06-Nov-2013 07:13 AM
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दीपावली पर छोड़े जाने वाले पटाखे अब हमारे देश की जलवायु को बुरी तरह प्रभावित करने लगे हैं। पहले कभी जब भारत की आबादी लाखों में हुआ करती थी उस वक्त आतिशबाजी भी कुछ गिने-चुने लोग कर पाते थे। बाकी तो केवल दर्शन ही

करते थे। लेकिन आज आर्थिक स्तर बढऩे से हर व्यक्ति बढ़-चढ़कर आतिशबाजी करता है और करोड़ों लोग अरबों रुपए के पटाखे जला देते हैं। इससे पैसे की बर्बादी तो होती ही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है पर्यावरण को। ध्वनि और वायु प्रदूषण दीपावली पर बेतहाशा बढ़ जाता है। जो कई बीमारियों का कारण है।
दीवाली के बाद अस्पतालों में अचानक 20 से 25 प्रतिशत ऐसे मरीजों की संख्या में वृद्धि हो जाती है जिसमें अधिकतर लोग सांस संबंधी व अस्थमा जैसी समस्या से पीडि़त होते हैं। हर साल विश्व में 2 से चार लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। वातावरण में धूल व धुएं के रूप में अति सूक्ष्म पदार्थ मुक्त तत्वों का हिस्सा होता है, जिसका व्यास 10 माइक्रोमीटर होता है, यही वजह है कि यह नाक के छेद में आसानी से प्रवेश कर जाता है, जो सीधे मानव शरीर के श्वसन प्रणाली, हृदय, फेफड़े को प्रभावित करता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे बच्चे और अस्थमा के मरीजों पर होता है। धुंध (स्मॉग) की वजह से शारीरिक परिवर्तन से लेकर सांस फूलना, घबराहट, खांसी, हृदय व फेफड़ा संबंधी दिक्कतें, आंखों में संक्रमण, दमा का अटैक, गले में संक्रमण आदि की परेशानी होती है। इसकी वजह से दवाओं के उपयोग में वृध्दि होती है। वायु की खराब गुणवत्ता के प्रभाव दूरगामी साबित होता है। वायु प्रदूषण की व्यक्तिगत प्रतिक्रिया उस प्रदूषक पर, उस की मात्रा पर, व्यक्ति के स्वास्थ्य और अनुवांशिकी स्थिति पर भी निर्भर करता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार दीपावली के दौरान आतिशबाजी के कारण दिल का दौरा, रक्तचाप, दमा, नाक की एलर्जी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे बढ़ जाते हैं। इसलिए दमा एवं दिल के मरीजों को दीपावली के मौके पर खास तौर सावधानियां बरतनी चाहिए। आम तौर पर दीपावली के बाद इन बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की संख्या दोगुनी हो जाती है। इस त्योहार पर जलने, आंखों को गंभीर क्षति पहुंचने और कान का पर्दा फटने, दिल का दौरा पडऩे, सिर दर्द, अनिद्रा और उच्च रक्तचाप जैसी घटनाएं बहुत होती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लोगों से खास तौर पर तेज आवाज वाले पटाखे चलाने से परहेज करने और दमे तथा दिल के मरीजों को पटाखों से दूर रहने की सलाह दी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार दिल्ली में पटाखों के कारण दीपावली के बाद वायु प्रदूषण छह से दस गुना और आवाज का स्तर 15 डेसिबल तक बढ़ जाता है। इससे सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। तेज आवाज वाले पटाखों का सबसे ज्यादा असर बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा दिल और सांस के मरीजों पर पड़ता है। पटाखों से निकलना वाला धुआं रसायन और गंध दमा के मरीजों के लिए घातक साबित होता है। दिल और दमा के मरीजों के लिए दीपावली का समय न केवल पटाखों बल्कि अन्य कारणों से भी मुसीबत भरा होता है। दीपावली से पहले अधिकतर घरों में सफाई की जाती है और रंग, रोगन कराया जाता है लेकिन रंग की गंध तथा घरों की मरम्मत और सफाई से निकलने वाली धूल दमा के रोगियों के साथ सामान्य लोगों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है।
मनुष्य के लिए 60 डेसिबल की आवाज सामान्य होती है। इससे 10 डेसिबल अधिक आवाज की तीव्रता दोगुनी हो जाती है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए घातक होती है। दुनिया के कई देशों में रंगारंग आतिशबाजी करने की परंपरा है। आकाश को जगमग करने के लिए बनाए जाने वाले पटाखों में कम से कम 21 तरह के रसायन मिलाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि 20 मिनट की आतिशबाजी पर्यावरण को एक लाख कारों से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।
बिना प्रदूषण वाले पटाखे
दीपावली पर इस बार लोग बिना किसी जोखिम व प्रदूषण के आतिशबाजी का पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। अन्य उत्पादों के बाद अब बाजारों में चाइनीज पटाखे की धूम मची हुई है। कम जोखिम भरे इन पटाखों से जेब पर भार भी कम ही पड़ता है। बाजारों में इस आतिशबाजी की विभिन्न रेंज उपलब्ध हैं। इनमें से दागा पटाखे, उडऩे वाली तितली, तीन से छह शॉट वाले पटाखे, कैप्सूल व पार्टी बम और दस पटाखों की लड़ी समेत अन्य पटाखे बच्चों को खूब लुभा रहे हैं। इन पटाखों की विशेषता यह है कि इन्हें छोडऩे में न तो कोई जोखिम है और न ही प्रदूषण।