हाउडी मोदी
04-Oct-2019 10:09 AM 1234901
अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में हाउडी मोदी कार्यक्रम संपन्न हुआ। कितना सफल रहा, इस पर बात होनी जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री का अमेरिका पहुंचना और उस मौके पर प्रवासी भारतीयों का उनके सम्मान में समारोह का आयोजन आह्लादित करने वाली पहल रही। हिन्दुस्तान में टीवी से चिपके लोगों का मन बाग-बाग हो उठा। वहीं, इस दौरान जो कुछ दिखा, वह हैरान करने वाला था। कह सकते हैं कि खुश हो रहे भारतीयों के मन को कचोटने वाला था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ह्यूस्टन पहुंचे तब परम्परागत स्वागत के बाद उन्हें स्थानीय नेताओं के भाषण सुनने को विवश होना पड़ा। उसके आगे तो हद हो गई। पीएम मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इंतज़ार करना पड़ा। ऐसा लगा मानो हाउडी मोदी न होकर हाउडी ट्रंप का आयोजन हो। मेजबान-मेहमान में फर्क करना मुश्किल हो गया। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप की शान में कसीदे पढ़े, तो वह अतिशयोक्ति लगी, हालांकि इसलिए बुरी नहीं लगी क्योंकि उन्होंने इस बहाने खुद को मेजबान और ट्रंप को मेहमान साबित कर दिखाया। ऐसा करके वास्तव में मेजबानी में जो कमी थी, उसकी ओर ध्यान भी दिलाया और उसकी पर्देदारी भी कर दी। मगर, प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा दिया वह बिल्कुल मुनासिब नहीं था। मोदी ने स्टेडियम में मौजूद भारतीय मूल के लोगों को याद दिलाया कि ट्रंप ने कहा था, अबकी बार ट्रंप सरकार। उन्होंने कहा कि ट्रंप के शासनकाल में व्हाइट हाउस में दीवाली मनाया जाना भी अनोखा रहा। इस एक कदम से पलक झपकते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचारक बन गए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। हिन्दुस्तान का कद अचानक छोटा हो गया। भले ही उन्होंने 2016 के बहाने यह दोहराया, लेकिन इसका साफ अर्थ 2020 के संदर्भ में दिखा। आपको बता दें कि अमेरिका में 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहा है। जिसके लिए प्रचार अभियान लगभग शुरू हो गया है। इस तरह एक देश किसी दूसरे देश के राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए वोट मांगता या प्रचार करता दिखे, तो उसकी शान बढ़ती नहीं, घट जाती है। माना कि ऐसा पहली बार हुआ कि भारत और अमेरिका के राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक सभा में इस तरह शरीक हुए। मगर, अमेरिकी राष्ट्रपति की हाउडी मोदी में मौजूदगी भारतीय पीएम का सम्मान करने के लिए हुई थी, ऐसा कतई नहीं था। शायद इसीलिए ट्रंप ने मोदी को इंतज़ार कराकर संकेत दे दिया। राष्ट्रपति चुनाव में 40 लाख भारतीय अमेरिकियों के वोट पर ट्रंप की नजऱ है। ये प्रवासी भारतीय ट्रंप के वोटर नहीं हैं बल्कि डेमोक्रैट के समर्थक रहे हैं। इनकी मांग अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव खत्म करने की रही है। ये लोग ट्रंप के अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति के भी विरोधी रहे हैं। ऐसे में डेमोक्रैट समर्थक प्रवासी भारतीयों को रिपब्लिकन के लिए वोट देने को कहना राजनीति बदलने वाली कवायद कही जानी चाहिए। अगर डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी दोनों के भाषण को जोड़कर देखें तो आतंकवाद और इस्लामी आतंकवाद का जिक्र ही इन्हें एक मंच पर एक-दूसरे से जोड़ता है। अमेरिका में रिपब्लिकन का अल्पसंख्यक विरोध यहां मानवतावाद का लबादा ओढ़ता नजऱ आता है। भारत में दक्षिणपंथी बीजेपी की सरकार भी ऐसा ही करती रही है। आतंकवाद के साथ-साथ इस्लामिक आतंकवाद का जिक्र भी दोनों राजनीतिज्ञों की सियासत को सूट करता है। 9/11 और पुलवामा का जिक्र भी दोनों नेताओं को इसी लिहाज से एक-दूसरे का साथी बनाता है। मगर, इस साथ में स्थायित्व नहीं दिखता। चुनावी मौसम के लिहाज से जरूरी भावनाओं की बरसात भर लगती है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत और अमेरिका साथ रहे, यह जरूरी है। मगर, इस नाम पर अपने-अपने देश के चुनावी लड़ाई में दोनों देशों के हुक्मरान एक-दूसरे का साथ ले तो यह विपक्ष के साथ और लोकतंत्र के साथ अन्याय है। इजऱाइल में बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ऐसी ही कोशिश की थी। मगर, जनता ने उन्हें सबक सिखा दिया है। डोनाल्ड ट्रंप को भी क्या अमेरिकी लोकतंत्र पसंद जनता सबक सिखाएगी? ओबामा की दोस्ती क्यों भुला बैठे मोदी? माना कि डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच अच्छी केमिस्ट्री है। दोनों दोस्त हैं। हालांकि इसमें भी संदेह है, क्योंकि जब-तब कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता का राग छेड़ ही देते हैं ट्रंप। इसके अलावा ट्रेड वार भी चल रहा है और भारत से कोई मुरव्वत नहीं करते हैं ट्रंप। ह्यूस्टन में भी ट्रंप की घोषणा में भारत को निर्यात पर ज़ोर था जो भारतीय व्यापार संतुलन के नज़रिये से कोई स्वागतयोग्य कदम नहीं कहा जा सकता। फिर भी क्या यह माना जा सकता है कि व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप से अच्छा भारत का कोई मित्र नहीं हो सकता? याद कीजिए जब बराक ओबामा को नरेंद्र मोदी अपना सबसे अच्छा मित्र बताया करते थे। बराक कहकर वह आभास दिलाया करते थे मानो वे लंगोटिया यार हों। बराक ओबामा डेमोक्रैट हैं और डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन। क्या भारत ने रिपब्लिकन ट्रंप के लिए परोक्ष ही सही लेकिन अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा देकर हमेशा के लिए डेमोक्रैट को नाराज़ नहीं कर दिया है? क्या देशहित में ऐसा किया जाना जरूरी था? भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप के लिए खड़े होकर अभिवादन करने की अपील करने से पहले उन्हें आतंकवाद के खिलाफ योद्धा के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ खड़े हैं। हालांकि यह कहने से पीएम मोदी ने परहेज किया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ ट्रंप खड़े हैं। यानी दोस्ती और गाढ़ी दोस्ती में बारीक फर्क बरकरार है। दोस्ती का डंका तो है, प्रतिबद्धता का अब भी इंतज़ार है। - संजय शुक्ला
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^