शेल कंपनियों का खेल
18-Nov-2019 07:04 AM 1234992
देश में शेल यानी कागजी कंपनियों के माध्यम से काली कमाई का धंधा अभी भी जोरों पर है। मप्र में शेल कंपनी की आड़ में स्वास्थ्य विभाग में कई फर्जीवाड़े किए जा चुके हैं। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को दूर करते हुए कामकाज में ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता) पर अपना ध्यान फोकस किया हुआ है। सरकार के कड़े कदम से बड़ी संख्या में शेल यानी फर्जी कंपनियां बंद हुई हैं। साथ ही ऐसी लाखों कंपनियों पर ताले लगे हैं जो इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल नहीं करती हैं। कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय (एमसीए) के साथ रजिस्टर्ड लगभग 6.8 लाख कंपनियां बंद हो गई हैं। सरकार की तरफ से हाल में जारी आंकड़े के अनुसार, बंद हुईं कंपनियों की यह संख्या एमसीए के साथ रजिस्टर्ड कुल कंपनियों का 36 फीसदी हैं। देश में करीब 19 लाख रजिस्टर्ड कंपनियां हैं। सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़े के अनुसार, रजिस्टर्ड 18,94,146 कंपनियों में से 6,83,317 कंपनियां बंद हो गई हैं। जानकारी के मुताबिक जो कंपनियां बंद हुई हैं उनमें से ज्यादातर शेल यानी फर्जी कंपनियां हैं। सरकार की सख्ती के चलते ये कंपनियां बद हो गई हैं। लेकिन इसके बाद भी देश और प्रदेश में शेल कंपनियों के मार्फत जमकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर हो या फिर राजधानी भोपाल दोनों जगह शेल कंपनियां खोलकर काली कमाई का कारोबार चल रहा है। गौरतलब है कि पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे ही एक मामले में आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) फिर से जांच कर रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ईओडब्ल्यू को स्वास्थ्य में 2003 से 2009-10 के बीच हुए 500 करोड़ रुपए के घोटाले में कई नए अहम तथ्य हाथ लगे हैं। प्राथमिक जांच पंजीबद्ध करने के बाद जिन शैल कंपनियों को तत्कालीन अफसरों ने करोड़ों रुपए का ठेका दिया गया था, उन कंपनियों के कागज खंगाले तो पता चला है कि इन कंपनियों को जो मुनाफा हुआ है, वह रकम विदेशों में निवेश की गई है। यही नहीं कुछ समय बाद विदेशों से यह रकम फिर भारत लाई गई है। उल्लेखनीय है कि उन अफसरों के घरों पर 2007 में आयकर विभाग के छापे भी पड़ चुके हैं। ईओडब्ल्यू को आशंका है कि स्विस बैंक में भी पैसा जमा करवाया गया है। सभी तत्कालीन बोगस कंपनियों की बैलेंस शीट, उनके खातों से हुए ट्रांजेक्शन और इनके खातों से किसके खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया, जिन कंपनियों/व्यक्तियों को पैसे ट्रांसफर किए गए है, उनसे भोपाल आदि की कंपनियों का क्या वास्ता है? जैसे विषयों पर ईओडब्ल्यू ने जांच शुरु कर दी है। प्राथमिक जांच में इस बात के सबूत मिले हैं कि तत्कालीन अधिकारियों और भाजपा-कांग्रेस दलों के नेताओं के गठजोड़ ने मिलकर 500 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला किया है। इसमें आईएएस, आईपीएस और नेताओं के नाम भी शामिल है। ईओडब्ल्यू के सूत्रों का कहना है कि ईओडब्ल्यू सिर्फ उन