21-Jun-2014 04:34 AM
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मध्यप्रदेश में ओलावृष्टि और आंधी-तूफान ने हजारों हैक्टेयर फसल तबाह कर दी। लेकिन फिर भी यह प्रदेश बंपर पैदावार करने में सफल रहा है। सुनने में यह बड़ा अजीब लगता है आंकड़ों पर ध्यान दें तो यही प्रतीत होता है कि प्रदेश में तबाही के बावजूद बंपर पैदावार का कमाल हो चुका है। एक तरफ मुआवजा और दूसरी तरफ भारी मात्रा में गेहूं की खरीदी। यह विरोधाभास कैसे संभव हुआ कहा नहीं जा सकता। लेकिन ओलावृष्टि जैसी आपदाओं के जो आंकड़े दिये जा रहे हैं उनसे तो यही जाहिर होता है कि प्रदेश की अधिकांश पैदावार खराब हो चुकी है। उसके बाद भी बंपर पैदावार उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात सहित तमाम सीमावर्ती राज्यों से तो आयातित नहीं है? आम तौर पर ऐसा होता आया है कि सीमावर्ती राज्यों के किसान मध्यप्रदेश में गेहूं बेच जाते हैं क्योंकि यहां गेहूं का समर्थन मूल्य कई बार अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा रहता है। बहुत से किसान भी सीमावर्ती राज्यों से गेहूं खरीद कर मध्यप्रदेश में बेच देते हैं क्योंकि उन्हें गेहूं की बिक्री पर बोनस भी दिया जाता है। बोनस का लालच ही मध्यप्रदेश के बंपर क्रॉप के आंकड़े को बढ़ाता रहता है। लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। हाल ही में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद में करोड़ों रुपये का घोटाला भी सामने आया है। करीब सवा लाख क्विंटल गेहूं गोदामों से नदारत था। इस गेहूं के एवज में किसानों को 1285 रुपये क्विंटल का समर्थन मूल्य और 150 रुपये प्रति क्विंटल बोनस भी दिया जा चुका था। किसानों से अनाज खरीदे बगैर ही यह भुगतान कर दिया गया। बाद में प्रमुख सचिव अजीत केसरी ने पूरे मामले की रिपोर्ट भी तलब की थी। वर्ष 2013 में 63 लाख टन का गेहूं खरीदा गया था। इसमें से सवा लाख टन गेहूं नागरिक आपूर्ति निगम के गोदामों तक नहीं पहुंचा। समर्थन मूल्य के हिसाब से इस गेहूं की कीमत 17 करोड़ रुपये से ज्यादा है। होशंगाबाद-हरदा में तो खरीदी केंद्रों में व्यवस्था के नाम पर करोड़ों रुपए फूंक दिए गए बल्कि सीजन खत्म होने के बाद भी साख सीमा से राशि निकाल ली गई। गायब गेहूं का पता लगाने सहकारिता विभाग ने जांच दल बनाए पर नतीजा सिफर ही रहा है। इस बार भी कमोबेश यही स्थिति बन रही है। रायसेन की बगलवाड़ा सोसायटी के रिमाडा केंद्र पर 7400 क्विंटल गेहूं का खरीदे बिना ही भुगतान कर दिया। योजनाबद्ध तरीके से घोटाले को अंजाम दिया गया। इसमें नागरिक आपूर्ति निगम, सहकारी बैंक और समिति पदाधिकारी तक शामिल हैं। घोटाले की जांच की भनक लगते ही सोसायटी के सभी लोग रिकार्ड समेत गायब हो गए। जब तक रिकार्ड नहीं मिलेगा तब तक ये पता नहीं लगाया जा सकता है कि किस किसान के खाते में पैसा डालकर खेल किया गया।
सूत्रों का कहना है कि पिछले साल भी प्राकृतिक मार पडऩे से गेहूं की खरीदी तो कम हुई पर घोटाले में कोई कमी नहीं आई। होशंगाबाद और हरदा में करीब 65 हजार क्विंटल, दतिया में 23 हजार, रायसेन में 35 हजार, श्योपुर में 27-28 हजार और जबलपुर में 32 हजार क्विंटल के करीब खरीदा गया गेहूं नागरिक आपूर्ति निगम के गोदामों तक नहीं पहुंचा।
खरीदी का आंकड़ा बढ़ा
रोड़ वर्ष 2013-14 में 895672 किसानों से 6353322 गेहूं खरीदा गया था जबकि इस वर्ष औला वृष्टि के बावजूद 982931 किसानों से 7195737 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया लगभग 8.5 मीट्रिक टन ज्यादा। रायसेन, हरदा, होशंगाबाद जैसे जिलों में भी भारी खरीददारी की गई। होशंगाबाद में सर्वाधिक 614681 टन गेहूं खरीदा गया। ?
2000 करोड़ से ज्यादा का मुआवजा
- प्रदेश में माह जनवरी से मार्च 2014 के दौरान हुई ओलावृष्टि से 49 जिलों की 311 तहसीलों के 27155 ग्रामों के 31.86 लाख कृषकों का 29.19 लाख हेक्टेयर रकबा प्रभावित हुआ।
- जिला कलेक्टरों की आवंटन की मांग के अनुक्रम में प्रभावित कृषकों को फसल क्षति के लिए राहत राशि प्रदान करने हेतु राहत मद से राशि रू. 2150.47 करोड़ का आवंटन जिला कलेक्टरों को उपलब्ध कराया गया।
- प्रदेश में ओलावृष्टि से 8 जनहानि, 1075 पशुहानि तथा 38512 मकान क्षति भी हुई। जिसके लिए जिला कलेक्टरों को कुल सहायता राशि रू 14.35 करोड़ की राशि प्रभावितों को वितरण हेतु उपलब्ध कराई गई।
- अब तक ओलावृष्टि से प्रभावित सभी जिलों में प्रभावित व्यक्तियों को 98.20 प्रतिशत राहत राशि का भुगतान किया जा चुका है।
31.86 लाख कृषकों को रू. 2103.98 करोड़ की राहत राशि ई-पेमेन्ट एवं सहकारी बैंकों के माध्यम से सीधे प्रभावितों के खातों में जमा कराई गई।