प्याज के आंसू
05-Oct-2019 06:48 AM 1234865
भारतीय राजनीति में प्याज हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। एक बार फिर प्याज के दाम आसमान पर हैं। भारत के 1,000 में से 908 लोग प्याज का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में जब भी प्याज महंगा होता है तो यह सुर्खियों में आ जाता है। प्याज के हर साल या दो साल में महंगे होने के पीछे क्या कारण हैं। आलू, प्याज और टमाटर। ये तीनों चीजें भारतीय सब्जियों के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें से कोई एक चीज तो लगभग हर भारतीय खाने में मौजूद रहती है और हर साल भारतीय बाजार में इन तीनों में से किसी एक चीज के दाम बहुत बढ़ जाते हैं। इस साल प्याज के दाम बढ़ रहे हैं। कुछ राज्यों में प्याज के दाम 80 से 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने अगले आदेश तक प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है। दामों को काबू में करने के लिए सरकार अफगानिस्तान और मिस्र से प्याज का आयात भी कर रही है। अफगानिस्तान से आ रहे प्याज की पहली खेप 15 अक्टूबर के आस पास भारत पहुंचेगी। प्याज की कीमतें जब बढ़ती हैं तो उसका राजनीतिक असर भी होता है। 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्याज की कीमत ही सबसे बड़ा मुद्दा थी जो सुषमा स्वराज की सरकार के हारने का कारण बनी। आखिर क्या वजह है कि हर एक दो साल में प्याज की कीमतें बढ़ती जाती हैं। भारत में चाहे आप शाकाहारी खाना देख लें या मांसाहारी, दोनों में प्याज का खूब इस्तेमाल होता है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति हजार व्यक्ति पर 908 व्यक्ति प्याज खाते हैं। इसका मतलब भारत में प्याज के उपभोक्ताओं की संख्या 100 करोड़ से भी ज्यादा है। लेकिन भारत में प्याज का उत्पादन सभी राज्यों में नहीं होता। कृषि मंत्रालय के मुताबिक भारत करीब 2.3 करोड़ टन प्याज का उत्पादन करता है। इसका 36 प्रतिशत उत्पादन महाराष्ट्र, 16 प्रतिशत मध्य प्रदेश, 13 प्रतिशत कर्नाटक, छह प्रतिशत बिहार और पांच प्रतिशत राजस्थान में होता है। बाकी राज्यों में प्याज का उत्पादन बेहद कम है। भारत में अलग-अलग राज्यों में पूरे साल प्याज की खेती होती है। अप्रैल से अगस्त के बीच रबी की फसल होती है जिसमें करीब 60 प्रतिशत प्याज का उत्पादन होता है। अक्टूबर से दिसंबर और जनवरी से मार्च के बीच 20-20 प्रतिशत प्याज का उत्पादन होता है। भारत में जून से लेकर अक्टूबर तक बारिश का समय रहता है। ज्यादा बारिश होने पर फसल खराब हो जाती है। प्याज के भंडारों में पहुंचने पर भी परेशानी खत्म नहीं होती। अगर भंडार में पहुंचने के बाद ज्यादा बारिश हो जाए और भंडार में नमी या पानी आ जाए तो प्याज सड़ जाते हैं। ऐसा अकसर होता है। इस साल मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आई बाढ़ का प्याज के उत्पादन पर बहुत असर पड़ा है। प्याज का उत्पादन मुख्यत: छह राज्यों में होता है। 50 प्रतिशत प्याज भारत की 10 मंडियों से ही आता है। इनमें से छह महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं। इसका मतलब हुआ कि कुछ सैकड़ा व्यापारियों के हाथ में 50 प्रतिशत प्याज की कीमतें रहती हैं। ये व्यापारी अपने तरीकों से प्याज की कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही प्याज का कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं है। ऐसे में पैदावार के समय बड़ी संख्या में प्याज बाजार में पहुंच जाता है। ऐसे में इसके दाम गिर कर 1 रुपये किलो तक हो जाते हैं। किसान ऐसे में प्याज सड़कों पर फेंक कर चले जाते हैं। साथ ही सस्ते में मिलने से कालाबाजारी भी शुरू हो जाती है। इसलिए जब पैदावार का समय नहीं होता तो दाम बढ़ जाते हैं। सरकार हर चीज का एक हिस्सा अपने पास सुरक्षित भी रखती है जिससे किसी भी आपातकालीन स्थिति में उसका इस्तेमाल किया जा सके। इसे बफर स्टॉकर कहा जाता है। केंद्र सरकार करीब 13,000 टन प्याज का भी बफर स्टॉक रखती है। लेकिन ये हर साल खराब हो जाता है। 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बफर स्टॉक में से 6,500 टन प्याज सड़कर खराब हो गया था। फिलहाल दिल्ली सरकार द्वारा बांटा जा रहा सस्ता प्याज इसी बफर स्टॉक से लिया गया है। राजनीति भी शामिल ये एक आम ट्रेंड है कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के दौरान प्याज महंगा हो जाता है। जानकार बताते हैं कि प्याज का कारोबार करने वाले बड़े व्यापारियों के संबंध राजनेताओं और राजनीतिक दलों से होते हैं। चुनाव के समय ये नेता और पार्टियों को चुनाव लडऩे के लिए पैसे देते हैं। चुनाव के लिए दिया जाने वाला पैसा कमाने के लिए व्यापारी प्याज के दाम बढ़ा देते हैं। साथ ही इसका कुछ हिस्सा किसानों तक भी पहुंचता है जिसका तात्कालिक लाभ वोट में भी होता है। - विशाल गर्ग
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