अग्निपरीक्षा में नाथ पास
04-Nov-2019 09:39 AM 1234839
झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था, लेकिन कमलनाथ सरकार इस परीक्षा में पूरी तरह पास हो गई। मध्य प्रदेश के झाबुआ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मुख्यमंत्री कमलनाथ का मैजिक चला है। कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने बड़ी जीत दर्ज की है। भाजपा को इस हार से बड़ा झटका लगा है, विधानसभा में जहां कांग्रेस के पास अब 115 का जादुई आंकड़ा होगा, वहीं भाजपा के खाते से एक सीट कम हुई है। कांग्रेस अपनी परम्परागत सीट वापस हासिल करने में कामयाब हुई है। इस सीट पर भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी थी। पार्टी के दिग्गज नेताओं ने रोड शो भी किया था। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहां लंबे समय तक डेरा डाल रखा था। लेकिन फिर भी उनका जादू काम नहीं आया। झाबुआ की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा जताया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह सीट कांग्रेस की पारंपरिक सीट है। वहीं, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस पर चुनाव में सत्ता का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए हैं। मतगणना के दौरान शुरुआत से नतीजे कांग्रेस के पक्ष में दिखे और जश्न शुरू हो गया। कांतिलाल भूरिया 27 हजार से अधिक मतों से भाजपा के भानु भूरिया को परास्त किया है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ में एक हफ्ते तक डेरा जमाए रखा। लेकिन भाजपा के किसी भी आरोप का असर झाबुआ के वोटर पर नहीं दिखाई दिया। हालांकि, भाजपा नेता इस जीत के पीछे सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगा रहे हैं। मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा उम्मीदवार भानु भूरिया को 27 हजार से अधिक मतों शिकस्त दे दी है। इसके साथ ही कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीनकर पुन: यहां अपना परचम लहरा दिया है। इस आदिवासी बहुल सीट पर मुख्यमंत्री कमलनाथ का जादू चला और अपनी परम्परागत सीट पर उसने वापसी की, जबकि भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। झाबुआ विधानसभा उपचुनाव के लिए गत 21 अक्टूबर को मतदान हुआ था। स्थानीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में 26 राउंड में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतगणना हुई, जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के भानू भूरिया को 27 हजार 804 वोटों से हराया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रहे कांतिलाल भूरिया ने मतगणना के पहले राउंड से जो बढ़त बना ली थी, जो अंत में 27 हजार को पार कर गई। उन्हें 95 हजार 907 वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार भानू भूरिया को 68 हजार 228 वोटों से संतोष करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि झाबुआ से भाजपा विधायक गुमान डामोर ने पार्टी की तरफ से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और जीतकर सांसद बनने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके चलते यहां उपचुनाव हुए। गत 21 को हुई वोटिंग में मतदान का प्रतिशत 62.01 फीसदी रहा था। यहां चुनावी मैदान में पांच उम्मीदवार कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया, भाजपा से भानु भूरिया के अलावा तीन निर्दलीय भाजपा के बागी कल्याणसिंह डामोर, नीलेश डामोर और रामेश्वर सिंगाड़ शामिल थे, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच ही था। कांतिलाल भूरिया कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार हैं, लेकिन झाबुआ विधानसभा सीट पर वे पहली बार विधायक बने। उन्होंने 70 के दशक में झाबुआ कॉलेज में छात्र संघ चुनाव जीता था। इसके बाद 1977 में थांदला विधानसभा से कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन पहले चुनाव में ही हार गए। फिर, 1980 में थांदला से जीतकर विधायक बन गए। