18-Nov-2019 07:04 AM
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मई में बड़े-बड़े चुनावी वादे करके सांसद बने माननीयों ने पिछले 5 माह में अपने क्षेत्र में विकास के लिए एक ईंट भी नहीं रखी है। अब जाकर अधिकांश माननीयों को उनकी सांसद निधि की पहली किश्त मिली है, लेकिन किश्त मिलने के बाद भी वे दुविधा में हैं कि इस फंड का आखिर क्या करें। क्योंकि आगामी समय में प्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों के बाद कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह पता नहीं है। इसलिए माननीय इस चक्कर में फंस गए हैं कि वे क्षेत्र में विकास के लिए राशि किसके हवाले करें।
मप्र के 5,03,94,086 मतदाताओं में से 71.16 प्रतिशत ने 17वीं लोकसभा चुनाव के दौरान जिन 29 सांसदों को अपने क्षेत्र के विकास की बागडोर सौंपी है वे अभी तक जनता के विश्वास पर खरे नहीं उतरे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने सांसद निधि समय पर जारी नहीं की। और अब जब पांच माह बाद प्रदेश के 26 सांसदों को सांसद निधि की पहली किस्त जारी कर दी गई है तो इन माननीयों के सामने असमंजस की स्थिति ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए राशि किसके हवाले करें। करीब साढ़े तीन महीने बाद पंचायत चुनाव होना है। ऐसी स्थिति में दुविधा ये है कि जिन सरपंचों के हवाले विकास की जिम्मेदारी रहेगी वे आने वाले वर्ष में दोबारा निर्वाचित हो पाते हैं या नहीं।
संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य को अंजाम देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सांसदों के अलावा राज्यसभा सदस्यों को सांसद निधि के तौर पर प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपए दिए जाते हैं। पांच करोड़ की राशि दो किश्तों में जारी की जाती है। दोनों किश्त में समान राशि दी जाती है। केंद्र सरकार ने मप्र के नवनिर्वाचित 29 सांसदों में से तीन सांसद हिमाद्री सिंह, रीति पाठक और रमाकांत भार्गव को छोड़कर 26 सांसदों के बैंक अकाउंट में पहली किश्त के रूप में ढ़ाई करोड़ रुपए जमा करा दी है। बैंक अकाउंट में राशि जमा कराने के साथ ही जिला योजना मंडल को इसकी जानकारी भी भेज दी है। जिला योजना मंडल द्वारा सांसद को पत्र लिखकर केंद्र द्वारा जारी की जाने वाले सांसद निधि की सूचना देने के साथ ही विकास कार्यों के लिए प्रस्ताव भी मंगाए हैं। ऐसे में प्रदेश के नवनिर्वाचित सांसद के सामने दुविधा की स्थिति बन गई है।
पांच महीने बाद केंद्र सरकार ने अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य के लिए सांसदों को सांसद निधि की पहली किश्त 2.50 करोड़ रुपए जारी कर दी है। मप्र के 29 सांसदों में से 26 की सांसद निधि जारी कर दी गई हैं, जबकि तीन को अभी भी निधि का इंतजार है। लेकिन जिन सांसदों को निधि मिल गई है उनके सामने असमंजस की स्थिति ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए राशि किसके हवाले करें। कुछ महीने बाद पंचायत चुनाव होना है। ऐसी स्थिति में दुविधा ये है कि जिन सरपंचों के हवाले विकास की जिम्मेदारी रहेगी वे आने वाले वर्ष में दोबारा निर्वाचित हो पाते हैं या नहीं।
संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य को अंजाम देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सांसदों के अलावा राज्यसभा सदस्यों को सांसद निधि के तौर पर प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपए दिए जाते हैं। पांच करोड़ की राशि दो किश्तों में जारी की जाती है। दोनों किश्त में समान राशि दी जाती है। केंद्र सरकार ने दीपावली के पहले नवनिर्वाचित सांसदों के बैंक अकाउंट में पहली किश्त के रूप में ढाई करोड़ रुपए जमा करा दी है।
मंगाए गए प्रस्ताव
