18-Nov-2019 07:26 AM
1235440
ग्लोबल वार्मिंग फसलों की उत्पादकता को कम कर देती है जिसके चलते कुपोषितों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। पर क्या तापमान में होने वाली वृद्धि सीधे तौर पर कुपोषण की दर को प्रभावित कर सकती है, यह अब तक ज्ञात नहीं था। ओपन एक्सेस जर्नल प्लॉस मेडिसिन में छपे अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के चलते कुपोषण और उससे होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जिसके अनुसार गर्म मौसम के दौरान, दैनिक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि, अस्पताल में कुपोषण के कारण भर्ती मरीजों की संख्या में 2.5 फीसदी की वृद्धि कर देती है। यह अध्ययन युवाओं और बुजुर्गों को गर्मी के जोखिम से बचाने के लिए बेहतर रणनीतियां बनाने की भी बात करता है। ऑस्ट्रेलिया में मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2000 से 2015 के बीच ब्राजील के लगभग 80 फीसदी आबादी के दैनिक अस्पताल में भर्ती के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुपोषण के कारण अस्पतालों में भर्ती मरीजों और दैनिक औसत तापमान के बीच की कड़ी का अध्ययन किया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार अध्ययन के दौरान कुपोषण के कारण अस्पताल में भर्ती 15.6 फीसदी मरीजों के लिए अत्यधिक गर्मी जिम्मेदार पाई गई। इस अवधि के दौरान औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई थी। विश्लेषण के अनुसार अन्य आयु वर्गों की तुलना में 5 से 19 साल के युवाओं और 80 से अधिक आयु के बुजुर्गों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिला। शोधकर्ताओं ने बताया कि तापमान के बढऩे से ऐसी कई-कई समस्याएं घेर सकती हैं जो कुपोषण के लिए जिम्मेदार होती हैं जैसे- कम भूखलगना, अधिक मात्रा में शराब की तलब लगना, पाचन संबंधी विकार, खाना पकाने और खरीदने से बचना और पहले से ही कुपोषण से जूझ रहे लोगों के स्वास्थ्य को और खराब कर देना। अध्ययन के अनुसार विकासशील देशों में जलवायु संकट, भुखमरी और कुपोषण को और बढ़ा रहा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक खाद्य उपलब्धता में 3.2 फीसदी की कमी आ जाएगी और इस इसके चलते 2050 तक कम वजन वाले लगभग 30,000 लोगों की मौत हो जाएगी। शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि हालांकि यह भविष्य में कुपोषण से संबंधित बीमारी और मृत्यु पर जलवायु परिवर्तन के पडऩे वाले वास्तविक प्रभाव की सही तस्वीर नहीं है क्योंकि यह तापमान में हो रही वृद्धि के प्रत्यक्ष और अल्पकालिक प्रभावों को ही दिखाता है, इसमें अप्रत्यक्ष प्रभावों को सम्मिलित नहीं किया गया है । शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन न केवल दुनिया के सबसे अधिक कुपोषण प्रभावित क्षेत्रों में इसकी दर को बढ़ा रहा है, बल्कि साथ ही लोगों में बढ़ते तापमान को झेलने की क्षमता को भी कम कर रहा है।
वहीं यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 80 फीसदी से ज्यादा किशोर और किशोरियां ऐसी हैं जिनके आहार में पोषक तत्वों की कमी है और 10 फीसदी से भी कम लड़के और लड़कियां रोजाना फल तथा अंडे खाते हैं। किशोर और किशोरियों के आहार में आयरन, फोलेट, विटामिन ए, विटामिन बी12 और विटामिन डी जैसे पोषक तत्वों की कमी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट ऐडोलेसन्ट, डाइट एंड न्यूट्रीशन: ग्रोइंग वेल इन ए चेंजिंग वल्र्ड, हाल में जारी की गई कॉम्प्रेहेंसिव नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे (सीएनएनएस) की रिपोर्ट पर आधारित है। संयुक्त राष्ट्र ने 10 से 19 साल के बीच के शख्स को किशोर या किशोरी बताया है।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक एच फोरे ने नीति आयोग में रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा कि यूनिसेफ के दृष्टिकोण से हम किशोरों और किशोरियों के आहार, व्यवहार और सेवाओं में तीन प्रमुख हस्तक्षेपों का आग्रह करते हैं जो इस खराब पोषण के चक्र को तोड़ सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग सभी किशोर और किशोरियों के आहार में पोषक तत्वों की कमी है और यह सभी तरह के कुपोषण का मुख्य कारक है। रिपोर्ट कहती है कि 25 प्रतिशत से अधिक किशोर और किशोरियां सप्ताह में एक बार भी हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन नहीं करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, दूध के उत्पादों का सेवन प्रतिदिन 50 प्रतिशत किशोर और किशोरियां करती हैं।
जंक फूड पर खर्च हो रहा ज्यादा पैसा
इसमें कहा गया है कि आय बढऩे से खाने पर ज्यादा पैसा खर्च किया जाने लगा है जिसमें तला हुआ, जंक फूड, मिठाइयां ज्यादा खाई जाती हैं। आज भारत के हर हिस्से में 10 से 19 साल के किशोर या किशोरी को मधुमेह और दिल की बीमारी का खतरा है। लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियों का कद छोटा है। 18 प्रतिशत लड़कों की तुलना में एनीमिया (रक्त की कमी) 40 प्रतिशत किशोरियों को प्रभावित करता है।
- धमवीर रत्नावत