गुजरात में परमाणु संयंत्र का विरोध
02-Oct-2013 11:04 AM 1234917

गुजरात के किसानों ने भाव नगर जिले में बनने वाले मिथिविर्दी परमाणु संयंत्र का विरोध शुरू कर दिया है। किसानों ने उस 877 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ विरोध दर्ज कराया है जो इस छह हजार मेगावाट परियोजना के लिए ली जा रही है। यह परियोजना न्यूक्लिीयर पॉवर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) द्वारा स्थापित की जाएगी। इस परियोजना के लिए रिएक्टर की आपूर्ति अमेरिका की वेस्टिंगहाउस पॉवर कंपनी द्वारा किए जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि वे इस जहरीले उद्योग के लिए अपनी कीमती और उपजाऊ जमीन नहीं देंगे।
यह पहला मौका नहीं है जब परमाणु संयंत्रों के विरोध में किसी प्रदेश की जनता खड़ी हो गई है बल्कि जापान में फुकुशिमा की घटना के बाद जनता में परमाणु संयंत्रों को लेकर संशय बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि देशभर में परमाणु संयंत्रों को लगाने का विरोध हो रहा है। परमाणु संयंत्रों को उन सभी जगहों पर विरोध का सामना करना पड़ा है, जहां वे प्रस्तावित हैं या लगने की प्रक्रिया में हैं। जैतापुर, हरियाणा के फतेहाबाद, मध्य प्रदेश के चुटका, गुजरात के भावनगर और आंध्र के कोवाडा में परमाणु संयंत्र लगाए जाने का व्यापक विरोध हुआ है। विरोध प्रदर्शनों की इसी श्रृंखला में परमाणु संयंत्रों का एक बार फिर विरोध स्थल बना है, गुजरात का मिथिववर्दी तमिलनाडु में भी विरोध हुआ है। कूडनकुलम में परमाणु परियोजना की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी, इस परियोजना को लेकर उसी समय स्थानीय लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया था। जिसे सरकार ने नजरंदाज करने का प्रयास किया था, परिणामस्वरूप सन 1989 में प्रभावित क्षेत्र के दस हजार मछुआरों ने कन्याकुमारी में प्रदर्शन किया था। सोवियत रूस के विघटन के बाद ऐसा लगा कि यह परियोजना सफल नहीं हो पाएगी, परंतु सन 1998 में इसको फिर से शुरू किया गया और विरोध प्रदर्शनों की भी एक बार फिर शुरुआत हो गई। इस परियोजना को लेकर स्थानीय निवासियों का विरोध सन 1998 से अनवरत जारी है।
ऐसे कई सवाल और समस्याएं हैं, जो इन परमाणु बिजली परियोजनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं। केवल 3 प्रतिशत बिजली आपूर्ति देने वाली बेहद खर्चीली परमाणु योजनाएं देश के हित में योगदान कर पाएंगी, इस पर भी संशय है। ऐसे में परमाणु परियोजनाओं के विरूद्ध जारी जनसंघर्ष अपनी लड़ाई लडऩे के साथ ही सरकार की नीतियों को आईना दिखाने का कार्य भी कर रहे हैं। अंतत: केन्द्र और प्रदेश सरकारों को भी अपना दमनकारी रवैया छोड़कर जनहित में अपनी इन घातक परियोजनाओं पर पुर्नविचार करते हुए ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों की ओर बढऩा चाहिए। भारत जैसे देश में सौर उर्जा की न्यूनतम क्षमता 400,000 मेगावाट है। पवन ऊर्जा के पुराने संयंत्रों को बदलकर उसकी क्षमता छ: गुना तक बढ़ायी जा सकती है। भारत का समुद्री तट लगभग 7000 किमी का है और व्यापक स्तर पर ज्वारीय ऊर्जा के विकास की सम्भावना को विकसित किया जा सकता है। भूकम्पीय उर्जा आदि में भी अनुसंधान किये जा सकते हैं। पिछले 15 वर्षों में भारत ने 17,000 मेगावाट वैकल्पिक उर्जा जोड़ी है जिसे चीन ने मात्र 1 वर्ष में पूरा कर लिया, दूसरी तरफ भारत में पूँजीवादी विकास मॅाडल द्वारा ऊर्जा की भयंकर बर्बादी की जाती है तमाम भवनों की डिजाइन ठीक रखकर प्राकृतिक प्रकाश से काम चलाया जा सकता है। शॅापिंग मॉल, आई.टी. कम्पनियाँ और तमाम सरकारी एवं निजी प्रतिष्ठान दिन रात ऊर्जा बर्बाद करते हैं। भारत में कुल ऊर्जा उत्पादन का लगभग 40 फीसदी बर्बाद हो जाता है। अगर दक्षता 90 फीसदी तक बढ़ायी जा सके तो 60,000 मेगावाट बिजली बचाई जा सकती है जो कुडनकुलम जैसे 60 रिएक्टरों के बराबर होगी। यदि लैम्पों को बदलकर दक्ष व कम खपत वाले लैम्प लगाये जाएँ तो 2000 मेगावाट ऊर्जा बचाई जा सकती है। लेकिन वैकल्पिक ऊर्जा के विकास एवं उर्जा बचत से मुनाफे की व्यवस्था और परमाणु ऊर्जा के राजनीतिक अर्थशास्त्र में बाधा पैदा होगी। आज विज्ञान एवं अनुसन्धान उसी दिशा में बढ़ाया जायेगा जिससे पूँजी का हित सुरक्षित हो न कि आम आदमी का। भाव नगर में बनने वाले इस प्लांट के लिए सरकार ने किसानों को कई तरह के प्रलोभन भी दिए हैं। जिसके बहकावे में कुछ किसान आ भी गए हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा अभी भी विरोध कर रहा है। आने वाले दिनों में यह विरोध और तेज हो सकता है, लेकिन जिस तरह सरकार इसे बनाने के लिए संकल्पित है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस विरोध का कोई असर नहीं पड़ेगा।

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