बैंक अकाउंट में राशि जमा कराने के साथ ही जिला योजना मंडल को इसकी जानकारी भी भेज दी है। जिला योजना मंडल द्वारा सांसद को पत्र लिखकर केंद्र द्वारा जारी की जाने वाले सांसद निधि की सूचना देने के साथ ही विकास कार्यों के लिए प्रस्ताव भी मंगाए हैं। ऐसे में प्रदेश के नवनिर्वाचित सांसद के सामने दुविधा की स्थिति बन गई है। क्योंकि नगरीय निकाय चुनाव के बाद पंचायत चुनाव होना है। फिलहाल न तो नगरीय निकायों में और न ही पंचायतों में विकास कार्य के लिए राशि स्वीकृत की जा सकती है। कारण भी साफ है। निकायों में चुनावी माहौल के बीच यह तय नहीं है कि किस दल की सरकार बनेगी।
निधि जारी करना जोखिम भरा
निकाय चुनाव के दौर में सांसद निधि जारी करना राजनीतिक रूप से लाभ या फिर घाटा दोनों का ही सौदा हो सकता है। कमोवेश कुछ इसी तरह की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। कुछ महीने बाद पंचायत चुनाव होना है। सांसद निधि जारी करने के बाद कार्य को पूरा कराने की जिम्मेदारी संबंधित पंचायत के सरपंच की होती है। पंचायत चुनाव के लिए अभी आरक्षण भी होना है। आरक्षण में कैसी स्थिति बनती है। कौन सी पंचायत किस वर्ग के लिए आरक्षित होता है। वर्तमान सरपंच चुनाव लड़ते हैं या फिर किसी अन्य को समर्थन देते हैं। यह भी अभी तय नहीं है। लिहाजा अभी से विकास कार्य के लिए निधि जारी करना जोखिम भरा हो सकता है।
चुनाव बाद ही खोलेंगे विकास की झोली
ऐसा माना जा रहा है कि सांसदों द्वारा नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव का इंतजार किया जाएगा। निकायों व पंचायतों में जनप्रतिनिधि काबिज होने के बाद सांसदों द्वारा विकास कार्य के लिए झोली खोली जाएगी।
राशि आहरण का अधिकार योजना मंडल को
केंद्र सरकार के नियमों पर गौर करें तो नवनिर्वाचित सांसदों के नाम बैंक अकाउंट खोला जाता है। बैंक अकाउंट का नंबर केंद्रीय वित्त मंत्रालय को भेजा जाता है। वित्त मंत्रालय द्वारा इसी अकाउंट नंबर पर सांसद निधि जारी की जाती है। राशि आहरण का अधिकार माननीयों को नहीं है। सांसद निधि की राशि जिला योजना मंडल द्वारा आहरित की जाती है। निर्माण एजेंसियों को राशि का भुगतान मंडल द्वारा ही किया जाता है।
इस साल मई की गर्मियों में 17वीं लोकसभा के चुनाव के दौरान वर्तमान सांसदों ने क्षेत्र में विकास की बड़ी-बड़ी बातें की थी, लेकिन सांसद निधि नहीं मिलने के कारण वे अपने क्षेत्र में विकास का एक पत्थर भी नहीं रख पाए। अब जब करीब पांच महीने बाद केंद्र सरकार ने अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्य के लिए सांसदों को सांसद निधि की पहली किश्त 2.50 करोड़ रुपए जारी कर दी है, माननीयों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे इस राशि का क्या करें।
कब जारी की गई सांसद निधि
संसदीय क्षेत्र सांसद राशि (करोड़ रुपए) दिनांक
उज्जैन अनिल फिरोजिया 2.50 17-10-2019
बैतूल दुर्गादास उइके 2.50 10-10-2019
रतलाम जीएस डामोर 2.50 29-10-2019
गुना केपी सिंह यादव 2.50 19-09-2019
देवास महेंद्र सिंह सोलंकी 2.50 24-09-2019
भोपाल प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2.50 01-10-2019
भिंड संध्या राय 2.50 01-10-2019
बालाघाट ढाल सिंह बिसेन 2.50 10-10-2019
टीकमगढ़ वीरेंद्र कुमार 2.50 10-10-2019
धार छतरसिंह दरबार 2.50 24-10-2019
मंडला फग्गन सिंह कुलस्ते 2.50 31-10-2019
खरगोन गजेंद्र पटेल 2.50 24-09-2019
सतना गणेश सिंह 2.50 31-07-2019
रीवा जनार्दन मिश्र 2.50 06-09-2019
छिंदवाड़ा नकुलनाथ 2.50 24-09-2019
खंडवा नंदकुमार सिंह चौहान 2.50 29-08-2019
मुरैना नरेंद्र सिंह तोमर 2.50 29-08-2019
दमोह प्रहलाद पटेल 2.50 20-10-2019
सागर राजबहादुर सिंह 2.50 29-08-2019
जबलपुर राकेश सिंह 2.50 31-10-2019
राजगढ़ रोडमल नागर 2.50 29-08-2019
इंदौर शंकर लालवानी 2.50 26-0-2019
मंदसौर सुधीर गुप्ता 2.50 10-10-2019
होशंगाबाद उदयप्रताप सिंह 2.50 12-09-2019
ग्वालियर विवेक नारायण शेजवलकर 2.50 29-08-2019
खजुराहो विष्णुदत्त शर्मा 2.50 24-09-2019
- अरविंद नारद