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने उन्हें संसदीय सचिव बना दिया। वे थांदला से 1998 तक विधायक रहे। इस बीच दो बार प्रदेश में मंत्री बने। इसके बाद 1998 में रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने। मनमोहन सिंह सरकार में दो बार मंत्री रहे। इसके बाद 1998, 1999, 2004, 2009 के लोकसभा का चुनाव जीते, लेकिन 2014 में वे हार गए। इसी सीट पर 2015 में लोकसभा का उपचुनाव हुआ, जिसमें वे जीतकर पुन: सांसद बने, लेकिन इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें झाबुआ सीट से भाजपा विधायक गुमान सिंह डामोर ने करारी शिकस्त दी थी। डामोर के सांसद बनने के बाद झाबुआ सीट पर पुन: उपचुनाव हुआ, जिसमें कांतिलाल भूरिया को कांग्रेस ने मैदान में उतारा और उन्होंने 29 हजार अधिक वोटों से जीत दर्ज कर कांग्रेस का परचम पुन: लहरा दिया। सीएम कमलनाथ से लेकर सरकार के कई मंत्री उनके प्रचार के लिए सड़क पर उतरे। उपचुनाव की मॉनीटरिंग मुख्यमंत्री कमलनाथ स्वयं कर रहे थे। बीते चार माह में वे पांच बार झाबुआ आए। अपने भाषणों में उन्होंने छिंदवाड़ा मॉडल की तर्ज पर झाबुआ के विकास की बात कही और उनकी रणनीति कामयाब भी हुई। वहीं, भाजपा की ओर से स्टार प्रचारक के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पार्टी ने मैदान में उतारा था। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में वे करीब चार दिन विधानसभा क्षेत्र में रहे। उन्होंने छोटी-छोटी सभाएं लेने के साथ ही खाटला बैठक तक की। रोड शो भी किए, लेकिन वे भाजपा की यहां वापसी नहीं करा पाए। 2013 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस इस सीट से हार चुकी थी। अपनी हार से सबक लेते हुए उसने अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास किया। कांग्रेस के लिए राहत की बात ये रही कि वो टिकट ना मिलने से नाराज चल रहे जेवियर मेड़ा को मनाने में कामयाब रही। कांग्रेस यहां 2003 से अब तक 3 विधानसभा चुनाव हार चुकी है। तीनों बार हार की वजह पार्टी की अंदरूनी कलह रही। जेवियर के साथ आने से कांग्रेस को फायदा मिला। लाभ में जेवियर समर्थक भी रहे जिन्हें पार्टी संगठन में बड़ी पदों से नवाजा गया। भाजपा का किसान कर्ज माफी को लेकर किया गया प्रचार यहां काम नहीं आया। किसान कर्ज माफी को लेकर भले ही भाजपा भले ही माहौल बनाती रही कि प्रदेश में किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ। लेकिन उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के 56 हजार किसानों का कर्ज माफ किया गया। उनके खाते में रुपए भी जमा किए गए। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला। हालांकि 23 हजार किसानों को तकनीकी खामियों और दस्तावेजों की कमी के कारण अभी कर्जमाफी का लाभ नहीं मिल पाया है। इस उपचुनाव की खास बात यह है कि कांग्रेस ने सकारात्मकता के साथ मैदानी लड़ाई लड़ी। वहीं भाजपा का प्रचार पूर्णत: नकारात्मक रहा। कांग्रेस विकास के सकारात्मक बिंदु और झाबुआ को गोद लेते हुए उसका विकास करने के वादे के साथ जनता के बीच पहुंची थी। दूसरी ओर भाजपा लगातार कमलनाथ सरकार की आलोचना करते हुए अपनी पुरानी सरकार को अच्छा बताती रही। अंतिम सप्ताह में भाजपा ने कांतिलाल भूरिया पर व्यक्तिगत आक्रमण करना भी शुरू कर दिया। कांग्रेस ने पूरे प्रचार में भानु भूरिया या उनके परिवार पर आक्रमण नहीं किया। विरोध किया तो भी प्रमाण सहित यह बताया कि प्रत्याशी के माता-पिता का कर्ज माफ हुआ है। आखिरकार सकारात्मक प्रचार ने असर दिखाया और मतदाताओं ने दिल से कांग्रेस को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस प्रत्याशी भूरिया की जीत से ज्यादा लीड ने चौंकाया है। मई के अंतिम सप्ताह में ही गुमानसिंह डामोर के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद यह तय हो गया था कि अब झाबुआ में उपचुनाव होंगे। कांग्रेस ने उसी समय से अपनी तैयारी करना शुरू कर दी। विधानसभा के चप्पे-चप्पे पर कमलनाथ सरकार के मंत्रियों ने जाकर विकास का एक सपना दिखाया। विकास की आस में मतदाता पीछे चल पड़े। चुनाव में एक ही नारा चलता रहा, सरकार के साथ चलिये, विकास को चुनिये।