अंधी व्यवस्था
05-Sep-2019 09:03 AM 1234824
मप्र में स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह बेपटरी है इसका नजारा अभी हाल ही में इंदौर में सामने आया है। इंदौर आई हॉस्पिटल में आयोजित एक शिविर में मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने वाले 13 मरीजों की रोशनी चली गई। करीब 21 दिन बाद इंदौर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद मरीजों की आंखों की रोशनी जाने के मामले में आखिरकार छत्रीपुरा पुलिस ने हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुधीर महाशब्दे और मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. सुहास बांडे के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। दोनों के खिलाफ धारा 336, 337 और 338 के साथ 34 लगाई गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे व्यवस्था में सुधार आएगा। सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि पूर्व में भी इस तरह के हादसे प्रदेश में होते रहे हैं। यह मामला 8 अगस्त का है, लेकिन यह तब सामने आया, जब मरीज के परिजनों को लगने लगा कि डॉक्टरों के आश्वासन के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है एवं मामला गंभीर है। फिर वे हंगामा करने लगे। इस मामले का खुलासा होते ही स्वास्थ्य विभाग सहित पूरा प्रशासनिक अमला सकते में आ गया। अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर सील कर दिया गया है। मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस घटना पर दु:ख जताया है। मरीजों को 50 हजार रुपए मुआवजा देने एवं मुफ्त में बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की घोषणा की गई। इस मामले में ज्यादा दु:ख की बात यह है कि इसी अस्पताल में 2010 में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करवाने वाले 18 मरीजों की रोशनी चली गई थी। यह अस्पताल ट्रस्ट के माध्यम से चलाया जाता है। 8 अगस्त को मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में एक शिविर लगाया गया था। ऑपरेशन के बाद जब अगले दिन मरीजों के आंख में दवाइयां डाली गई, तो आंख की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगी। दवाई के डालने के बाद ही मरीजों ने शिकायत की थी कि उन्हें सबकुछ सफेद दिख रहा है, कुछ ने काला-काला दिखाई देने की बात की। डॉक्टरों को लगा कि शायद यह सामान्य इंफेक्शन है और सबकुछ ठीक हो जाएगा। मरीजों ने भी भरोसा किया कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन धीरे-धीरे मरीजों को दिखना बंद हो गया। शुरुआती जांच के आधार पर डॉक्टर कह रहे हैं कि संभवत: ऑपरेशन के बाद जो दवा मरीजों की आंखों में डाली गई थी, उससे उनको इंफेक्शन हो गया है। दिसंबर 2010 में भी इस अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया था, जिसमें 18 लोगों की रोशनी चली गई थी। 2011 से इस अस्पताल को मोतियाबिंद ऑपरेशन के शिविर के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। बाद में धीरे-धीरे प्रतिबंधों को शिथिल कर दिया गया। इस क्षेत्र में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद आंख गंवाने की एक और बड़ी घटना नवंबर 2015 में हुई थी। तब बड़वानी जिले के जिला अस्पताल में लायंस क्लब और जिला अस्पताल द्वारा आयोजित शिविर में मोतियाबिंद के हुए ऑपरेशन में 86 में से 66 मरीजों की आंख की रोशनी चले जाने की भयावह घटना हुई थी। उस घटना में संक्रमण वाले मरीजों की जांच एम्स, दिल्ली के डॉक्टरों की टीम ने की थी और उसमें भी पाया था कि ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल किए गए आई वॉश फ्ल्यूड में गड़बड़ी थी। घटना में अपनी आंख गवां देने वाले मरीजों को 2 लाख रुपये मुआवजा दिया गया था और आजीवन 5 हजार रुपए मासिक का पेंशन देने की घोषणा हुई थी। आंख फोड़वा कांड को लेकर अभी हल्ला मचा है, जिसमें अस्पताल की लीज निरस्ती से लेकर डॉक्टरों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। असल मुद्दों की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं है। एक बड़ा खेल दवाइयों की खरीदी का भी इसमें जुड़ा हुआ है। पूर्व शिवराज सरकार ने प्रदेश-भर के अस्पतालों को दी जाने वाली दवाइयों की खरीदी भोपाल के जरिए शुरू करवा दी। इस सेंट्रल पर्चेसिंग सिस्टम के तहत 350 करोड़ रुपए की दवाइयां हर साल खरीदी जाती हैं, जिसमें दवा कम्पनियों के साथ सांठगांठ की जाती है और लाखों-करोड़ों रुपए की रिश्वत स्वास्थ्य विभाग में बंटती है। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में अभी तक जितने भी आंख फोड़वा कांड हुए हैं उसकी असली वजह खराब दवाइयां रही है। लेकिन हर बार घटना घटने के बाद डॉक्टरों को बलि का बकरा बनाया जाता है। - नवीन रघुवंशी
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