पांच छोटी व बोगस कंपनियों की जांच करेगा जिनके जरिए पैसे इधर, से उधर करते हुए विदेशों तक भेजा गया है। ईओडब्ल्यू को अब तक मलेशिया, सिंगापुर, हांग-कांग जैसे देशों में इन कंपनियों के जरिए पैसा ट्रांसफर करने के सबूत मिले हैं। गौरतलब है कि पूर्व में इस घोटाले की जांच में भ्रष्टाचार का खुलासा हो चुका है। टेंडर देने में भी भारी अनियमितताओं का खुलासा हो चुका है, लेकिन अब तक किसी भी एजेंसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया है कि इन कंपनियों और अधिकारियों द्वारा कमाए गए पैसे गए कहां और इसका क्या और कहां उपयोग किया गया है। ईओडब्ल्यू इन्हीं बिंदुओं पर फोकस होकर जांच कर रही है। ईओडब्ल्यू सिर्फ इन कंपनियों द्वारा किए गए मनी ट्रेल खुलासा कर संबंधितों के खिलाफ केस दर्ज कर सकती है। ईओडब्ल्यू को यह भी प्रमाण मिले हैं कि इन कंपनियों से न सिर्फ भारत के बाहरी देशों में पैसे भेजे गए हैं, बल्कि अन्य माध्यमों जैसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) आदि के रुप में यह पैसा फिर भारत में लाया गया है। अब ईओडब्ल्यू इन कंपनियों से जुड़े अफसरों के रिश्तेदारों और उनके द्वारा एफडीआई व घोटाले की अवधि में किए गए नए निवेश, धंधों और व्यापार आदि के बारे में जानकारी जुटा रही है, ताकि मनी ट्रेल को प्रमाणित किया जा सके। डमी कंपनियों से ब्लैक मनी को किया गया व्हाइट दवा सप्लाई में गड़बड़ी की शिकायतों पर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने शहर के एक व्यवसायी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। शिकायत के मुताबिक उक्त व्यावसायी ने तत्कालीन हेल्थ डायरेक्टर की मदद से नियम विरुद्ध तरीके से दवा सप्लाई के ऑर्डर हासिल किए। जांच एजेंसी के मुताबिक कोलकाता की जिन कंपनियों से उक्त व्यावसायी की कंपनियों ने दवा खरीदने के बिल प्रस्तुत किए हैं, उन पतों पर कोई कंपनी ही रजिस्टर्ड नहीं मिली। शिकायत के मुताबिक कंपनी बिना सप्लाई के भी सरकारी भुगतान प्राप्त करती रही। उक्त व्यावसायी व उससे जुड़े लोगों ने डमी कंपनियां बनाई और शेल कंपनियों से उनके अकाउंट में पैसा ट्रांसफर होता रहा। ईओडब्ल्यू के मुताबिक उक्त व्यावसायी की कंपनियों को 2005 से 2010 तक स्वास्थ्य विभाग से सबसे ज्यादा दवा सप्लाई के ऑर्डर दिए। जांच एजेंसी का कहना है कि उक्त व्यावसायी व उनके साथियों ने 3 डमी कंपनियां बनाईं। इनसे पैसा कोलकाता की शेल कंपनियों में भेजा गया। इसके बाद शेल कंपनियों से पैसा डायवर्ट होकर उनकी कंपनी के अकाउंट में आया। जांच से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि शुरुआती जांच में शेल कंपनियों से ऐसे 21 करोड़ उक्त व्यावसायी की कंपनी को मिलने की जानकारी सामने आई है। यह आंकड़ा और बढ़ेगा। गौरतलब है कि ड्रग्स की खरीदी मामले में लोकायुक्त चालान लगा चुका है। ऐसी ही कई शिकायतें लोकायुक्त में दर्ज हैं, वहीं ईओडब्ल्यू में भी 2008 में एक एफआईआर दर्ज हो चुकी है। जो राज्य सरकार के भ्रष्ट अधिकारी और उनके व्यावसायी मित्र के ऊपर आयकर विभाग के छापे के बाद अपराध क्रमांक 8/13 पंजीबद्ध है। - सुनील सिंह
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