जीवन फूलों की सेज नहींकैसे सपना उतरे आंखो मेंजब नींद ही किरचें बोती हैजीवन फूलों की सेज नहींकांटो की कठिन चुनौती हैतम की खातिर पास मेरेमुठ्ठी भर बस ज्योति हैतार तार तर दामन यूं हीबरखा भी क्यूं भिगोती हैजहाँ कहीं से गुज़रुंगा मैंवो खड़ी वहीं पर होती हैजिसे देख के मैं लिखता हूँपिए चांदनी वो सोती हैललित कुमार