नेताजी का स्वर्गवास
18-Nov-2019 07:49 AM 1235446
नारद जी पृथ्वी पर भ्रमण करने के बाद नारायण! नारायण!! उच्चारण करते हुए विष्णु लोक पधारे ,तो उनके हाथ में पंद्रह -बीस पृष्ठों का एक पुलिंदा -सा देख भगवान विष्णु ने पूछा - अरे ! नारद जी ,यह तुम्हारे हाथों में क्या है ?’ नारद जी बोले -नारायण! नारायण!! अभी - अभी मैं एशिया महाद्वीप के एक देश भारत से आ रहा हूं। एक अख़बार विक्रेता से जिज्ञासा वश ये पुलिंदा ले आया। वहां के लोग इसे अख़बार, समाचार पत्र, न्यूज़ पेपर जैसे नामों से संबोधित करते हैं।’ विष्णु भगवान पूछने लगे - आपने इसे पढ़ा कि इसमें क्या लिखा है?’ नारायण! नारायण!! चलते-चलते थोड़ा शीर्षकों पर दृष्टिपात किया था। सबसे ऊपर के पृष्ठ पर बड़े- बड़े अक्षरों में लिखा देखा कि वहां के किसी राजनेता मंत्री का स्वर्गवास हो गया है।’ ये भारत के अखबार वाले भी असम्भव, मिथ्या और कपोलकल्पित समाचार अपने मन से छाप देते हैं। भला ये भी कोई बात हुई कि कोई नेता स्वर्ग में प्रवेश भी कर सके? यह तो सर्वथा झूठ और चापलूसी भरा छद्म समाचार है। नेताओं के पास मात्र शोषण, अन्याय, झूठ, कपट, बेईमानी, अत्याचार, के अतिरिक्त भी कोई काम है? हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य दुष्कर्म इन्हीं की छाया तले होते हैं। ये स्वयं करते हैं और अपने पालतू गुर्गों से कराते हैं। ये सच्चे अर्थों में इन्हीं के नेता हैं, जननेता नहीं हैं। अपने आतंक और बाहुबल से डरा धमका कर वोट बटोरने की कला में कुशल ये सभी राजनेता कोई भी दूध का धुला नहीं है। जिसके दामन पर कोई दाग नहीं, वह नेता हो नहीं सकता। अन्याय और अन्य आय पर निर्भर न हो, वह नेता हो नहीं सकता।।’ विष्णु भगवान ने नारद जी को बताया। नारायण! नारायण!! प्रभुजी आप एकदम सही कहते हैं।-नारद जी ने समर्थन करते हुए अपना मत व्यक्त किया। केवल झूठा सम्मान देने के लिए इन्हें स्वर्गवासी छाप दिया जाता है। ऐसा तो किसी बुरे से बुरे नेता के लिए नहीं लिखा या कहा जाता कि अमुक नेताजी नरकवासी हो गए। स्वर्गवासी लिखना तो मात्र एक ढर्रा है, लकीर पीटना है। अपने जीवन में जितने पाप और दुष्कर्म जितने एक नेता करता है, उतने पाप और दुष्कर्म डाकू और हत्यारे भी नहीं करते। डाकू और हत्यारे तो प्राय: अपनी जवानी में ही करते हैं, लेकिन इन्हें साठ के बाद जवानी आती है और मरने तक इसी प्रकार के दुष्कर्म करते हुए विलासिता औऱ मदोन्मत्त हालत में जीवन के आनन्द का सुखोपभोग करते हैं। दुनिया के देखने में ये सर्व बुद्धिमान, गुणवान, कलाकार, ज्ञानी और धर्मावतार दिखाई देते हैं। इनकी हालत ठीक वैसी ही है जैसे विष्ठा पर मख़मल लपेट दी गई हो। इनके पर्दे तो यहां हमारे बने हुए नरकों में ही हटाए जाते हैं। जब इनके कुकर्मों के काले कारनामों से उन्हें नंगा किया जाता है। दूध का दूध और पानी का पानी तो हमारे चित्रगुप्त जी के चि_ों में होता है। जहां नेता सिर्फ रोता है, चिल्लाता है, बिलखता है। जब उन्हें कुम्भीपाक की आग में झोंका जाता है, तब सोना और पीतल का भेद स्वत: सामने आ जाता है। वह सहज ही स्वीकारता है कि उसने जो कुछ भी किया, गलत ही किया।’ बिके हुए चापलूस पत्रकार, अखबारों के मालिक और संपादक, नेताओं के अंधे भक्त सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। उन्हें इन झूठी खबरों के छापने के पैसे जो मिलते हैं। फिर जो चाहो लिखवा लो इनसे। इसी का नाम लोकतंत्र है। मूर्खों के द्वारा , मूर्खों के लिए चलाया जाने वाला तंत्र (जाल) ही मूर्ख तंत्र (लोकतंत्र) है। यदि 100 मूर्ख एकतरफ मत कर दें तो यहां गधे को घोड़ा सिद्ध करते हुए राजा मान लिया जाता है। जिसे ये लोकतंत्र कहते हैं। इस तंत्र में बुद्धि औऱ बुद्धिमानों का कोई भी महत्व नहीं है। लकीर के फकीर बने रहो, सही बात मत कहो, जितना भी हो सब सहो। यही सब इस तंत्र की परिभाषा के तत्व हैं।’ विष्णु भगवान ने एक सांस में सब कुछ कह डाला। इस पर नारद जी कहने लगे-नारायण! नारायण!! हे प्रभो! आज आपने मेरे प्रज्ञा चक्षुओं को खोल दिया है। अब मैं सब कुछ जान और समझ गया हूं। नारायण! नारायण!!’ और नारद जी पुन: अपनी लोकयात्रा के भ्रमण पर प्रस्थान कर गए। - डॉ. भगवत स्वरूप शुभम’
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