05-Sep-2019 08:53 AM
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बीजेपी ने इस महीने में तीन बड़े रत्न खोए हैं। इन तीनों का कनेक्शन मध्यप्रदेश से रहा है। अगस्त महीने में ही पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन हुआ। वह मध्यप्रदेश की विदिशा से सांसद रही हैं। उसके बाद मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम बाबूलाल गौर का निधन हो गया है। बाबूलाल गौर के निधन के पांच दिन बाद यानी कि अगस्त महीने के ही 24 तारीख को बीजेपी ने एक और रत्न खो दिया है। जेटली का मध्यप्रदेश से भी लगाव रहा है। 2002-2003 में अरुण जेटली मध्यप्रदेश बीजेपी के प्रभारी भी थे। इसके साथ ही वह आखिरी बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी का मेनिफेस्टो जारी करने मध्यप्रदेश आए थे। हालांकि मध्यप्रदेश बीजेपी में जब-जब राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ, उससे उबरने में जेटली की भूमिका अहम रही है।
अरुण जेटली भाजपा के संकट मोचक रहे हैं। जब-जब पार्टी पर संकट का साया आया उन्हें उस संकट का निवारण करने के लिए तैनात कर दिया गया। अगर यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज भाजपा जिस मुकाम पर है उसे वहां तक पहुंचाने वाले नेताओं में अरुण जेटली का नाम भी शामिल है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल गौर का भी इसी अगस्त महीने में निधन हो गया। बाबूलाल गौर भी मध्यप्रदेश के कद्दावर नेताओं में से एक थे। उनका निधन लंबी बीमारी के बाद 21 अगस्त 2019 को हुआ। तबियत खराब होने के बाद उन्हें भोपाल के नर्मदा अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। वहां उन्होंने अंतिम सांस ली। बाबूलाल गौर जनसंघ के जमाने से भारतीय जनता पार्टी के लिए काम रहे थे। एक कार्यकर्ता के रूप में करियर शुरू कर उन्होंने सीएम तक सफर तय किया।
जब भारतीय राजनीति में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का एकछत्रीय वर्चस्व था और उसे लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्षी दलों द्वारा चुनौती दी जा रही थी। उस समय बाबूलाल गौर ने जेपी समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में कांग्रेस व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार भाई रतनकुमार को पराजित कर पूरे देश में उभरते विरोधी आंदोलन के प्रतीक स्वरूप मध्यप्रदेश विधानसभा के पहले विधायक बनकर विधानसभा में प्रवेश किया था। उसके बाद विपक्ष द्वारा साझा उम्मीदवार के रूप में दूसरा प्रयोग लोकसभा के जबलपुर उपचुनाव में किया गया और शरद यादव ने भी लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की। यह जीत भी इस मायने में काफी महत्वपूर्ण थी क्योंकि जबलपुर कांग्रेस का परम्परागत अजेय गढ़ था। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में आगे चलकर सत्ता परिवर्तन का वाहक जो जेपी आंदोलन बना उस पर जनसमर्थन की मुहर सबसे पहले मध्यप्रदेश ने ही लगाई थी। गौर बतौर निर्दलीय विधायक राजनीति में आये बाद में जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से लगातार एक ही विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने का कीर्तिमान बनाने वाले वे प्रदेश की राजनीति में पहले ऐसे विधायक रहे जिन्होंने लगातार दस बार जीत का कीर्तिमान बनाया। गौर के इस नश्वर संसार से महाप्रयाण के साथ ही हमने अटलजी की परम्परा की राजनीति का निर्वाह करने वाले एक ऐसे राजनेता को खो दिया जिसने अपनी राजनीतिक यात्रा तो निर्दलीय विधायक के रुप में प्रारंभ की थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रति पूरी तरह निष्ठावान होने के बाद भी वे भाजपा विधायक रहते हुए सर्वदलीय ऐसे राजनेता बनकर उभरे जिनके हर दल के नेताओं व कार्यकर्ताओं से आत्मीयतापूर्ण रिश्ते रहे। जयप्रकाश नारायण ने गौर को आजीवन सदा जनप्रतिनिधि रहने का आशीर्वाद दिया था, वह आशीर्वाद इस कदर फलीभूत हुआ कि वे कोई चुनाव नहीं हारे। 2018 का विधानसभा चुनाव न लडऩे के बावजूद वे एक जनप्रतिनिधि के रुप में ही सक्रिय रहे और लोगों से जीवन्त सम्पर्क बनाये रखा।
गौर जब 85 वर्ष की आयु के थे और उनका भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से आमना-सामना हुआ तो उन्होंने कहा कि गौर साहब अब आप 85 के हो गए, गौर उनके मनोभाव को समझ गए और सहज भाव से प्रतिप्रश्न किया कि मेरे जैसी मेहनत कोई जवान नेता करके दिखा दे। यह एक हकीकत थी कि जितना गौर सक्रिय थे, लोगों से जीवन्त रिश्ते रखते थे, खुलेपन से मिलते थे वैसा आजकल देखने में नजर नहीं आता। वर्तमान जनप्रतिनिधि यदि गौर की कार्यशैली का थोड़ा-बहुत भी पालन कर लें और लोगों को सुलभ होने लगें तो सत्ताधीशों के प्रति आमजन की धारणा भी धीरे-धीरे बदलने लगेगी। यह भी एक सच्चाई है कि क्षेत्र के मतदाताओं से जितना डायरेक्ट कांटेक्ट यानी जीवन्त रिश्ता गौर ने बनाया था उतना कोई दूसरा उदाहरण देखने में नजर नहीं आता। भोपाल को सजाने-संवारने व सहेजने की ललक उनमें इतनी अधिक थी कि आज जो सौंदर्यीकरण भोपाल की शान बना है उसके जनक शिल्पकार के रूप में उनकी ही लगन रही है। भोपाल के विकास की योजना बनाना और उसे मूर्तरुप देकर यथार्थ की धरा पर उतारने तक वे कभी चैन से नहीं बैठे।
भोपाल आज जिस वीआईपी रोड और सौंदर्यीकरण पर गर्व करता है उस सबको साकार कराने के लिए गौर के जुनून ने ही अहम् किरदार निभाया। अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं से वे पूरी आत्मीयता से मिलते थे और हर दिन किसी न किसी क्षेत्र में भ्रमण पर जाते थे। पन्द्रह दिन या महीने में एक बार जब समय हो तो अपने विधानसभा क्षेत्र के किसी न किसी इलाके में कार्यकर्ताओं के साथ भोजन का इंतजाम होता था और दाल-बाफले की कई दावतें होती रहती थीं, यही कारण है कि एक अपवाद को छोड़कर हर चुनाव में उन्हें पिछले चुनाव से काफी अधिक मतों से जीतने का सौभाग्य मिला।
-कुमार विनोद