Ó इस नारे ने झाबुआ में कांग्रेस का परचम लहरा दिया है। कमलनाथ का फोकस उपचुनाव को देखते हुए कमलनाथ सरकार का फोकस झाबुआ पर रहा। खुद सीएम कमलनाथ चुनाव के दौरान दो बार प्रचार के लिए यहां आए और रोड शो किया। उससे पहले वो झाबुआ में दो बड़े कार्यक्रम कर चुके थे। 24 जून को स्कूल चले अभियान की शुरुआत झाबुआ से की गई। इसी दिन किसानों को कर्जमाफी के प्रमाण पत्र बांटे गए थे। 11 सितंबर को सीएम कमलनाथ एक बार फिर झाबुआ पहुंचे थे और झाबुआ मुख्यमंत्री आवास मिशन की शुरुआत की गई। वहीं उपचुनाव की तारीख के एलान से पहले ही सरकार के दर्जनभर से ज्यादा मंत्रियों ने झाबुआ का दौरा किया और झाबुआ के रुके कामों को गति देने की कोशिश की। कमलनाथ सरकार ने इस दौरान झाबुआ के आदिवासियों के लिए पिटारा खोल दिया। आदिवासी कल्याण विभाग के तहत समूहों को 25 हजार रुपए के बर्तन देने की घोषणा की। मंत्री ओमकार मरकाम ने योजना की शुरुआत यहां से की और झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के 218 समूहों को बर्तन बांटे। साथ ही उत्सव के लिए 50 किलो अनाज भी देने की घोषणा सरकार की ओर से की गई। किसान कर्जमाफी और विकास के पिटारे ने दिलाई कांतिलाल को जीत 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत के आंकड़ें से दो सीट दूर रही कांग्रेस ने झाबुआ उप चुनाव को जीत कर अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है और अपनी सीटों का आंकड़ा 115 कर लिया है। यानी कांग्रेस सरकार बहुमत से एक सीट अभी भी दूर है। कांग्रेस की इस जीत का श्रेय किसान कर्जमाफी और विकास के पिटारे को माना जा रहा है। झाबुआ उप चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था। भाजपा अपना कब्जा बनाए रखने के लिए प्रयास में थी और कांग्रेस की कोशिश अपने पुराने परंपरागत गढ़ में लौटने की थी। कांग्रेस की जीत में किसान कर्जमाफी और जेवियर मेड़ा का सहयोग मददगार साबित हुआ। सीएम कमलनाथ ने विकास के नाम पर वोट मांगे थे। वादा किया था कि विकास का छिंदवाड़ा मॉडल वो झाबुआ में भी लाएंगे। कांग्रेस की जीत के पांच कारण किसानों की कर्ज माफी रहा बड़ा फैक्टर। ग्रामीण मतदाताओं ने कर्ज माफी के नाम पर कांग्रेस को अपना पूरा समर्थन दिया। सीएम के चुनावी सभाओं में छिंदवाड़ा की तरह झाबुआ के विकास के वादे पर मतदाताओं ने विश्वास किया। लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही कांतिलाल भूरिया ने क्षेत्र में दौरे कर जनता व कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनाना शुरू कर दी थी। इसका फायदा उन्हें मिला। कांगे्रस ने इस बार बूथ मैनेजमेंट पर पूरी तरह से फोकस किया। इसमें थोड़ी सी भी कौताही नहीं बरती गई। 9 मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई। मंत्रियों ने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि जीत के बाद उन्हें शासन की योजनाओं का पूरा लाभ मिलेगा। भाजपा की हार की यह वजह नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले पार्टी ने भानु भूरिया को प्रत्याशी घोषित किया। उन्हें प्रचार का कम समय मिला। भाजपा सतही तौर पर तो एकजुट नजर आई, लेकिन अंदर ही अंदर बड़े नेताओं ने मन से काम नहीं किया। भाजपा सांसद गुमानसिंह डामोर द्वारा पूर्णिमा उत्सव को लेकर दिए गए बयान ने भी मतदाताओं को भाजपा से दूर करने का काम किया। यदि भाजपा को जिताया तो क्षेत्र विकास से उपेक्षित रह जाएगा। प्रचार खत्म होने के अगले दिन भाजपा के इंदौर विधायक रमेश मेंदोला व भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष गौरव रणदीवे को पुलिस द्वारा पकड़ा जाना। इससे छोटे कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ा। - सुनील सिंह
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^