21-Jun-2014 04:34 AM
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फरवरी 2013 में जब अहमदाबाद की
साबरमती जेल में 18 फीट लंबी सुरंग मिली तो देश की खुफिया एजेंसियां सकते में आ गईं। गुजरात ही नहीं बल्कि भारत की सबसे सुरक्षित और सबसे बड़ी जेलों में से एक साबरमती जेल में 18 फीट लंबी सुरंग खोद ली गई और जेल प्रशासन को पता भी नहीं चला। लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य यह था कि उस समय सुरंग खोदने वालों तक पहुंचने में खुफिया एजेंसियां नाकाम रहीं। 24 लोगों को गिरफ्तार किया गया लेकिन उनसे कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी।
हाल ही में जब सिमी के महत्वपूर्ण मास्टर माइंड इरफान नागौरी को पकड़ा गया तो पता चला कि साबरमती जेल में सुरंग खोदने की घटना के तार मध्यप्रदेश से भी जुड़े हुये हैं। अक्षरधाम हमले सहित तमाम हमलों को अंजाम देने वाला आतंकी सफदर नागौरी और उसके कई साथी साबरमती जेल में बंद हैं। इनको छुड़ाने के लिये ही वह सुरंग खोदी जा रही थी। पूछताछ में इरफान नागौरी ने बताया है कि योजना यह थी कि जेल की दीवार तक सुरंग खोदी जायेगी और जेल की दीवार के नीचे एलईडी बम लगाकर उसे उड़ा दिया जायेगा। बाद में भोपाल से गाड़ी लेकर पहुंचे आतंकवादी साबरमती जेल के आतंकियों को बचा ले जायेंगे।
18 फीट लंबी यह सुरंग बैरक नंबर 4 से खोदी जा रही थी पर किसी की नजर पडऩे से सुरंग का भंडाफोड़ हो गया और पांच-छह महीने में खोदी गई सुरंग देख ली गई। गुजरात पुलिस ने साजिश करने वाले 24 लोगों को गिरफ्तार किया था पर वे मास्टर माइंड तक नहीं पहुंच सके।
जब मध्यप्रदेश एटीएस ने गिरफ्तार सिमी आतंकवादियों से पूछताछ की तो आतंकवादियों ने इस हमले का ब्लू प्रिंट भी एसटीएफ को सौंपा। सिमी सहित तमाम आतंकी संगठनों पर पुलिस का दाव चलने के कारण पटना बम ब्लास्ट का मुख्य आरोपी हैदर अली अपना अलग ग्रुप बनाना चाहता था। इसमें वह उन लोगों को शामिल करने का इच्छुक था जो मध्यप्रदेश से भागने में कामयाब रहे थे। वह पांच लोगों को लेकर नया आउटफिट बनाने के चक्कर में था पर उसका भंडाफोड़ हो गया। इससे पता चलता है कि सिमी का जाल नये-नये नामों से फैलता जा रहा है। भोपाल में मणप्पुरम गोल्ड फायनेंस के दफ्तर में डकैती डालने के बाद सिमी आतंकियों की निशानी पर हनुमानगंज पुलिस ने साढ़े छह लाख रुपये का सोना बरामद किया था। डकैती के तीन आरोपियों अबु फैजल, शेख इकरार और ऐजाजुद्दीन ने महाराष्ट्र में अकोला और भुसावल में लूटा गया सोना बेचने की बात कही थी। उस वक्त साफ हो चला था कि सिमी का जाल घना हो चुका है।
खुफिया एजेंसियों का भी यह मानना है कि सिमी देश में कार्यरत अनेक मुस्लिम चरमपंथी संगठनों के साथ मिलकर काम ही नहीं कर रहा है वरन उनके साथ मिलकर नेटवर्क को और अधिक व्यापक बना रहा है। यह खुलासा में इन्दौर से पकड़े गये सिमी के 13 सदस्यों में से एक अमील परवेज के साथ पुलिस की पूछताछ के दौरान हुआ। परवेज ने बताया कि सिमी के हैदराबाद स्थित चरमपंथी संगठन दर्सगाह जिहादो शहादत के साथ के साथ काफी निकट से सम्बद्ध है और इसके साथ मिलकर काम कर रहा है। परवेज ने पुलिस को बताया कि उसने 2007 में दो प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया था और इन शिविरों में अनेक कठिन प्रशिक्षण दिये गये जिनमें चाकू छूरी चलाने से लेकर पेट्रोल बम बनाने तक का प्रशिक्षण था। 1997 में अलीगढ में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसकी अध्यक्षता सिमी के तत्कालीन अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही ने की थी और उस सम्मेलन में परवेज के साथ 20 वर्षीय फिलीस्तीनी मूल के हमास नामक फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठन के सदस्य शेख सियाम ने भी भाग लिया था। परवेज ने पूछताछ के दौरान यह भी स्पष्ट किया है कि 2001 में इस संगठन पर प्रतिबन्ध लग जाने के बाद भी किस प्रकार यह सक्रिय रहा और अपनी गतिविधियाँ चलाता रहा।
परवेज के अनुसार काफी सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद सफदर नागौरी और नोमन बद्र ने इस संगठन को नये सिरे से खडा किया। परवेज के अनुसार नगौरी ने उससे कहा कि वह प्रतिबन्ध हटवाने का पूरा प्रयत्न करेगा और इस आन्दोलन को समाप्त नहीं होने देगा। इन्दौर में पकडे गये सिमी के सदस्यों ने देश के समक्ष अनेक प्रश्न खडे कर दिये हैं। 2001 में प्रतिबन्ध लगने के बाद भी यह संगठन कभी निष्क्रिय नहीं हुआ और देश में हुई बडी आतंकवादी घटनाओं में इसका हाथ रहा है या इसी संगठन ने उन्हें अंजाम दिया है। सिमी का नेटवर्क दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत के अनेक प्रांतों में फैल चुका है। इससे तो यही संकेत मिलता है कि ऐसे संगठनों को रोकने की इच्छा शक्ति का अभाव है।