजद के स्थानीय नेताओं को तोडऩे में लगी है उधर महागठबंधन में 4 सवर्ण प्रत्याशी जिताकर लालू-नीतिश ने संदेश दिया है कि उन्हें सवर्णों से परहेज नहीं है। इस प्रकार देखा जाए तो दोनों ही गठबंधन एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं।
जहां तक कांग्रेस का प्रश्र है वह बिहार जैसे राज्यों मेेें इतनी नीचे जा चुकी है कि बगैर सहारे के जीतना उसके लिए संभव नहीं है। लेकिन पंजाब, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में उपचुनाव की जीत उत्साह वर्धक है। वर्ष 2008 के बाद पहली बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने कोई उपचुनावी विजय हांसिल की है। मध्यप्रदेश में तो अभी भी वह मुख्य विपक्षी पार्टी है जबकि कर्नाटक में उसकी सत्ता है और पंजाब में लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन अपेक्षाकृृत संतोषप्रद रहा है। किंतु असल चुनौती तो बिहार जैसे बड़े राज्यों में है। यहां कांग्रेस के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है जो उसे पुनर्जीवित कर सके। कांग्रेस इसीलिए जीत का जश्र नहीं मना रही है। उसे अपने भविष्य की फिक्र है और राजनीति के जानकार यह अच्छी तरह जानते हैं कि कांगे्रस जदयू और राजद के सहारे तो अपनी खोई प्रतिष्ठा नहीं पा सकती। उसे देर सवेर इन दलों से अलग होकर अपनी पहचान बनानी होगी अन्यथा कांगे्रस बिहार में शून्य हो जाएगी।
बिहार (कुल सीटें 10)
भाजपा 4 (-2)
राजद 3 (0)
जदयू 2 (+1)
कांग्रेस 1 (+1)
मध्यप्रदेश (3 सीटें)
भाजपा 2 (0)
कांग्रेस 1 (0)
कर्नाटक (3 सीटें)
कांग्रेस 2 (+1)
भाजपा 1 (-1)
पंजाब (2 सीटें)
अकालीदल 1 (+1)
कांग्रेस 1 (-1)
RK Binnani