बोरिस की चुनौतियां
02-Jan-2020 07:55 AM 1235122
ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी को जोरदार बहुमत मिला है और तीन सौ चौंसठ सीटें जीत कर बोरिस जॉनसन ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। कश्मीर को लेकर भारत को परेशान करने वाली लेबर पार्टी को इस बार संसदीय चुनाव में भारी झटका लगा है और उसे पिछले चुनाव से उनसठ सीटें कम मिलीं। ब्रेग्जिट को लेकर बोरिस जॉनसन के स्पष्ट रवैये ने उन्हें अच्छी जीत दिलाई, जबकि लेबर पार्टी का नजरिया इस मुद्दे पर ढुलमुल शुरू से ही ढुलमुल रहा है। यही कारण रहा कि लेबर पार्टी अपनी कई पारंपरिक सीटें भी गवां बैठी। हालांकि शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर उनकी नीति स्पष्ट थी। चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें इस कारण कुछ बढ़त मिलती दिखी, लेकिन ब्रिटेन में सक्रिय मजबूत दक्षिणपंथी लॉबी उनकी सफलता में बाधा बन गई। लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन पर आरोप लगे कि वे यहूदी विरोधी हैं, उनकी पार्टी में यहूदियों के खिलाफ ब्यानबाजी होती रही और उन्होंने चुप्पी साध ली। लेबर पार्टी की कश्मीर नीति को लेकर भारतीय मूल के मतदाताओं में भी कुछ नाराजगी थी। कंजरवेटिव पार्टी की भारी जीत का बड़ा कारण ब्रेग्जिट मुद्दे पर पार्टी का स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है। इसलिए अब उम्मीद की जा रही है कि इस जोरदार जीत के बाद ब्रिटेन अब आराम से यूरोपीय संघ से बाहर हो जाएगा। दरअसल, ब्रिटेन यूरोपीय संघ छोड़ेगा तो उसकी अर्थव्यवस्था तो प्रभावित होगी ही, यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था भी सिकुड़ेगी। इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोपीय संघ की भागीदारी बाईस फीसद है। इससे अगर ब्रिटेन इससे बाहर हो गया तो विश्व अर्थव्यवस्था में यूरोपीय संघ की भागीदारी घट कर अठारह प्रतिशत रह जाएगी। यही नहीं, यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था में जनसंख्या के लिहाज से भी गिरावट आएगी। यूरोपीय संघ की कुल जनसंख्या में से ब्रिटेन की आबादी बाहर हो जाने से यूरोपीय संघ की कुल आबादी में तेरह प्रतिशत की गिरावट आएगी। इस समय यूरोपीय संघ की जनसंख्या पचास करोड़ है, जिसमें ब्रिटेन की जनसंख्या की भागीदारी साढ़े छह करोड़ है। दरअसल, ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद सबसे ज्यादा लाभ जर्मनी और फ्रांस को होगा। यूरोपीय संघ की जीडीपी में जर्मनी की भागीदारी बीस से बढ़कर पच्चीस प्रतिशत हो जाएगी, जबकि फ्रांस की यूरोपीय संघ की जीडीपी में भागीदारी पंद्रह से बढ़ कर अठारह प्रतिशत हो जाएगी। इस समय ब्रिटेन यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था में लगभग उन्नीस अरब यूरो का योगदान करता है। यूरोपीय संघ के निकलने के बाद ब्रिटेन के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी। नए व्यापारिक सहयोगी तलाशने होंगे। हालांकि अमेरिका ने ब्रिटेन से मजबूत व्यापारिक रिश्ते कायम करने का वादा किया है। ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के लोगों को उम्मीद है कि भारत और ब्रिटेन के बीच भी द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध ब्रेग्जिट के बाद मजबूत होंगे। हालांकि बोरिस जॉनसन और उनकी कंजरवेटिव पार्टी की जीत से ब्रिटेन में मौजूद अल्पसंख्यक मुसलमानों में भय है। बोरिस अपने मुस्लिम विरोध के लिए माने जाते हैं। उनकी जीत पर ब्रिटेन में मौजूद मुस्लिम संगठनों ने खासी निराशा जताई है। कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने जॉनसन की जीत को ब्रिटेन के अल्पसंख्यकों के लिए काला दिन बताया। जॉनसन की जीत से मुसलमान इस कदर निराश हैं कि खुद कंजरवेटिव पार्टी से जुड़ी पाकिस्तानी मूल की पूर्व ब्रिटिश मंत्री सईदा वारसी ने कहा कि उनकी पार्टी को ब्रिटिश मुसलमानों के जख्मों को भरने की शुरुआत तुरंत करनी चाहिए। दरअसल, पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में हुए आतंकी हमलों ने वहां के सामाजिक तानेबाने को भारी नुकसान पहुंचाया है। ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तान मूल के मुसलमान हैं। ये दशकों पहले ब्रिटेन पहुंचे थे। आज ब्रिटेन की राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक में इनका योगदान है। लेकिन पिछले कुछ सालो में ब्रिटेन में घटी घटनाओं ने ब्रिटिश मुसलमानों को परेशान किया है। पिछले तीन-चार साल मे इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकी संगठनों के हुए हमलों के कारण ब्रिटेन में सामाजिक दुराव बढ़ा है। इन सबकी तरफ बोरिस को ध्यान देना होगा। भारतीयों का दिखा दम इस चुनाव में भारतीय मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व भी बढ़ा है। इस बार कंजरवेटिव पार्टी के जीतकर आए भारतीय मूल के सांसदों की संख्या पांच से बढ़ कर सात हो गई है। लेबर पार्टी से भी भारतीय मूल के सात लोग जीते हैं। निश्चित तौर पर ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की वहां की राजनीति में अहमियत बढ़ी है। लेकिन यह कहना गलत होगा कि भारतीय मूल के लोगों ने कंजरवेटिव पार्टी और बोरिस जॉनसन को एकतरफा समर्थन दिया। दरअसल जिन इलाकों में भारतीय लोगों का जमावड़ा था, वहां पर लेबर पार्टी को खास नुकसान नहीं हुआ। ज्यादातर भारतीय मूल के लोग ब्रेडफोर्ड, लिस्टर, लंदन, बर्मिंघम जैसे शहरों में रहते हैं। इन सभी जगहों पर लेबर पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। हां, यह सच्चाई है कि लेबर पार्टी ने कश्मीर को लेकर एक अलग रुख अख्तियार कर रखा था, इससे भारतीय मूल के लोगों में नाराजगी थी। कई चुनावी क्षेत्रों में भारत और पाकिस्तानी मूल के मतदाता कश्मीर को लेकर स्पष्ट रूप से विभाजित थे। पाकिस्तानी मूल के मतदाताओं की राय थी कि कश्मीर में भारत ने अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को हटा कर गलत किया था, जबकि भारतीय मूल के मतदाताओं ने इसे सही कदम करार दिया। ब्रिटेन में मौजूद गुजराती समाज लेबर पार्टी से नाराज था। उन्होंने जरूर अपना समर्थन लेबर पार्टी के बजाय कंजरवेटिव पार्टी को दिया। कंजरवेटिव पार्टी की जीत के बाद भारत और ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंध पहले की तरह ही रहने की संभावना है। - अक्स ब्यूरो
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